फ्री मिलेंगे स्कूल में सैनिटरी नैपकिन: सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त तक दी राज्य सरकारों को चेतावनी, मांगा जवाब

शीर्ष अदालत के 10 अप्रैल के आदेश के अनुसार, केंद्र को केवल दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से प्रतिक्रियाएं मिली हैं।
सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने छठी से 12वीं क्लास तक की स्टूडेंट्स को मुफ्त सैनिटरी नैपकिन देने के मामले में हाल में सुनवाई की। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए मासिक धर्म स्वच्छता पर एक समान राष्ट्रीय नीति बनाने पर अब तक केवल चार राज्यों ने अपनी प्रतिक्रियाएँ प्रस्तुत की हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बाकी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को रिपोर्ट करने के लिए 31 अगस्त तक का समय दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने गत सोमवार को उन राज्यों को चेतावनी दी - जिन्होंने अभी तक स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए मासिक धर्म स्वच्छता पर एक समान राष्ट्रीय नीति बनाने पर केंद्र को अपनी प्रतिक्रिया नहीं सौंपी है - यदि वे 31 अगस्त तक ऐसा करने में विफल रहे तो वह "कानून की कठोर शाखा" का सहारा लेगी। बता दें की केस की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने की।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) को 31 अगस्त तक ऐसा करने का निर्देश दिया जो अपनी प्रतिक्रिया देने में विफल रहे हैं। पीठ ने कहा, "जो राज्य डिफ़ॉल्ट हैं, उन्हें नोटिस दिया गया है कि यदि कोई और चूक होती है, तो यह अदालत दंडात्मक कानून का सहारा लेने के लिए बाध्य होगी।"

जानिए पूरा मामला...

आपको जानकारी के लिए बता दें की यह मामला सोशल वर्कर जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करके लड़कियों की स्वास्थ्य सुरक्षा पर चिंता जताई थी। याचिका में बताया था कि पीरियड में होने वाली दिक्कतों के कारण कई लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं, क्योंकि उनके परिवार के पास पैड पर खर्च करने के लिए पैसे नहीं होते हैं और कपड़ा यूज करके उन दिनों में स्कूल जाना परेशानी का कारण बनता है।

स्कूलों में भी लड़कियों के लिए फ्री पैड की सुविधा नहीं है। इससे उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है। इतना ही नहीं, स्कूलों में यूज्ड पैड को डिस्पोजल करने की सुविधा भी नहीं है, इस वजह से भी लड़कियां पीरियड्स में स्कूल नहीं जा पातीं। पिछली सुनवाई 10 अप्रैल को हुई थी। इसमें कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 4 हफ्ते के अंदर एक समान (यूनिफॉर्म) पॉलिसी बनाकर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। साथ ही स्कूलों में लड़कियों के लिए टॉयलेट की उपलब्धता और सैनिटरी पैड की सप्लाई को लेकर जानकारी भी मांगी थी। इसके अलावा सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीन के लिए किए गए खर्च का ब्योरा देने को भी कहा था।

10 अप्रैल को कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि सरकार लड़कियों के पीरियड्स के दौरान उनके स्वास्थ्य और स्वच्छता में सुधार के लिए समर्पित है, लेकिन स्वास्थ्य सेवाएं देने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है।

सोमवार को सुनवाई के दौरान, भाटी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले मासिक धर्म स्वच्छता पर एक राष्ट्रीय नीति बनाने या अद्यतन करने के लिए व्यापक निर्देश दिए थे। उन्होंने कहा, "चीफ जस्टिस ने राज्यों को चार सप्ताह के भीतर अपने इनपुट हमें देने का निर्देश दिया था। दुर्भाग्य से, हमें यह केवल चार राज्यों से मिला।" उन्होंने कहा कि बाकी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को केंद्र को अपने इनपुट देने का आखिरी मौका दिया जा सकता है। शीर्ष अदालत के 10 अप्रैल के आदेश के अनुसार, केंद्र को केवल दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से प्रतिक्रियाएं मिली हैं।

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