नई दिल्ली। अम्बेडकरवादी साहित्यकार, चिंतक, एक्टिविस्ट व पत्रकार समूह के सदस्यों ने गत दिनों सीपीआई महासचिव डी राजा व रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इण्डिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष व केन्द्रीय मंत्री रामदास आठवले से शिष्टाचार मुलाकात की। इस दौरान सदस्यों ने दोनों राजनेताओं को लोकतांत्रिक समाज और राज्य निर्माण के लिए जेंडर-समता आधारित 10 प्रस्तावों का पत्र सौंपा।
स्त्रीकाल पत्रिका के संपादक संजीव चंदन ने बताया कि इसके पहले ये प्रस्ताव राजनैतिक पार्टी हम (सेक्युलर) के संस्थापक और संरक्षक व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को वरिष्ठ लेखिका सुशीला टाकभौरे ने गत 4 अगस्त को सौंपा था। इस दौरान वरिष्ठ अम्बेडकरी लेखिका व ऐक्टिविस्ट उर्मिला पवार भी उपस्थित थीं। अब तक ये प्रस्ताव कांग्रेस, भाजपा, जदयू, राजद सहित कई दलों को मेल किए जा चुके हैं।
चंदन ने बताया कि यह एक सतत अभियान का हिस्सा है। स्त्रीकाल के 20वें वर्ष में देश भर के स्त्रीवादी विदुषियों, लेखिकाओं, सामाजिक-राजनीतिक नेतृत्व की एक ऑनलाइन बैठक प्रसिद्ध अम्बेडकरवादी साहित्यकार, चिंतक व एक्टिविस्ट उर्मिला पवार और सुशील टाकभौरे की अध्यक्षता में हुई थी। यह बैठक नागपुर में बाबा साहब अम्बेडकर की उपस्थिति में हुए अखिल भारतीय शेड्यूल्ड कास्ट महिला सम्मेलन (20 जुलाई,1942) की ऐतिहासिकता में हुई। बैठक में मणिपुर की हिंसा पर एक प्रस्ताव के बाद देश में समग्र राजनीतिक हस्तक्षेप और बदलाव के लिए कुछ प्रस्ताव पास हुए। ज्ञातव्य है कि 20 जुलाई 1942 के नागपुर सम्मेलन में सुलोचनाबाई डोंगरे की अध्यक्षता में स्त्रियों ने जो प्रस्ताव पारित किए थे, उनमें से कई प्रासंगिक है। हमारे प्रस्ताव उनके अनुसरण में ही पारित किये गए हैं।
इन प्रस्तावों की दिशा में स्त्रीकाल और अन्य महिला संगठनों ने 3 अगस्त 2022 को कांस्टीट्यूशन क्लब, दिल्ली में कुछ मांगें व प्रस्ताव पारित किये थे। 2022 भारत में स्त्री मताधिकार लागू होने का शताब्दी वर्ष भी था। ये मांगें-प्रस्ताव दर्जनों प्रस्तावकों के हस्ताक्षर से भारत के प्रधानमंत्री को भेजे गए और बाद में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को भी एक प्रतिनिधि मंडल के जरिए हस्तगत कराए गए।
1. महिला आरक्षण पारित हो, जिसमें ओबीसी महिलाओं के लिए भी आरक्षण कोटा तय हो।
2. दलित, आदिवासी महिला आयोग की स्थापना की जाए। महिला आयोगों को स्वायत्तता हो और दंडात्मक अधिकार भी मिले। आयोग में अनिवार्य रूप से आरक्षण की माध्यम से एससी, एसटी, ओबीसी, पसमांदा सदस्यों को नामित किया जाए।
3. राज्यों और केंद्र के आयोगों, अकादमियों (साहित्य-संस्कृति आदि सहित सभी अकादमियों ) में दलित, आदिवासी, ओबीसी, पसमांदा महिलाओं की भागीदारी आरक्षण सिद्धांत के साथ सुनिश्चित हो।
4. केंद्र एवं सभी राज्यों में दलित साहित्य अकादमी की स्थापना की जाए।
5. स्त्री-पुरुष व अन्य वर्ग की सामाजिक इकाइयों में समानता को सुनिश्चित करते हुए पूरे देश के लिए जेंडर जस्ट कॉमन सिविल कोड बने, जो 10 सालों तक ऐच्छिक हो। जेंडर जस्ट कॉमन सिविल कोड का ड्राफ्ट व्यापक विमर्श के लिए हितधारकों के समक्ष रखा जाए।
6. सरकार के आर्थिक प्रयोजनों में दलित, आदिवासी, ओबीसी, पसमांदा महिलाओं के लिए आरक्षण सुनिश्चित हो, जैसे ठेकेदारी आदि में।
7. शिक्षा और स्वास्थ्य का सरकारीकरण व महिलाओं की शत-प्रतिशत शिक्षा का लक्ष्य निर्धारित किया जाए। नागपुर अधिवेशन के छठवें प्रस्ताव के साथ यह प्रस्ताव पढ़ा जाए। आज भी कई वंचित समुदायों की महिलाओं का साक्षरता दर 3 से 10 प्रतिशत है।
8. भूमि का राष्ट्रीयकरण सुनिश्चित किया जाए।
9. देश भर में स्वच्छ सार्वजनिक प्रसाधन गृह का निर्माण और संचालन किया जाए, ताकि महिलाओं की सार्वजनिक जगहों पर भागीदारी बढ़े।
10. बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर के लेखन और भाषण में उनके अपने पत्रों, भाषणों, लेखों, किताबों के अलावा अखबारों की रिपोर्टिंग भी उनके वांग्मय में शामिल किए गये हैं। उन्हें वांग्मय से हटाया जाना चाहिए। अखबारों के रिपोर्टिंग संसद की पटल पर भी ऑथेंटिक नहीं माने जाते हैं। इसके लिए विचार करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बने।
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