मध्य प्रदेश: 11 साल बाद भी नहीं हुआ भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों का रिकॉर्ड डिजिटलाइजेशन

सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित है पीड़ित, न्यायालय के आदेशों की पालना नहीं।
मध्य प्रदेश: 11 साल बाद भी नहीं हुआ भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों का रिकॉर्ड डिजिटलाइजेशन
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भोपाल। 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी के बाद सिस्टम की लापरवाही के कारण आज तक पीड़ितों का रिकॉर्ड डिजिटलाइजेशन नहीं हो पाया है, वहीं हाल ही में एमपी-जबलपुर हाईकोर्ट बेंच ने गैस राहत अस्पतालों में विशेषज्ञ और डॉक्टर्स की नियुक्ति नहीं किए जाने को लेकर भी राज्य शासन को कड़ी फटकार लगाई है।

दरअसल, 11 साल पहले 9 अगस्त 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस पीड़ितों के अस्पताल और अन्य निर्धारित अस्पतालों को सुविधा, विशेषज्ञों और डॉक्टरों की नियुक्ति के अलावा मरीजों के रिकॉर्ड के डिजिटलाइजेशन के निर्देश दिए थे। लेकिन यह काम आज तक पूरा नहीं हो पाया है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर शासन गंभीर नहीं है। हालात ये हैं कि भोपाल के गैस राहत अस्पतालों में 76 प्रतिशत विशेषज्ञ और 50 प्रतिशत डॉक्टरों के पद खाली पड़े हैं। मरीजों के रिकॉर्ड का डिजिटलाइजेशन भी नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी एक समिति के माध्यम से हाईकोर्ट को दी थी। कोर्ट में पेश मॉनिटरिंग कमेटी की रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि तकनीकी और गैर तकनीकी 1,247 पदों में 498 पदों पर नियुक्ति हो पाई है। वहीं अबतक 3.41 लाख गैस पीड़ितों के स्मार्ट कार्ड जारी हो चुके हैं।

जस्टिस शील नागू और जस्टिस देवनारायण मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह निराशाजनक है। साढ़े 10 साल से अधिक समय के बाद भी डिजिटलाइजेशन पूरा नहीं हुआ। कोर्ट ने शासन को फटकार लगाते हुए कहा ऐसे में सभी प्रतिवादियों के खिलाफ क्यों न अवमानना की कार्रवाई की जाए। इस मामले में हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई 16 जनवरी 2024 तय की है।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एन्ड एक्शन की संचालक रचना ढिंगरा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के 2012 और 2018 के आदेश में स्पष्ट रूप से सरकार को निर्देश दिए थे की गैस पीड़ितों का डाटा डिजिटल किया जाए, लेकिन अभी तक यह काम अधूरा पड़ा है। अधिकारियों की लापरवाही की चलते पीड़ितों को न तो ठीक से इलाज मिल रहा है। न ही उन्हें शुद्ध पेयजल मिल पा रहा है। यह स्थिति कई सालों से बनी हुई हैं।

यूनियन कार्बाइड से दूषित हो रहा भूजल

यूनियन कार्बाइड के आस-पास जमीन में दफन कचरा लगातार भूजल को प्रदूषित कर रहा है। और यहाँ के रहवासी इसी पानी को पीने के लिए मजबूर है। पूर्व में की गई भूजल जांच में यह सामने आया था। यूनियन कार्बाइड कचरे के कारण पानी अधिक मात्रा में रसायन युक्त हो चुका है। इस मामले में एक्सपर्ट का कहना था कि इस पानी को पीने से कैंसर और गुर्दा रोग जैसी गंभीर बीमारी पनप सकती है। पिछले कुछ सालों के आंकड़ों में यहां कैंसर और गुर्दा सम्बंधित रोगियों की संख्या बढ़ी है। इस मामले में कोर्ट ने भूजल प्रदूषित इलाकों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे, लेकिन शासन इसमें लापरवाही बरत रहा है।

उस रात मौत की नींद सो गए हजारों लोग

1984 में दो दिसंबर की रात को भोपाल में मौत ने ऐसा तांडव मचाया कि आज तक उसके जख्म नहीं भर सके हैं। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्‍ट्री से हुई जहरीली गैस के रिसाव से रात को सो रहे हजारों लोग हमेशा के लिए मौत की नींद सो गए। इससे पूरे शहर में मौत का तांडव मच गया। मरने वालों की संख्या 16,000 से भी अधिक थी। मौत के बाद भी हजारों की संख्या में जो लोग जहरीली गैस की चपेट में आए वह आज तक इसका दंश झेल रहे हैं।

उस रात गैस त्रासदी से करीब पांच लाख जीवित बचे लोगों को जहरीली गैस के संपर्क में आने के कारण सांस की समस्या, आंखों में जलन या अंधापन, और अन्य विकृतियों का सामना करना पड़ा। त्रासदी का असर लोगों की अगली पीढ़ियों तक ने भुगता। गैस त्रासदी के बाद भोपाल में जिन बच्चों ने जन्म लिया उनमें से कई विकलांग पैदा हुए तो कई किसी और बीमारी के साथ इस दुनिया में आए। ये भयावह सिलसिला अभी भी जारी है और प्रभावित इलाकों में कई बच्‍चे असामान्‍यताओं के साथ पैदा होते रहे हैं।

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