लहू से रंगी पतंगें, दर्द से बंधी डोर !

उत्तरायण पर्व शनिवार को देशभर में हर्षोल्लास से मनाया गया, खूब पतंगबाजी हुई। मिन्नतें , ताकीद और मुस्तैदी के बावजूद उत्साह और मस्ती में डूबे कुछ लोगों से मानव धर्म निभाने में चूक हो गई, जिसकी वजह से देशभर में कई स्थानों पर इन्सानों और परिन्दों पर पतंगों की डोर ने कहर ढाया।
लहू से रंगी पतंगें, दर्द से बंधी डोर !
Published on

उत्तरायण पर्व शनिवार को देशभर में हर्षोल्लास से मनाया गया, खूब पतंगबाजी हुई। मिन्नतें , ताकीद और मुस्तैदी के बावजूद उत्साह और मस्ती में डूबे कुछ लोगों से मानव धर्म निभाने में चूक हो गई, जिसकी वजह से देशभर में कई स्थानों पर इन्सानों और परिन्दों पर पतंगों की डोर ने कहर ढाया।

कहीं पतंगों की डोर से पखेरुओं के पंख उलझे तो कई जगह बच्चे और बड़े चोटिल हुए। हैदराबाद में अपने पिता के साथ मोटरबाइक पर जा रही एक चार वर्षीय बालिका का गला चाइनीज मांझे की तेज धार से कट गया जिससे वह गंभीर घायल हो गई, जबकि राजस्थान के कोटा शहर में चिकित्सकों ने ऑपरेशन करके एक युवा की जान बचाई जिसका गला चीनी मांझे की वजह से कट गया था। जान तो बच गयी, लेकिन युवा की छोटी उंगली कट गई।

आपको बता दें नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद सम्पूर्ण देश मे चाइनीस मांझे के भंडारण, बिक्री और इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध है, लेकिन इसके बावजूद इस पर कठोर कार्रवाई नहीं होने से ऐसे हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। पतंग उड़ाने के दौरान मांझे से हुए हादसों में एक हजार से भी अधिक लोग घायल हुए हैं। सीकर जिले में चाइनीज मांझा से आधा दर्जन लोग घायल हुए जो ट्रोमा वार्ड में भर्ती किए गए। जयपुर के एसएमएस अस्पताल में दोपहर 1 बजे तक पतंग से घायल 31 मरीज पहुंचे, जिनमें से 17 घायल मंझे से हुए। घायलों की देखभाल के लिए 6 स्पेशलिस्ट विभाग के 36 डॉक्टरों की ड्यूटी अस्पताल में लगाई गई है। गुजरात में पतंगबाजी के चलते सूरत, बड़ोदा, अहमदाबाद आदि शहरों से काफी तादाद में इंसानों और पक्षियों के चोटग्रस्त होने की सूचनाएं प्राप्त हुईं।

सैकड़ों परिंदों के पर उलझे

अकेले जयपुर शहर में शनिवार को 450 से अधिक पंछी चोटिल हुए। 10 चील, 40 कबूतर , 4 मोरों के अलावा पेलिकन , लेपविंग आदि पक्षी इलाज के लिए लाए गए। पशुपालन विभाग ने 16 पशु चिकित्सा केंद्र बनाए थे जहां घायल परिन्दों को मौके पर उपचार के लिए पांच सदस्यीय मोबाइल यूनिट भी तैयार रही। ख्यातिनाम पक्षीविद डॉ. सत्यप्रकाश मेहरा कहते हैं कि हर वर्ष मकर संक्रांति पर सैकड़ों परिंदे चोटिल होते हैं। शहरी इलाकों में तो रिपोर्ट हो जाती हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में वेटलैंड्स में काफी तादाद में प्रवासी पखेरू और लोकल पक्षी पतंग की डोर से उलझ कर गिर जाते हैं जिन्हें इलाज भी मुहैया नहीं होता।

पशुपालन विभाग की उप निदेशक डॉ. संगीता भार्गव ने बताया कि वे पिछले 15 साल से पक्षियों को बचाने का काम कर रही हैं. उन्हें न केवल राज्य से, बल्कि देश के अन्य स्थानों से भी घायल पक्षियों के प्राथमिक उपचार की जानकारी के लिए सम्पर्क किया जाता है. उन्होंने कहा कि विभागीय स्तर पर एनजीओ एवं अन्य संस्थाओं के सहयोग से प्रति वर्ष सैकड़ों पक्षियों की जान बचाई जाती है. साथ ही उन्हें प्राथमिक उपचार एवं रेस्क्यू करने के तरीकों से भी अवगत करवाया जाता है। वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट डॉ. सुनील दुबे ने बताया कि मेवाड़ के वेटलैंड्स में स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप्स बनाये गए हैं, जिसके सदस्यों ने किशन करेरी, मेनार, मंगलवाड़ सहित सभी छोटे बड़े तालाबों जलाशयों में दिनभर चौकसी रखी ताकि यहां कलरव करते पंछियों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हो।

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com