अभी कुछ दिनों से कर्नाटक काफी चर्चा में है। सरकारी कॉलेजों में पढ़ रही कुछ मुस्लिम छात्राएं हिजाब लगाकर पढ़ना चाहती हैं। कॉलेज प्रशासन ने उन्हें कॉलेज ड्रेस कोड का पालन करने का निर्देश दिया है। विकल्प के तौर पर कॉलेज प्रशासन का कहना है कि ये लड़कियां ऑनलाइन पढ़ाई का रास्ता अपना सकती हैं। मेरी राय में ऐसा कर लेना चाहिये।
राइट विंग ताक़तें इसके ख़िलाफ़ अभियान चला रही हैं। दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में उत्तर भारत जैसा साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण देखने को मिल रहा है। आइये हम इसके पीछे की दास्तान को समझने की कोशिश करें।
आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) हमेशा बीजेपी के बड़े नेता का विकल्प तैयार रखती है। कर्नाटक में जो हो रहा है, वो उसी की तैयारी है।
1998 में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। उनकी सरकार में लालकृष्ण आडवाणी को उप-प्रधानमंत्री व गृहमंत्री बनाकर पावर बेलेंस रखा गया।
1999 में हुए लोकसभा चुनाव में एक बार फिर यही जोड़ी सत्ता के केंद्र में रही। लालकृष्ण आडवाणी का विकल्प तैयार करने के लिये 2001 के अंत में नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाकर "नये हिंदू हृदय सम्राट" को इंट्रोड्यूस कर दिया गया।
2004 में बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई। कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए की सरकार बनी, और डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने।
2009 के आम चुनाव में लग रहा था कि बीजेपी सत्ता में लौट सकती है। उस समय बीजेपी ने लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया था। लेकिन कांग्रेस ने पहले से ज़्यादा सीटें जीतकर एक बार फिर यूपीए सरकार बनाई।
2014 के आम चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी को पीछे करके नरेंद्र मोदी को पीएम फेस के रूप में आगे कर दिया गया। बीजेपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी। उत्तरप्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाकर "भावी हिंदू हृदय सम्राट" को लाँच कर दिया गया।
2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने पहले से ज़्यादा सीटें जीतकर केंद्र की सत्ता में वापसी की। योगी आदित्यनाथ समर्थक उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित करने लगे। लेकिन प्रधानमंत्री पद के वारिस के तौर पर योगी आदित्यनाथ, प्रधानमंत्री मोदी को स्वीकार्य नहीं हैं।
अयोध्या में राममंदिर का शिलान्यास हो या उत्तरांचल एक्सप्रेस वे की शुरूआत हो या फिर काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण, हर जगह मोदी जी की तस्वीरें थीं, योगी जी लाइमलाइट से दूर रखे गये।
बीजेपी अब 2024 के आम चुनाव की तैयारी में है। मोदी जी के विकल्प की तलाश शुरू हो गई है। विकल्प के तौर पर मोदी जी की पसंद के तौर पर एक नाम उभरा है, बेंगलुरु उत्तर के सांसद, "तेजस्वी सूर्या।" शायद आप यह नाम पढ़कर चौंक गये होंगे। पिछले दो-तीन साल से उनके कुछ ट्वीट्स विवादों में रहे हैं। अरब मुस्लिम महिलाओं को लेकर किये गये ट्वीट पर यूएई की राजकुमारी ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी। संयोग देखिये, हिजाब विवाद पर भी यूएई की राजकुमारी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
आइये पुराने रिकॉर्ड पर नज़र डालें
2000 से ही गुजरात में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का माहौल बनाने का काम शुरू हो गया था। 2001 में नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाकर लीडर के रूप में लाँच कर दिया गया।
2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद यूपी में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पर काम शुरू कर दिया गया। 2017 में योगी को यूपी का मुख्यमंत्री बनाकर लीडर के रूप में लाँच कर दिया गया।
2022 चल रहा है। कर्नाटक में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हो रहा है। "भावी हिंदू हृदय सम्राट" की लाँचिंग की तैयारियां हैं। सुबूत के तौर पर तेजस्वी सूर्या का यह ट्वीट #MyPM देखिये जो कुछ ही देर में ट्विटर पर टॉप ट्रेंड करने लगा।
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(लेखक- सलीम ख़िलजी, आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क के एडिटर इन चीफ़ हैं)
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