भरुच। कोरोना काल में हमने इंसानियत को तार तार होते देखा था। कैसे अपनों ने असमय साथ छोड़ा यह हमने देखा। एक बार फिर से एक ऐसी तस्वीर गुजरात से सामने आई जिसने मानवता को शर्मशार करते हुए हर किसी को अंदर तक झकझोर दिया। हालात के सामने इंसान कैसे घुटने टेक देता है वो इन तस्वीरों को देखकर पता चल रहा है। दरअसल गुजरात के भरुच में भीख मांगकर अपना जीवन यापन कर रहे एक मूक-बधिर की मां का निधन हो गया। हालातों से हारकर ये अपनी मां का अंतिम संस्कार भी अच्छे से नहीं कर पाया। जो तस्वीर सामने आई वो रोंगटे खड़े कर देनी वाली है।
क्या है पूरा मामला
दैनिक भास्कर के अनुसार, ये मामला गुजरात का है। यहां की औद्योगिक इकाई अंकलेश्वर में कई ऐसे बेसहारा लोग रहते हैं जो भीख मांगकर अपना गुजर बसर करते हैं। वैसे गौर करने वाली बात ये है कि अंकलेश्वर एशिया की सबसे बड़ी औद्योगिक इकाई है। हजारों लोगों को काम देने वाली इस इकाई में न जाने कितने ऐसे हैं जो भीख मांगकर जीवन बिता रहे हैं।
सोमवार को लोगों ने यहां पर जो देखा उसे देखकर वो सहम गए। दरअसल एक युवक लारी खींचते- खींचते प्रतीन चौराहे से भरूच तरफ जा रहा था। वहां से गुजरने वाले लोगों को लगा कि लारी में उसका सामान होगा, लेकिन लारी में सामान नहीं, बल्कि लारी में उस युवक की मां का पार्थिव शरीर था।
ये मार्मिक दृश्य और मार्मिक तब हो गया जब लोगों को पता चला कि ये युवक मूक-बधिर है। दरअसल मूक-बधिर युवक और उसकी मां अंकलेश्वर में भीख मांगकर गुजारा चलाते थे। ये दोनों ही एक दूसरे का सहारा थे। बेटा इसी ठेले पर अपनी मां को बिठा कर भीख मांगता था। जो भी मिलता था उसी में इन दोनों का जीवन चल रहा था। लेकिन अचानक रविवार को इनकी मां का निधन हो गया। खुद मूक-बधिर होने से वो किसी को कुछ कह भी नहीं सका कि उसकी मां अब इस दुनिया से चली गई है। अपनी मां के पार्थिव शरीर के पास ही वो रात भर बैठा रहा।
सुबह सोमवार को बेबश होकर इस युवक ने अपनी मां के पार्थिव शरीर को उसी ठेले पर रख लिया जिस पर उसे बिठाकर वो भीख मांगता था। भीक्षा मांगने वाले ठेले पर ही अपनी मां के पार्थिव शरीर को लेकर वो मोक्षधाम पहुंचा।
श्मशान के संचालक ने कराया अंतिम संस्कार
इस मूक-बधिर की व्यथा को शायद ही कोई समझ सकता। किसी से कोई मदद नहीं किसी से कोई बात नहीं। मां के अंतिम संस्कार के लिए वो खुद अकेले ही चल पड़ा। खैर दुनिया में इंसानियत अभी भी जिंदा है।
आखिरकार एक व्यक्ति ने मूक-बधिर की व्यथा को समझा। उसने कोविड श्मशान के संचालक धर्मेश सोलंकी को घटना के बारे में बताया। धर्मेश सोलंकी ने तत्काल इस मूक-बधिर युवक की मदद के लिए अपना हाथ बढ़ाया। उन्होंने अग्रिसंस्कार का सामना मंगवाकर विधि विधान के मुताबिक मूक-बधिर की मां का अंतिमसंस्कार किया।
सोशल मीडिया पर चर्चा दैनिक भास्कर ने अपने ट्विटर हैंडल पर इस घटान की तस्वीर शेयर की।
इस पोस्ट के साथ ही सोशल मीडिया पर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। लोग यहीं सवाल कर रहे हैं कि क्या इंसान का जमीर मर चुका है।
किसी ने गुजरात सरकार पर सवाल उठाए तो किसी ने देश में एनजीओ के दायित्व पर सवाल उठाए हैं।
ये तस्वीर हर उस इंसान से सवाल कर रही है जो सोच रहा है देश विकास कर रहा है। ये तस्वीर हमारे इंसान होने और इंसानियत पर सवाल उठा रही है।
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