कैसे बाबा साहेब के एक दस्तखत ने बदल दी करोड़ों लोगों की जिंदगी?

बाबा साहेब का हस्ताक्षर
बाबा साहेब का हस्ताक्षर
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फर्ज कीजिए बाबा साहेब इस दुनिया में आए ही नहीं होते तो..!! तो आज यहां महिलाओं की स्थिति क्या होती? बहुजनों की स्थिति क्या होती? संविधान लागू होने से पहले इस देश में महिलाओं और शूद्रों की स्थिति जानवरों से भी बदतर थी. सवर्ण जानवर को तो टच करता था, गौमूत्र का सेवन भी करता था, लेकिन दलितों की परछाई पड़नेभर मात्र से उन्हें लिंच तक कर देता था. महिलाओं और शूद्रों को पढ़ने देने तक का अधिकार नहीं था क्योंकि यहां बीमार और दुष्ट व्यक्ति मनु का विधान चलता था.

बाबा साहेब डॉ. भीम राव आंबेडकर
बाबा साहेब डॉ. भीम राव आंबेडकर

दलित-आदिवासियों को गांव से बाहर रखा जाता था, उनके पहनावे, खाने, रंग हर चीज से नफरत की जाती थी. उनपर तमाम तरह की गालियां बनाई गई, स्तन कर जैसे अमानवीय टैक्स लगाए गए, गर्दन में बर्तन और कमर पर झाड़ू लटकाना पड़ता था, ताकि सो कॉल्ड सवर्ण समाज अपवित्र न हो जाए. इतना ही नहीं तालाब और कुएं से पानी पीने तक का अधिकार नहीं था यहां के बहुजनों को.

आज भी कई जगहों पर भारत में जाति की यह व्यवस्था जारी है क्योंकि पॉवर में बैठे लोग स्वार्थी और निष्क्रिय हो गए हैं. इन सवर्णों से लाख गुना अच्छे तो अंग्रेज थे जिन्होंने हमारे देश में आकर हमारी कमर की झाड़ू और गर्दन में लटके बर्तन को हटाया, जिसने कम से कम हमें इंसान तो माना, नहीं तो अब तक हम जानवर से बदतर तो थे ही.

बात जहां से शुरू हुई थी् वहीं पर आते हैं, इस दुनिया में अगर बाबा साहेब नहीं आते तो मैं कहीं किसी गांव के बाहर से ही गुलामी जैसी जिंदगी जी रही होती, गालियां खा रही होती, धिक्कार की जिंदगी जी रही होती या यह भी हो सकता था कि मर चुकी होती. लेकिन ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि मुझे पढ़ने और लिखने का मौका मिला, संघर्ष करने का अवसर मिला. मेरे मां-बाप सिर्फ इसलिए नहीं पढ़ पाए क्योंकि सदियों से पूरा खानदान मजदूरी करता आया था और इसे ही अपनी नियती मान बैठा. लेकिन उन्होंने बस मेरी उंगली पकड़ी और मैं चलना, दौड़ना, उछलना और लड़ना सीख गई.

मैं समझ गई सदियों से चले आ रहे इस दुष्चक्र को और उनकी नीयत को. जब मैंने खुद को तलाशना शुरू किया तो मेरा वाबस्ता बाबा साहेब से हुआ. जैसे-जैसे मेरी काबिलियत और वजूद पर सवाल खड़े किए गए मैं बाबा साहेब के नजदीक होती चली गई. जब-जब उन्होंने मेरे आत्मसम्मान को रौंदना चाहा मैंने बाबा साहेब को साथ पाया.

मैं महसूस कर पाई बाबा साहेब के अथाह संघर्ष को, आज भी जब कभी परेशान होती हूं तो खुद को बाबा साहेब के सामने रखती हूं, तब खुद ब खुद वे परेशानी खत्म हो जाती है. जिन महान शख्स ने देश निर्माण के लिए अपने परिवार को भूला दिया हो उनके सामने मेरा संघर्ष कुछ भी नहीं है.

आज मुझ जैसे करोड़ों लोग जो पढ़, लिख, बोल और लड़ पा रहे हैं वो बाबा साहेब के संविधान की वजह से संभव हो पाया है. उनके एक हस्ताक्षर ने इस देश के तकरीबन 90 फीसदी जनसंख्या को जानवर से आदमी का दर्जा दिला दिया, सो कॉल्ड सवर्ण पुरुषों के हिंदू राष्ट्र के लेबल से यह देश आजाद हो गया, सही मायनों से सच्ची आजादी, जिसमें सभी एकसमान हैं, पंख फैलाकर उड़ सकते हैं. बाबा साहेब आप थे तो आज हम हैं.

  • मीना कोटवाल, पत्रकार

(डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं)

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