राजस्थान: अधिवक्ता ने यूपी के दलित मजदूर को दी मुखाग्नि, लावारिस शवों के अंतिम संस्कार की प्रेरणादायक कहानी

पेशे से अधिवक्ता और समाज सेवी अनिल थानवी पिछले 20 वर्षों से अज्ञात शवों के अंतिम क्रिया कर्म पूर्ण कर मानव धर्म निभा रहे हैं। अब तक 118 असहाय व लावारिस शवों का कर चुके हैं अंतिम संस्कार। हाल ही में उन्होंने उत्तर प्रदेश के एक गरीब मजदूर बल्लू पुत्र छोटू वाल्मीकि का हिन्दू रीति रिवाज़ों के अनुसार अंतिम संस्कार किया।
अधिवक्ता और समाज सेवी अनिल थानवी अब तक 118 असहाय व लावारिस शवों का कर चुके हैं अंतिम संस्कार।
अधिवक्ता और समाज सेवी अनिल थानवी अब तक 118 असहाय व लावारिस शवों का कर चुके हैं अंतिम संस्कार।फोटो साभार- अब्दुल माहिर
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जयपुर। कहते हैं 'मौत ना देखे जात-पात पर इंसान ने मरघट भी दिए बांट'। राजस्थान में आधुनिकता के प्रवेश के बावजूद आज भी कई मौकों पर सामंतवादी सोच हावी दिखाई देती है। जातीय भेदभाव श्मशानों में भी नजर आ जाता है, जहां रजवाड़ों से लेकर कमोबेश हरेक जाति के व्यक्तियों का अंतिम संस्कार अपने अपने समाज के लिए निर्धारित श्मशान स्थलों पर ही किया जाता है।

जातीय आधार पर बने मरघटों को लेकर जालौर, जौधपुर आदि जिलों से इस तरह के मामले मीडिया में रिपोर्ट भी हुए हैं जहां अनुसूचित जाति, जनजाति या पिछड़ी जाति के लोगों को दूसरे समाज के श्मशान घाट में अंतिम संस्कार नहीं करने दिया जाता है। ऐसी परिस्थितियों में जातिगत भेदभाव से ऊपर उठकर किसी व्यक्ति द्वारा मानव धर्म निभाने की खबर एक सुकून भरा अहसास देती है।

नागौर जिले के मेड़ता सिटी में पेशे से अधिवक्ता और समाज सेवी अनिल थानवी पिछले 20 वर्षों से अज्ञात शवों के अंतिम क्रिया कर्म पूर्ण कर मानव धर्म निभा रहे हैं। ये कार्य वे स्वयं के खर्चे पर करते हैं। हाल ही में उन्होंने उत्तर प्रदेश के एक गरीब मजदूर बल्लू पुत्र छोटू वाल्मीकि का हिन्दू रीति रिवाज़ों के अनुसार अंतिम संस्कार किया। थानवी अब अस्थि विसर्जन के लिए कलश लेकर हरिद्वार भी जाएंगे।

नागौर के मेड़ता सिटी में लावारिश मुस्लिम शख्स के जनाजे को कंधा देते एडवोकेट अनिल थानवी।
नागौर के मेड़ता सिटी में लावारिश मुस्लिम शख्स के जनाजे को कंधा देते एडवोकेट अनिल थानवी।फोटो साभार- अब्दुल माहिर

एडवोकेट थानवी नगरपालिका मेड़ता सिटी में 2010 से 2015 तक चेयरमैन भी रह चुके हैं। थानवी ने द मूकनायक को बताया कि, मेड़ता पालिका क्षेत्र के राजकीय चिकित्सालय के सामने झुग्गी में रहने वाला बल्लू वाल्मीकि की लंबी बीमारी के बाद बुधवार को मौत हो गई थी। मृतक के भाई ने नगर पालिका में प्रार्थना पत्र दिया जिसमें उसने शव को गांव ले जाने में असमर्थता जाहिर की। उसने अपने भाई के शव का अंतिम संस्कार मेड़ता में ही करवाने की गुहार लगाई। इसकी जानकारी मिलते ही उन्होंने (एडवोकेट थानवी) मृतक के रिश्तेदारों के साथ शव का अंतिम संस्कार पालिका के शव दाह गृह में हिन्दू रीति से किया। थानवी ने ही मुखाग्नि दी।

एक लावारिश को मुखाग्नि देते एडवोकेट अनिल थानवी
एक लावारिश को मुखाग्नि देते एडवोकेट अनिल थानवीफोटो साभार- अब्दुल माहिर

अब कलश लेकर जाएंगे हरिद्वार

थानवी बताते हैं कि, बल्लू की अस्थियों का कलश उनके पास ही है। अब वह कलश लेकर हरिद्वार जाएंगे। जहां गंगा नदी में अस्थियों का विसर्जन भी करेंगे। उनके द्वारा 118 असहाय व लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया जा चुका है। इनमे 4 शव मुस्लिम लोगों के भी शामिल हैं। शव के अंतिम संस्कार के बाद वह अस्थियों को कलश में रख कर अपने घर लाते हैं। प्रत्येक महीने हरिद्वार जाकर हिन्दू रीति से विसर्जन करते हैं। थानवी कहते हैं कि, "नगर पालिका के कर्मचारी व नगर पालिका के ठेकेदार राजू भाटी, ओमप्रकाश ओड भी इस कार्य मे सहयोग करते हैं।" यूपी के वाल्मीकि समाज के व्यक्ति का अंतिम संस्कार करने के बाद मृतक के भाई को थानवी ने आर्थिक सहयोग भी किया।

मां ने कहा था पुनीत कार्य निरंतर करना

एडवोकेट अनिल थानवी ने द मूकनायक को बताया कि स्वयं ब्राह्मण होकर उनके मन में कभी जातिगत भेदभाव का विचार नही आया। गरीब, असहाय व लावारिश शवों में उन्हें बस मानव नजर आता है। वह बताते हैं कि, 1999 में जब वह प्रैक्टिस के लिए अदालत में गए तो वहां मुंशी नेमीचन्द वकीलों से चंदा कर रहे थे। मैने पूछा कि भाई चंदा किस लिए। इसपर मुंशी ने बताया कि एक लावारिश शव है उसका अंतिम संस्कार करना है। यह वाकिया जाकर शाम को अपनी मां को बताया। मां ने कहा कि 'बेटा यह पुनीत कार्य है। इसे तू अपने खर्च से करते रहना।' तब से ही वह लावारिश, गरीब व असहाय लोगों के रिश्तेदारो के शवों के अंतिम संस्कार की क्रियाएं अपने स्तर पर कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस काम में उनका 18 वर्ष का पुत्र अनमोल थानवी व भाई हिमांशु थानवी सहयोग करते हैं।

अधिवक्ता और समाज सेवी अनिल थानवी अब तक 118 असहाय व लावारिस शवों का कर चुके हैं अंतिम संस्कार।
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