भोपाल। मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ में बौद्ध स्तूप मिले है। बता दें कि एक अप्रैल से शुरू हुए पुरातात्विक सर्वेक्षण में टीम को कई ऐतिहासिक स्ट्रक्चर यहाँ मिले हैं। इनमें दो बड़े बेलनाकार स्तूप, 11 गुफाएं, उनसे जुड़ी 4 वाटर बॉडी और एक चित्रित गुफा शामिल है। इस खोज से बांधवगढ़ भी बौद्ध परिपथ के स्थल के रूप में उभर सकता है।
पुरातत्वविदों का कहना है कि अध्ययन के बाद ऐतिहासिकता के संबंध में और अधिक जानकारी मिल सकती है। एक स्तूप की ऊंचाई 15 और दूसरे की 18 फीट है। ये छठी से आठवीं शताब्दी के बताए गए हैं। बेलनाकार स्तूप का आधार और ऊपरी भाग हर्निका सहित संपूर्ण स्वरूप में मौजूद है। यह भी अनुमान लगाया गया है, इनमें भगवान बुद्ध की प्रतिमा रही हो। विशेषज्ञों के मुताबिक यह भी माना जा रहा है कि पूर्व में यहां बौद्ध भिक्षुओं का आना-जाना होगा। उनके लिए गुफाएं बनाई होंगी।
खननकर्ता टीम के अनुसार गुफाओं और जल संरचनाओं से स्पष्ट है कि प्राचीन काल में यह क्षेत्र उत्तर से दक्षिण को जोड़ने वाले व्यावसायिक रूट के रूप में अहमियत रखता था। समानांतर मार्ग कौशांबी में जाकर मेन रूट से जुड़ता था। यहां टूटी छत वाली एक गुफा भी मिली है। स्तूप एक गोल टीले के आकार की संरचना है, जिसका उपयोग पवित्र बौद्ध अवशेषों को रखने में किया जाता है। यह बौद्ध प्रार्थना स्थल भी होते थे।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीक्षण डॉ. शिवकांत वाजपेयी ने बताया कि अप्रैल में शुरू हुए सर्वे में बौद्ध स्तूप और गुफाओं सहित अन्य स्ट्रक्चर मिले हैं, यहाँ अभी और भी धरोहरें मिलने की संभावना है।
मध्य प्रदेश में सांची, सतना और रीवा के साथ मंदसौर व धार का पर्यटन विकास बौद्ध सर्किट के रूप में किया जा रहा है। इसकी लागत भी करीब 74 करोड़ बताई गई है। सरकार की मंशा है यहां विकास से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। देश और विदेशी पर्यटकों का आना-जाना होगा।
पुरातत्व विभाग के बांधवगढ़ साइट पर पिछले साल भारतीय पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण में बांधवगढ़ में 26 प्राचीन मंदिर, 46 मूर्तियां, 26 शैल गुफाएं दो बौद्ध स्तूप और 19 जल स्त्रोत भी मिले थे। एएसआई के सुप्रिंटेंडेंट इंजीनियर शिवाकांत वाजपेयी ने बताया कि अन्वेषण का लक्ष्य बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बिखरे पुरातात्विक अवशेषों को वैज्ञानिक रूप से डॉक्यूमेंट करना है।
सांची स्तूप एक प्रसिद्ध यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, जो रायसेन जिले में स्थित है। स्तूप की नींव महान मौर्य सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में रखी थी। उन्होंने स्वयं बुद्ध के नश्वर अवशेषों के पुनर्वितरण के उद्देश्य से स्तूप की स्थापना कराई थी।
बाद में मौर्य साम्राज्य के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ईसा पूर्व में बृहद्रथ मौर्य की हत्या करके शुंग वंश की स्थापना की। ऐसा कहा जाता है कि युद्ध के दौरान स्तूप को नष्ट कर दिया गया था और बाद में उसके बेटे अग्निमित्र द्वारा इसका पुनर्निर्माण किया गया था।
शुंग राजवंश के शासनकाल के दौरान, स्तूप के विस्तार के परिणामस्वरूप इसका प्रारंभिक आकार दोगुना हो गया। ऐसा कहा जाता है कि इस समय के दौरान, स्तूप के गुंबद का निर्माण पत्थर की पट्टियों का उपयोग करके किया गया था, जो ईंटों से बने प्राथमिक स्तूप को कवर करती थी। सांची स्तूप को बाद में जनरल टेलर द्वारा वर्ष 1818 में खोजा गया था। 1919 में, सर जॉन मार्शल ने इसकी स्थापत्य प्रतिभा का सम्मान करने के लिए एक पुरातात्विक सर्वेक्षण की स्थापना की।
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