चुराचांदपुर। इस साल मई शुरू हुए भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में हिंसा के बाद के हालातों को नजदीक से देखना उतना ही कष्टकर है जितना हिंसा की ख़बरों को सुनकर मन विचलित हुआ था. राज्य में जातीय हिंसा की घटना के बाद मणिपुर दो हिस्सों में विभाजित हो चुका है. घाटी में मैतेई और पहाड़ी क्षेत्रों में कुकी ट्राइबल्स हैं. स्थिति यह है कि कोई भी समुदाय किसी दूसरे समुदाय बाहुल्य क्षेत्र में नहीं आ जा रहा है. जिससे एक समूचे क्षेत्र में रोड मार्गों से आने वाले सामानों पर लगभग रोक लग चुकी है।
पहाड़ी क्षेत्र में बसा मणिपुर का चुराचांदपुर जिला कुकी बाहुल्य क्षेत्र है. तीन लाख से अधिक आबादी वाला यह क्षेत्र राजधानी इम्फाल से दक्षिण पश्चिम में पहाड़ी में बसा है. हिंसा की घटनाओं के बाद इस जिले की सभी रोड मार्गों पर भारी सुरक्षाबलों का पहरा है. कोई भी वाहन या व्यक्ति आसानी से चुराचांदपुर में प्रवेश नहीं कर सकता है. तीन महीने से यथास्थिति बने रहने के फलस्वरूप इस क्षेत्र के लोग अब खाद्यान्न, आवश्यक दवाओं और पेट्रोल डीजल की कमी से जूझ रहे हैं. जो भी उपलब्ध हैं उनके दाम दोगुने-तिगुने हो गए हैं. क्योंकि बाहर से इस जगह पर आने वाले सामान लगभग बंद हो चुके हैं. अगर सरकार जरुरी खाद्य सामग्रियों और दैनिक उपयोग की चीजों को लाने वाले वाहनों के आवागमन में ढील नहीं देती है तो निश्चित तौर पर यहां की स्थिति और भी बदतर होने की संभावना है.
चुराचांदपुर जिले के न्यू लमका गास्क्वेज (New Lamka Gckveng) के रहने वाले पॉस्टर खुपडोखेन (Pastor Khupdokhen) 57, बताते हैं कि इम्फाल से चुराचांदपुर आने वाली गाड़ियों को महीनों से रोक रखा गया है. जो सामान यहां किसी तरह मिल रहे हैं वह महंगे बिक रहे हैं. “यहां पेट्रोल 120 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है. क्योंकि इम्फाल से पेट्रोल आना बंद हो गया है. डिब्बों में जो पेट्रोल रोड के किनारे बिकते दिखाई दे रहे हैं वह सैकड़ों किलोमीटर दूर मिजोरम से लाए गए हैं”, सड़क के किनारे डिब्बों में रखे पेट्रोल की ओर इशारा करते हुए पॉस्टर खुपडोखेन ने द मूकनायक को बताया।
चुराचांदपुर जिले की सभी सीमाओं पर भारी सुरक्षाबलों का पहरा है. एक-एक रास्तों पर दर्जनभर से अधिक चेकपोस्ट बनाए गए हैं. चुराचांदपुर और उसके बाहरी हिस्सों को जोड़ने वाले क्षेत्र को बफर जोन बनाया गया है, इस बफरजोन में किसी भी कुकी या मैतेई का प्रवेश एकदम प्रतिबंधित है. चुराचांदपुर में कोई भी मैतेई प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि सुरक्षाबल उसे नहीं जाने देंगे, अगर वह आगे जाता भी है तो उसके साथ कभी भी अनहोनी हो सकती है. क्योंकि हिंसा की घटना के बाद दोनों समुदाय एक दूसरे के खून के प्यासे हैं. यही बात चुराचांदपुर के लोगों पर भी लागू होती है. कोई भी कुकी-जो समुदाय का व्यक्ति या महिला चुराचांदपुर से बाहर नहीं जा सकता, क्योंकि पहाड़ी से बाहर घाटी में मैतेई लोगों की संख्या अधिक है, जहां कुकी लोगों को खतरा है. ऐसे में सुरक्षाबल और स्थानीय प्रशासन भी इस बात पर जोर दे रह है कि किसी भी तरह दोनों समुदाय कहीं भी आमने-सामने न हों, जिससे टकराव की स्थिति बने.
चुराचांदपुर जिले में रहने वाले लिअनपू (Lianpu) 68, बीएसएफ के रिटायर्ड जवान हैं. वह चुराचांदपुर जिले के लोगों के लिए एक अलग प्रशासन की मांग की वकालत करते हैं. वह मानते हैं कि यहां के लोगों को अलग प्रशासन मिलने से हालातों में सुधार आएगा। “इम्फाल से कुछ भी नहीं आने दिया जा रहा है. लड़ाई (जातीय हिंसा) के समय से ही काम बंद हैं. तेल (पेट्रोल-डीजल) भी नहीं मिल रहा है. इसे 400 किमी दूर मिजोरम से लेकर आते हैं”, लिअनपू ने बताया।
“जब सेप्रेट एडमिनिस्ट्रेशन मिलेगा तभी हम बच पाएंगे। मणिपुरी हमें कहते हैं कि यहाँ से हमें भगा देंगे”, लिअनपू ने कहा.
न्यू लमका (New Lamka) बाजार में एक दुकान चलाने वाली कुकी महिला नेंग बोई (Neng Boi) 37 ने द मूकनायक को बताया कि यहां के बाजार में टमाटर की कीमत 250 रुपए प्रति किलो है. वह कहती है कि, “इतनी महँगी सब्जी खरीद कर हम कैसे खा पाएंगे? हिंसा के बाद हमारे पास काम भी नहीं है. लोग घरों से कम निकलते हैं. पता नहीं यह सब कब तक चलता रहेगा।”
इससे पहले द मूकनायक द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे चुराचांदपुर जिले के राहत शिविरों में रह रहे आईडीपी (आंतरिक रूप से विस्थापित लोग) गंभीर बीमारियों और दवा की कमी से जूझ रहे हैं। हिंसा के बाद अलग-अलग जगहों से भागकर राहत शिविरों में पहुंचे लोगों के पास न काम है न पैसे। वहीं 3 लाख से अधिक आबादी वाले चुराचांदपुर जिले में एक मात्र सरकारी जिला अस्पताल भी दवाओं के स्टाक में न होने की बात कह चुका है। कई जीवन रक्षक दवाओं की अनुपलब्धता के मामले में अस्पताल हाथ खड़े कर चुका है।
अलग प्रशासन की मांग को लेकर कुकी ट्राइबल्स बाहुल्य क्षेत्र चुराचांदपुर के लोगों का मानना है कि ‘सेप्रेट एडमिनिस्ट्रेशन’ मिलने के बाद ही यहां के निवासियों के हक और अधिकारों की रक्षा हो सकती है। पहाड़ी में बसे इन लोगों द्वारा सेप्रेट एडमिनिस्ट्रेशन की मांग यह भी इंगित करती है कि इन्हें अब मणिपुर सरकार पर भी भरोसा नहीं है। मई में शुरू हुए जातीय हिंसा के बाद से यहां के लोगों के मन में सरकार के प्रति विश्वास लगभग खत्म हो चुका है। पूरे चुराचांदपुर में जहां भी ‘चुराचांदपुर’ शब्द लिखा था उसे यहां के लोगों ने मिटा दिया है या उस शब्द पर कालिख पोत दिया है। कई दीवारों, दुकानों के शटर आदि जगह पर ‘कुकी लैंड’ या ‘ट्राइबल’ लिख दिया गया है।
आईटीएलएफ (इंडिजीनियस ट्राइबल लीडर्स फोरम) — पहाड़ी क्षेत्र चुराचांदपुर स्थित एक संगठन जो ट्राइबल्स के मुद्दों, समस्याओं, मांगों को भारत सरकार के संबंधित विभाग को भेजकर ट्राइबल्स के हित में निरंतर कार्यरत है, के एक सदस्य डेविड (David) ने बताया कि, “चुराचांदपुर जिला मैतेई राजा मैडिंगगु चुराचंद (Meidingngu Churachand, 1886–1941) के नाम पर रखा गया था। सरकारी रिकार्ड में मैतेई राजा के नाम पर जिले का नाम चुराचांदपुर कर दिया गया है। हिंसा की घटना के बाद यह जहां भी लिखा गया था, अधिकांश लमका क्षेत्र में, कुकी लोगों ने इसे मिटा दिया है।”
डेविड ने बताया कि जिले में लगभग सभी सप्लाई लाइनें बंद हैं इसलिए सिर्फ मिजोरम से चीजों को लाने का ही उपाय बचा है। जबकि मिजोरम यहां से चार सौ किलोमीटर दूर है। डेविड ने चीजों के महंगे होने के पीछे का कारण लंबी दूरी से लाई गईं चीजें और मुख्य मार्गों का बंद हो जाना बताया।
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