नई दिल्ली। बाल तस्करी एक गंभीर अपराध है और मानवाधिकारों के उल्लंघन का सबसे खराब रूप है जो देश के अधिकांश हिस्सों में देखने को मिल रहा है। बच्चे सहज और आसान लक्ष्य होते हैं और देश के कई जिले अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से लगे होने से मानव खासकर बाल तस्करी को बढ़ावा देती हैं।
केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में संकलित एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पांच सालों में देशभर से 2 लाख 75 हज़ार 125 बच्चे गायब हुए हैं जिनमें 2 लाख से ज्यादा लड़कियां हैं। यह बेहद डराने वाला आंकड़ा है जो यह भी इंगित करता है कि देश में बालिका सुरक्षा का मसला कितना संवेदनशील है। लापता होने वाले बच्चों में बेटियों की संख्या काफी अधिक है। कुल लापता हुए बच्चों में से 2 लाख 12 हजार 825 बेटियां शामिल हैं। उत्तरी भारत के राज्यों में इस अवधि में 51 हजार 495 बच्चे लापता हुए हैं।
हिसार से भाजपा सांसद बृजेंद्र सिंह ने लोकसभा में यह मुद्दा उठाया था। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से दिए जवाब में प्रदेशवार लापता हुए बच्चों के आंकड़े दिए हैं। मंत्रालय ने 1 जनवरी, 2018 से 30 जून, 2023 तक का डॉटा सदन में रखा। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में 550 बच्चे लापता हुए हैं और इनमें 385 बेटियां शामिल हैं। इसी तरह से नई दिल्ली में लापता हुए 22 हजार 964 बच्चों में से 15 हजार 365 बेटियां हैं।
पिछले पांच सालों में देश भर में 2 लाख, 75 हजार से ज्यादा बच्चे गायब हुए हैं। गायब हुए बच्चों में 2 लाख, 12 हजार लड़कियां हैं। जानकारी केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने पिछले हफ्ते लोकसभा में दी। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने जो आंकड़े पेश किए हैं उनके अनुसार वर्ष 2018 से जून 2023 तक कुल 2,75,125 बच्चे गायब हुए, इसमें से 2,12,825 लड़कियां हैं। दी गई जानकारी के मुताबिक 2 लाख, 40 हजार (2,40,502) बच्चों को ढूंढ निकाला गया, इसमें 1,73,786 (1.73 लाख) लड़कियां हैं। स्मृति ईरानी ने बताया कि केंद्र की चाइल्ड हेल्पलाइन लापता बच्चों को ढूंढने के लिए देशभर में काम कर रही है। लापता बच्चों को तलाशने के लिए ट्रैक चाइल्ड पोर्टल भी है। सबसे अधिक बच्चे मध्य प्रदेश से गायब हुए हैं। मध्य प्रदेश में गायब हुए बच्चों की संख्या 61 हजार से अधिक है जिसमें से 49,024 बच्चियां हैं और 12,078 बच्चे हैं। बच्चे गायब होने के मामले में दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है। इस राज्य के 49 हजार से ज्यादा बच्चे गायब हैं। रिपोर्ट के अनुसार सात राज्यों मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, गुजरात, दिल्ली और छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा बच्चे गायब होते हैं।
इस मामले में चिंताजनक स्थिति राष्ट्रीय राजधानी – नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों की भी है। लापता बच्चों को तलाशने के मामले में केरल देशभर में अव्वल है। वहीं हरियाणा की परफारमेंस भी शानदार रही है। यहां की पुलिस भी लापता बच्चों को तलाशने में काफी एक्टिव है। हरियाणा पुलिस द्वारा गुमशुदा बच्चों की तलाश के लिए ऑपरेशन ‘मुस्कान’ भी चलाया जाता रहा है। इसके तहत दूसरे राज्यों के बच्चों को भी उनके परिवार तक मिलाने में पुलिस को कामयाबी मिली है।
हरियाणा में इन पांच वर्षों में 2512 बच्चे लापता हुए। इनमें 1502 बेटियां हैं। पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश से लापता हुए 547 बच्चों में 394 बेटियां लापता हुई हैं। जम्मू-कश्मीर (लद्दाख सहित) में 214 बच्चे गुमशुदा हुए और इनमें 138 बेटियां शामिल हैं। वहीं पंजाब में लापता हुए 947 बच्चों में 662 बेटियां शामिल हैं।
उत्तरी भारत के राज्यों में सबसे कम जम्मू-कश्मीर, चंडीगढ़ और पंजाब में बच्चों के लापता होने की शिकायतें दर्ज हुई हैं। हरियाणा का आंकड़ा भी दूसरे राज्यों की तुलना में कम है। लापता बच्चों को तलाश करने के मामले में इस रीजन में हरियाणा सबसे अव्वल माना जा सकता है। चंडीगढ़ में 347, नई दिल्ली में 16 हजार 463, हिमाचल प्रदेश में 462, जम्मू-कश्मीर में 83, पंजाब में 449, राजस्थान में 8909, उत्तराखंड में 2136 तथा उत्तर प्रदेश में 4905 बच्चों को उनके परिजनों से मिलवाने में पुलिस ने कामयाबी हासिल की है।
आंकड़ों के हिसाब से बच्चों खासकर लड़कियों के लिए पूर्व उत्तर राज्य सबसे सुरक्षित हैं। खोये हुए बच्चों को खोजने में बिहार, कश्मीर और उत्तर प्रदेश सबसे फिसड्डी हैं। पांच वर्षों में लक्षद्वीप, पूर्व उत्तर के मिजोरम में एक भी बच्चे के खोने की घटना नहीं हुई। पूर्वोत्तर के अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर व नागालैंड में केवल एक ऐसी घटना दर्ज हुई है।
बाल तस्करी की रोकथाम , बाल श्रम उन्मूलन आदि के लिए प्रयासरत संस्थान बचपन बचाओ आंदोलन अब तक 80 हजार से अधिक मासूमों को तस्करी से बचा चुका है। नोबल पुरस्कार से सम्मानित एक्टिविस्ट कैलाश सत्यार्थी द्वारा 1980 स्थापित यह संस्थान आज 15 राज्यों के 200 से अधिक जिलों में सक्रिय है जिससे 70 हजार से भी अधिक स्वयं सेवक जुड़े हुए हैं। 1998 में 103 देशों से निकाली गई 'बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा' का आयोजन और नेतृत्व भी संस्थान ने किया था।
द मूकनायक में बचपन बचाओ आंदोलन से पिछले 27 वर्षों से जुड़ी चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट संपूर्णा ब्यावरा से बात की। संपूर्णा कहती हैं कि आज से 13 साल पहले तक बच्चों के गायब होने पर मुकदमा दर्ज करने का कोई प्रावधान नहीं था। जब एफआईआर दर्ज नहीं हो सकती थी तब बच्चे का गायब होना अपराध ही माना नहीं जाता था। कुछ ऐसी मिसिंग घटनाएं हुई तो बचपन बचाओ आंदोलन ने इनपर अंवेषण किया, देश भर के पुलिस स्टेशनों को पत्र भेजा। "रिसर्च के बेस पर हम ने सुप्रीम कोर्ट में केस दायर किया जिसके बाद देश में पहली बार ही आर्डर आया कि जो बच्चे गायब हो जाते हैं उनमें ट्रैफिकिंग को मद्देनजर रखते हुए एफआईआर दर्ज की जाएगी" संपूर्णा ने कहा।
• बच्चों को मजदूरी के लिए इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि बच्चे सस्ते लेबर साबित होते हैं जिन्हें डराकर ज्यादा से ज्यादा काम लिया जा सकता है।
• बच्चों के ट्रैफिकिंग सेक्सुअल एब्यूज या गलत काम के लिए किया जाता है ।
• बाल विवाह भी इसका एक बहुत बड़ा कारण है। हरियाणा में एक ऐसा गांव है जहां एक भी लड़की नहीं है। यहां पर लड़कियों को शादियों के लिए लाया जाता है और छोटी छोटी उम्र में उनकी शादी बड़ी उम्र के आदमियों या विधुर आदि से करवा दी जाती है।
• बच्चों को गायब किया जाता है रैकेट के लिए। बच्चों के बॉडी पार्ट बेचे जाते हैं बच्चों की ट्रैफिकिंग होती है।
• बच्चों को ट्रैफिकिंग किया जाता है वेश्यावृत्ति के लिए। जहां चलन है वेश्यावृत्ति का वहां पर भी लोगों ने पैसों के लालच में दूसरी जगह से बच्चों को लाकर यहां डाल दिया जाता है और उनसे वेश्यावृत्ति कराई जाती है।
• जहां बहुत गरीबी है वहां पर भी बच्चों को ट्रैफिकिंग करा जाता है। वहां जाकर कुछ दलाल बच्चों के मां-बाप को बहला-फुसलाकर यही कहते हैं कि "आपके बच्चे को ले जाएंगे एक घंटा आपका बच्चा काम करेगा और बाकी समय पढ़ाई करेगा। उसके खाने-पीने का भी फायदा मिलेगा और कुछ पैसे भी मिल जाएंगे। इन सारी बातों में आकर मां-बाप उन दलालों के हाथ अपने बच्चों को भेज भी देते हैं। और यही दलाल बाद में उनको बाल मजदूरी और किसी बेकार जिंदगी में धकेल देते हैं।
• कुछ बच्चों के साथ लव अफेयर के बाद बच्चों को बेच दिया जाता है यह सब सोची समझी साजिश होती है कि हम बच्चों को अपने प्यार के झांसे में फंस आएंगे और बाद में उन्हें बेच देंगे।
• बच्चों को घरेलू काम के लिए भी ट्रैफिकिंग किया जाता है क्योंकि घरेलू काम कितने होते हैं जो बच्चे डर कर और मारपीट कर भी कर देते हैं। और इनको ज्यादा पैसे भी नहीं देने पड़ते या तो कुछ तो पैसे देती ही नहीं है सिर्फ दो टाइम का खाना दे देते हैं। झारखंड से कितनी लड़कियां हैं जो घरेलू कामों के लिए लाई बेची जाती है।
संपूर्णा आगे कहती हैं कि बचपन बचाओ आंदोलन 1लाख 10 हजार बच्चे छुड़वा चुका है। हमने पुलिस को यह भी कहा कि बच्चों के गायब होने के 24 घंटे के अंदर एफ आई आर दर्ज की जानी चाहिए। लड़कियों की ज्यादा संख्या इसलिए भी है क्योंकि यौनिक कार्यों, घरेलू काम और बाल विवाह आदि के लिए इनकी ज्यादा डिमांड होती है। संपूर्णा
बताती हैं कि " कुछ माता-पिता अपने गायब हुए बच्चों की फोटो लेकर हमारे पास आते हैं। हमने पुलिस के साथ मिलकर "खोया पाया" केंद्र बना रखा है। जिस पर बच्चे की फोटो डाल देते हैं , वह सीधा मिनिस्ट्री में चली जाती है। फिर हम उस बच्चे को ट्रैक करते हैं और जब बच्चा मिल जाता है तो हम इसकी इंफॉर्मेशन भी इस केंद्र पर डालते हैं।'
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