भोपाल। "वर्षों बीत गए, लेकिन पानी की समस्या खत्म नहीं होती। हमें तपती धूप में गाँव से तीन किलोमीटर दूर जंगल में पैदल जाकर पत्थरों से बह रहे पानी को भरना पड़ता है। क्योंकि गाँव के हैंडपंप गर्मी के मौसम में पानी नहीं देते। दो साल पहले जंगल में पानी लेने गए एक व्यक्ति पर भालू ने हमला कर दिया था। नेता लोग आते हैं, कहते हैं पानी की समस्या दूर होगी, लेकिन चुनाव के बाद कोई नहीं पूछता पानी मिला कि नहीं?"
मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के मचली गाँव की रहवासी राम बाई आदिवासी द मूकनायक को कहतीं है कि वह बचपन से ही गाँव में पानी की समस्या देख रही हैं। हैंडपंप गाँव में लगे है वह गर्मियों में सूख जाते है, इसके बाद जंगल में एक जगह ऐसी है, जहाँ पत्थरों से पानी झिर (बह) कर एक गड्ढे में एकत्र होता है। उसी पानी से गर्मियों में गांव के लोग अपनी प्यास बुझाते हैं।
यहां एक और गांव बोरी के रहवासी रंजीत बंजारा कहते हैं कि "पानी के लिए गाँव से चार किलोमीटर दूर केन नदी के पास गड्ढे खोदकर पानी भरना पड़ता है। गांव में नलजल योजना के तहत पाइप लाइन बिछाई जा चुकी है पर पानी नहीं आता। कुछ ट्यूबवेल से पानी आता भी है लेकिन यह पूरे गाँव के लिए पर्याप्त नहीं हैं।"
मध्य प्रदेश में बुंदेलखंड क्षेत्र के कई गांवों में नल जल योजना केवल कागजों में ही देखने को मिल रही है। कहीं पाइप लाइन अगर बिछ भी गई है तो पानी नहीं हैं। प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना जिले के लोग पानी के लिए दर-दर भटक रहे हैं। हालात इतने खराब हैं कि लोग नदी के किनारे गड्ढे खोद रहे हैं और गड्ढों से पीने का पानी निकाल रहे हैं। यहां सुबह से शाम तक लोग अन्य कामों को छोड़कर सिर्फ पानी की व्यवस्था में लगे रहते हैं। अब तो नदियों का पानी भी सूख रहा है।
बुंदेलखंड में पानी की कमी पिछले कई वर्षों से है, लेकिन पिछले 3 सालों से पन्ना जिले के ग्रामीण इलाके पेयजल की भारी समस्या से जूझ रहे हैं। सरकार ने यहां करोड़ों रुपए पानी के लिए खर्च किए, लेकिन आम जनता को पानी की समस्या से निजात नहीं मिल पाई।
पन्ना जिले के पवई क्षेत्र के अंतर्गत मुड़वारी गांव की दलित बस्ती की आबादी लगभग 1000 है। यहां के रहवासी पीने के पानी के लिए दर-दर भटकते रहे हैं। महिलाएं, बच्चे व बुजु्र्ग रोज पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। रोज 1 किमोमिटर दूर नदी से पीने का पानी लाते हैं। अब तो नदी का पानी भी सूखने की कगार पर है। जिले में नल जल योजना के तहत नल है पर उसमें पीने के लिए पानी नहीं है।
गांव वालों के बार-बार कहने के बाद भी अधिकारियों के कानों में जूं तक नहीं रेंगी है। एक तरफ केंद्र सरकार हर घर नल जल योजना के तहत घर-घर शुद्ध पानी पहुंचने का दावा कर रही है, वहीं इस मुड़वारी ग्राम के रहवासी नदी किनारे गड्ढा खोदकर पानी पीने को मजबूर हैं। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में पानी की टंकी बनी हुई है, लेकिन वह सिर्फ शो पीस बन चुकी है, जिस वजह से यह समस्या गर्मी के मौसम में और बढ़ जाती है। नदी नाले तालाब सब सूख रहे हैं।
मुड़वारी गाँव के रहवासी महेश अहिरवार ने बताया कि दलित बस्तियों में पानी की समस्या बहुत ज्यादा है। महेश ने कहा -"वर्षों से पानी की समस्या का समाधान नहीं हुआ है, प्रशासन के अधिकारी कहते है कि सप्ताहभर में पानी आ जाएगा पर कुछ नहीं होता है। हम गांदा पानी पी रहे हैं। गड्ढा खोदकर उसमें से छाना हुआ पानी पीते है, हमारी समस्या किसी का ध्यान नहीं है।"
गाँव के लोग नदी के पास गड्ढा खोदकर पानी निकाल रहे है पर उसी में गाय-भैंस को नहलाया जा रहा है। साथ ही नदी का पानी बेहद गंदा है। इस मौसम में नदी के पानी में बहाव नहीं है, इसलिए जो पानी एकत्र है वह पीने के लिए शुद्ध नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि पानी की समस्या के लिए पंचायत से लेकर जिले के अधिकारियों तक शिकायत कर चुके हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती।
जिले के ग्रामीण इलाकों में पंचायत के द्वारा बोर खुदवाए गए थे, कुछ में पानी मिला तो कुछ में 200 फ़ीट के बाद भी धूल और पत्थर मिले। फिलहाल जो हैंडपंप पानी दे रहे थे वह भी सूख चुके हैं। कुछ हैंडपंप ऐसे है जो चार घण्टे इंतजार के बाद महज 4 बाल्टी पानी दे रहे हैं। ग्रामीण इलाकों के लोग हैंडपंप पर निर्भर होते है। अब ज्यादातर हैंडपंप सूख चुके हैं। पन्ना जिले के पाठा, पाली, विजवार, रहुनिया, गुवार, बंगला, बोरी, मुड़वारी और खिरोहा सहित सैकड़ों गाँव है जहाँ पेयजल का संकट है।
बुंदेलखंड क्षेत्र में लगातार पलायन हो रहा है, यहां पानी की भीषण समस्या से बेरोजगारी है। यही कारण है कि यह क्षेत्र प्रदेश के सबसे पिछड़े इलाकों में गिना जाता है। बुंदेलखंड में दलित आदिवासी समुदाय की भी संख्या अच्छी-खासी है। मगर खेती और अन्य कोई रोजगार का साधन नहीं होने से यह पलायन कर जाते है।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए पन्ना पवई निवासी राजू परिहार कहते हैं कि वह फिलहाल इंदौर की एक फैक्ट्री में काम कर रहे हैं, वह अपने परिवार के साथ इंदौर में किराए के कमरे में रह रहे है। राजू ने कहा- "गाँव में रोजगार नहीं है, और डेढ़ एकड़ की जमीन उनके पास है पर खेती करने को पानी नहीं है, जब पानी ही नहीं है तो खेती कैसे करें। इसलिए इंदौर में मजदूरी कर रहा हूँ।"
पन्ना जिले के सैकड़ों गाँव में पेयजल का संकट गहराया हुआ है। कोई जंगल से पत्थरों का पानी ले रहा है, तो कोई नदी के पास गड्ढे खोदकर पानी भरने को मजबूर है। द मूकनायक से बातचीत करते हुए पन्ना जिले के स्थानीय पत्रकार अजीत खरे ने बताया कि पन्ना जिला वर्षों से पानी की समस्या से परेशान है। इस क्षेत्र में बारिश कम होने से समस्याए बढ़ जाती है। पिछले तीन वर्षों से यहां जरूरत के मुताबिक बारिश नहीं हो पाई, अनुपात से कम वर्षा के कारण यह स्थिति निर्मित हुई है।
अजीत ने आगे कहा- "गर्मी के इस मौसम में केन नदी सूखने लगती है, यह क्षेत्र पथरीला है। ग्राउंड वाटर मुश्किल से मिलता है। नलजल योजना के तहत पाइपलाइन तो कई गांव तक पहुँच गई है। पर सप्लाई के लिए पानी ही नहीं हैं।"
द मूकनायक ने पन्ना में व्याप्त पानी की भीषण समस्या को लेकर जिला कलेक्टर सुरेश कुमार से टेलीफोनिक चर्चा के लिए फोन किया पर उनसे बात नहीं हो सकी।
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