दिल्ली का कुसुमपुर पहाड़ी इलाका सब से बड़े जे. जे. क्लस्टरों में से एक है। इस इलाके में करीब पच्चीस हज़ार घर हैं। यहाँ की आबादी का ज़्यादातर हिस्सा दलित बहुजन समाज से आता है, ज़्यादातर लोग सफ़ाई कर्मचारी हैं। "यहाँ से लोग पूरी दिल्ली को साफ़ करने जाते हैं पर इस इलाके को कोई साफ़ करने नहीं आता और ना ही कोई कोशिश करता है", ऐसा कुसुमपुर में रहने वाले आकाश ने कहा। इस इलाके की हालत ऐसी है कि यह इंसानों के रहने लायक तो नहीं है। सरकार के तमाम वादों के बाद भी इस इलाके तक पानी की लाइन नहीं पहुंच पाई है।
राजधानी दिल्ली में लगातार 36 घंटे बारिश हुई और दिल्ली की सड़कें मानो झील सी लगने लगी थीं। कुसुमपुर पहाड़ी ऐसा इलाका था जहाँ लोग बारिश में पीने का पानी भरने के लिए लाइन में खड़े थे। एक लाइन और है जो रोज़ सुबह शौचालय के बाहर लगती है क्योंकि सीवर की लाइन भी गायब है।
कुसुनपुर में रहने वाले 24 वर्षीय आकाश से द मूकनायक ने बात की, वे बताते हैं कि "मैं इस इलाके में 4 साल से रह रहा हूँ। मैंने तो इस इलाके में कोई बदलाव नहीं देखा। हां... सड़क समय-समय पर बन जाती है पर आप देख ही रहे हैं कि बगल में खत्ता (कचरा फेंकने की अनाधिकारिक जगह) है, इसकी हफ्ते में एक बार ही सफ़ाई होती है। अभी तो बारिश हुई है, नहीं तो गर्मी के दिनों में यहाँ बदबू के मारे खड़ा रहना मुश्किल है, और बगल में ही लोगों के घर हैं। इस ही जगह से कुछ दूरी पर ही पब्लिक टॉयलेट है। उसकी सफाई भी समय पर नहीं होती। इससे तो वही अच्छा है, जो पाँच रुपए लेकर टॉयलेट इस्तेमाल करने देता हैं, कम से कम साफ़ तो रहता है। लोगों को सुबह लंबी लाइन लगानी पड़ती है टॉयलेट जाने के लिए, आए दिन तो टॉयलेट की मोटर खराब हो जाती है तब तो कोई इस्तेमाल भी नहीं कर पता।" काम करने के सवाल पर वे कहते हैं कि "मैं एक कॉलेज सफ़ाई कर्मचारी हूँ, इस इलाके से लोग पूरी दिल्ली को साफ़ करने जाते हैं, लेकिन इस इलाके को साफ़ करने कोई नहीं आता, ना ही कोई कोशिश करता है, इस सड़क पर पानी भर गया था क्योंकि नालियां जाम हो गई थी हमने खुद इसे साफ़ किया है।"
दिसंबर 2022 को द टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी खबर और नेशनल लेबोरट्री ऑफ़ मेडिसिन्स की 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक मानसून और डेंगू की बीमारी के बढ़ने का सीधा संबंध है। मई की शुरुआत से ले कर सितंबर के अंत तक दिल्ली में सब से अधिक डेंगू के मामले देखे गए हैं। दिल्ली में हुई 36 घंटे की लगातार बारिश के बाद और जगह-जगह हुए जल भराव के बाद यह स्थिति गंभीर हो जाती है। कुसुमपुर भी इस से अछूता नहीं रहता, जाम हुई नालियां और 25 से 30 डिग्री का तापमान मच्छरों के बढ़ने के लिए बिलकुल सटीक है। कुसुमपुर में ही रहने वाले एक और सफाई कर्मचारी अजीत बताते हैं कि "यहाँ की डिस्पेंसरी में सभी दवाइयाँ मिलती भी नहीं हैं, डॉक्टर पर्चे पर दवा तो लिख देते हैं, लेकिन जब वह लेने काउंटर पर जाओ तो कहा जाता है कि यह दवा तो बहार से मिलेगी केवल एक मोहल्ला क्लिनिक है जो ठीक से चल रहा है, जहाँ कुछ दवाइयां मिल जाती हैं।"
दिल्ली सरकार ने बारिश के चलते स्कूलों की एक दिन की छुट्टी कर दी है पर बीमारी और बीमारी पैदा करने वाले मच्छर तो बच्चों के आस-पास ही घूम रहे हैं। अजीत कहते हैं कि "पहले तो भी इस समय तक मच्छर मारने वाली दवाई छिड़कने वाले लोग आ जाया करते थे पर अब वे कहाँ हैं नहीं पता।"
बीस साल से कुसुमपुर में रह रहीं उर्मिला बताती है कि "25000 घर होने के बावजूद भी यहाँ पीने के पानी तक की सुविधा उपलब्ध नहीं है, दिन में दो बार दो-दो घंटे के लिए ही पानी आता है, कहीं सड़क किनारे लगे नल में या कहीं पानी के टैंकरों से, उन में भी लोगों को कई केने भर कर रखनी होती हैं क्योंकि जाने कब पानी आना बंद हो जाए। यहाँ सीवरों की लाइन भी नहीं है इसीलिए सभी लोग पब्लिक टॉयलेट इस्तेमाल करते हैं जिस में महिलाओं को सब से ज़्यादा परेशान होती है क्योंकि लाइन ही इतनी लम्बी लगानी पड़ती है।"
दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड (DUSIB) की दिल्ली हाई कोर्ट में 30 मई 2023 को एक मामले की सुनवाई के दौरान दी गई जानकारी के मुताबिक, दिल्ली में 675 जे. जे. क्लस्टर हैं जिस में से एक कुसुमपुर भी है। इन सभी जगहों का सर्वे हो चुका है, जिसमें कुसुमपुर मान्यता भी पा चुका है। पर इसके बावजूद भी इस इलाके में सीवर की लाइनें ना के बराबर है। दिल्ली सरकार के द्वारा लगातार किये गए दावों के बाद भी हालत बेहतर नहीं हैं। हालांकि दिल्ली सरकार द्वारा 146 करोड़ की लगत से दिल्ली की दो अनाधिकृत कालोनियों और 3 गाँवों में 55 किमी की सीवर लाइन बिछाने की मंज़ूरी फरवरी 2023 में दे दी गई थी। इस परियोजना में दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी शामिल हैं। पर इसमें कुसुमपुर का नाम अभी शामिल नहीं है।
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