भोपाल। मध्य प्रदेश राज्य सरकार दलित और आदिवासियों को रोजगार देने में कोताही बरत रही है। आलम यह है कि एससी/एसटी के रिक्त बैकलॉग पदों की संख्या बढ़कर 1 लाख 40 हजार हो चुकी है, लेकिन इन पदों पर भर्ती करने की बजाय सरकार आउटसोर्स कर्मचारियों की भर्ती करने में लगी है, जिनमें आरक्षण नियमों की पालना भी पूरी तरीके से नहीं की जाती है।
राज्य के सभी विभागों में एससी/एसटी के बैकलॉग के पद रिक्त हैं, जिनमें सबसे ज्यादा रिक्त पद शिक्षा विभाग में हैं। एक अनुमान के मुताबिक करीब 40 हजार पद सिर्फ शिक्षक पात्रता परीक्षा के वर्ग-1, वर्ग -2 और वर्ग तीन में खाली हैं। इसके अलावा सामाजिक न्याय, महिला बाल विकास विभाग, स्वास्थ्य विभाग, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में हजारों की संख्या में पद रिक्त पड़े हैं।
साल 2022 दिसंबर में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में बैकलॉग पदों में भर्ती की समय सीमा बढ़ाते हुए 31 दिसम्बर 2023 किया था। इसके बावजूद आज तक पदों पर न भर्ती हो सकी और न ही नियुक्तियां हो पाई हैं।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति/जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ (अजाक्स) के प्रवक्ता विजय श्रवण ने बताया कि पिछले कई सालों से बैकलॉग के रिक्त पदों पर भर्ती किए जाने की मांग होती रही है। अजाक्स छात्रसंघ ने भी मांग की थी, लेकिन सरकार का इस ओर ध्यान नहीं है। जब अन्य एजेंसियों से अस्थाई आउटसोर्स पर कर्मचारियों की भर्ती हो रही है तो रिक्त पदों पर स्थाई नियुक्ति देने से सरकार को क्या परेशानी हो रही है। हम फिर मांग करते है कि जल्द बैकलॉग के पदों पर भर्ती की जाए।
इसी साल सितंबर में प्रदेश के विभिन्न जिलों के आदिवासी छात्र और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं ने आंदोलन शुरू किया था। छात्र राजधानी भोपाल भी पहुँचे थे। शहर के नीलम पार्क में प्रदर्शन किया था। छात्रों की मांग थी की वह शिक्षक पात्रता परीक्षा वर्ग 3 की भर्तियों में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के चार हजार पद जो बैकलॉग में हैं। उन पदों को भर्ती में शामिल कर मेरिट बनाई जाए, लेकिन सरकार की ओर से कोई कार्यवाही नहीं हुई।
प्रदेश सरकार उद्यमिता विकास केंद्र (सेडमैप) एवं एमपी कॉन लिमिटेड से आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की भर्ती कर रही है। इसके लिए सरकार ने भर्ती प्रक्रिया शुरू की है। पहले विभागों द्वारा रिक्त पदों की जानकारी विभाग के संचालक को भेजी जाती है। फिर संचालनायलय द्वारा पदों के आधार पर रोडमैप और एमपी कॉन लिमिटेड से कर्मचारियों की डिमांड की जाती है। यहां भी आवेदकों से उनकी पढ़ाई और इंटरव्यू के आधार पर मैरिट लिस्ट तैयार कर नियुक्त कर दिया जाता है। दोनों ही एजेंसियों की भर्ती प्रक्रिया में पूर्व में विवाद सामने आ चुके हैं। भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी और अधिकारियों के रिश्तेदार, चहेतों को नौकरी देने का आरोप भी लग चुके हैं।
जून 2023 में जारी हुए पटवारी परीक्षा परिणाम में घोटाला सामने आया था। 30 जून को मध्य प्रदेश इंप्लॉइज सेलेक्शन बोर्ड ने एमपी पटवारी भर्ती परीक्षा 2023 के नतीजे जारी किए थे। इन नतीजों में टॉप करने वाले दस में से सात कैंडिडेट एक ही सेंटर के निकले। ये जानकारी सामने आने के बाद उम्मीदवारों ने सवाल उठाए और भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर शंका जाहिर की। मामला बढ़ने पर सरकार ने जांच समिति गठित कर नियुक्तियों पर रोक लगा दी थी। फिलहाल पटवारी परीक्षा के 9 हजार पदों पर चयन के बाद भी कैंडिडेट्स को जॉइनिंग नहीं मिल पाई।
प्रदेश में करीब साढ़े सात लाख कर्मचारियों के अकेले वेतन-भत्ते को देखें तो वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक पचास हजार करोड़ रुपए से अधिक इस पर व्यय होंगे जो बजट का 26.47 प्रतिशत होता है। वहीं, पेंशन पर बजट का लगभग दस प्रतिशत और ब्याज भुगतान पर 11.36 प्रतिशत व्यय अनुमानित है। यदि सरकार आगामी वित्तीय वर्ष में स्थाई कर्मचारियों की भर्ती करेगी तो यह व्यय और बढ़ेगा।
मध्य प्रदेश में लगातार सरकार पर कर्ज बढ़ रहा है। वर्तमान में प्रदेश पर लगभग 3 लाख 90 हजार करोड़ कर्ज हो चुका है। वर्तमान कर्ज को यदि जनसंख्या के हिसाब से विभाजित कर समझा जाए तो प्रदेश में प्रति व्यक्ति पर आज 50 हजार रूपए का कर्ज है। सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 3.14 लाख करोड़ का बजट पेश किया था। आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक मध्यप्रदेश गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। मध्य प्रदेश की आर्थिक स्थिति को इस बात से समझा जा सकता है कि पिछले वर्ष 2022-2023 में राज्य ने 2.79 लाख करोड़ रुपए का वार्षिक बजट पेश किया था, जबकि सरकार पर 3.31 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था।
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