नई दिल्ली: उत्तराखंड विधानसभा में UCC यानी समान नागरिक संहिता बिल पेश होने के बाद कैबिनेट में पास भी हो गया है। कानून बनने के बाद उत्तराखंड आज़ादी के बाद यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य हो जाएगा। विधानसभा में BJP के पास पूर्ण बहुमत है। ऐसे में इस विधेयक का पास होना तय माना जा रहा है। इससे पहले रविवार को इस विधेयक को कैबिनेट की मंज़ूरी मिली थी।
द मूकनायक टीम ने उत्तराखंड के कुछ रहवासियों से समान नागरिक संहिता बिल पर बात की। उन्होंने इस कानून के पर अपनी बात रखी। आइये जानते हैं उन्होंने क्या कहा:
समान नागरिकता संहिता पर द मूकनायक ने उत्तराखंड के निवासी लक्ष्मण रावत से बात की, लक्ष्मण बताते हैं कि, "उत्तराखंड पहला ऐसा राज्य बन गया है। जहां यह बिल पास हुआ है। यह हमारे उत्तराखंड के लिए बहुत ही बड़ी बात है। हम इसका दिल से स्वागत करते हैं। कुछ ट्राईबल जगह है। जहां यह बिल थोड़ा अछूता रह गया है। क्योंकि उनका रहन-सहन थोड़ा अलग है। लेकिन भविष्य में वह लोग भी इसके अंतर्गत आ जाएंगे। यह बिल काफी फायदेमंद है। उत्तराखंड के उदाहरण तौर के पर अब दूसरे राज्य भी शायद यह बिल लेकर आएं। इस बिल से महिलाओं को काफी फायदा होगा। उनके जीवन में काफी सुधार आएगा."
लक्ष्मण रावत की तरह दिवान सिंह लेतवाल भी इस बिल को फायदेमंद बताते हैं। दिवान कहते हैं कि, "उत्तराखंड के लिए यह बिल बहुत ही अच्छा है, इससे पूरे राज्य को लाभ मिलेगा। महिलाओं के लिए बिल बहुत ही अच्छा साबित होगा। क्योंकि महिलाओं के हक की सारी बातें इस बिल में है। महिलाओं को पहले से ही अपने अधिकारों में कमी मिली है। परंतु अब उनके लिए जागरुकता आएगी। क्योंकि जब किसी लड़की की शादी हो जाती है। तो उसकी शादी के बाद उसके घर वाले उससे ज्यादा मतलब नहीं रखते। अब इस बिल आने के बाद उनके घर वाले शादी के बाद भी उनके बारे में सोचेंगे। मुस्लिम महिलाओं को भी इसका पूरा-पूरा फायदा मिलेगा। क्योंकि अब सारे कानून सबके लिए बराबर होंगे। नयी पीढ़ी के लिए भी यह असरदार है। क्योंकि लिव इन में रहने के लिए अब माता-पिता को इसका ब्यौरा देना होगा। उनके लिए यह बहुत जरूरी होगा। जिससे उनके माता-पिता की कुछ परेशानियां कम होगी। सब मिलाकर यह बिल हर तरह से सही साबित होगा."
उत्तराखंड के निवासी हरी, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, बताते हैं कि, "यह उत्तराखंड के लिए बहुत ही अच्छा फैसला लिया गया है। जहां तक समान नागरिकता की बात है। अगर आपको समान नागरिकता कानून लागू करना है तो, पहले जो जातियां हैं, उनके बीच जो भेदभाव उच्च- नीच, जात-पात है, पहले उनको समान स्थिति में लाना होगा। यह जाति जो इधर-उधर भटकी हुई है। पहले आप उनको एक साथ लाइए। उनको एक करिए। तब जाकर UCC लागू कीजिए, और UCC इन पर भी तो लागू होना चाहिए। पहले आप यह जातिगत भेद-भाव खत्म कीजिए। फिर जाकर ऐसे कानून लाइए."
विधेयक में मुख्य रूप से महिला अधिकारों के संरक्षण को केंद्र में रखा गया है। कुल 192 पृष्ठों के विधेयक को चार खंडों विवाह और विवाह विच्छेद, उत्तराधिकार, सहवासी संबंध (लिव इन रिलेशनशिप) और विविध में विभाजित किया गया है। विधेयक के पारित होने के बाद इसे राजभवन और फिर राष्ट्रपति भवन को स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा।
उत्तराखंड सरकार द्वारा तैयार समान नागरिक संहिता विधेयक में बेटे और बेटी दोनों के लिए संपत्ति में समान अधिकार सुनिश्चित किया गया है, चाहे उनकी कैटेगिरी कुछ भी हो। सभी श्रेणियों के बेटों और बेटियों को संपत्ति में समान अधिकार दिए गए हैं।
विधेयक का उद्देश्य संपत्ति के अधिकार के संबंध में वैध और नाजायज बच्चों के बीच के अंतर को खत्म करना है। अवैध संबंध से होने वाले बच्चे भी संपत्ति में बराबर के हकदार होंगे। सभी बच्चों को जैविक संतान के रूप में पहचान मिलेगी। नाजायज बच्चों को दंपति की जैविक संतान माना गया है।
समान नागरिक संहिता विधेयक में गोद लिए गए, सरोगेसी के जरिए पैदा हुए या सहायक प्रजनन तकनीक के माध्यम से पैदा हुए बच्चों के बीच कोई अंतर नहीं है। उन्हें अन्य बायोलॉजिकली बच्चों की तरह जैविक बच्चा माना गया है और समान अधिकार दिए गए हैं।
किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद, पति/पत्नी और बच्चों को समान संपत्ति का अधिकार दिया गया है। इसके अतिरिक्त, मृत व्यक्ति के माता-पिता को भी समान अधिकार दिए गए हैं. यह पिछले कानूनों से एकदम अलग है। पिछले कानून में मृतक की संपत्ति में सिर्फ मां का ही अधिकार था।
मुसलमानों के लिए वसीयतनामा उत्तराधिकार Muslim Personal Law यानी शरीयत के अनुसार होता है। कोई भी व्यक्ति वसीयत के माध्यम से अपनी संपत्ति का केवल 1/3 हिस्सा ही वसीयत कर सकता है। शेष संपत्ति उत्तराधिकार की निर्धारित योजना से बंटती है, यानी कि बाकी संपत्ति मृतक के परिवार के सदस्यों को मिलती है। लेकिन यूसीसी विधेयक में वसीयतनामा उत्तराधिकार पर यह सीमा नहीं होगी। यह सीमा आम तौर पर उत्तराधिकारियों को बेदखल होने से बचाती है, और इसके हटने से विशेष रूप से महिलाओं और समलैंगिक व्यक्तियों जैसे कमजोर समूहों को उनके लिंग और सेक्सुअलिटी के कारण विरासत से बेदखल होने का खतरा हो सकता है।
वर्तमान में मुसलमानों के लिए, क्लास I के उत्तराधिकारियों में मां, दादी, पति, पत्नियां, बेटे की बेटी आदि शामिल हैं, और कुरान उनके लिए विशिष्ट हिस्सेदारी निर्धारित करती है। शेष संपत्ति सावधानीपूर्वक निर्धारित नियमों के माध्यम से अन्य उत्तराधिकारियों को दे दी जाती है। ऐसा ही एक नियम यह है कि समान पद वाली महिला उत्तराधिकारियों को समान पद वाले पुरुष रिश्तेदारों का आधा हिस्सा मिलता है। इस प्रकार, बेटी को बेटे के कारण आधा हिस्सा मिलता है। लेकिन यह नियम यूसीसी विधेयक के साथ बदल जाएगा- जिसमें ऐसे दोनों पक्षों को समान रूप से विरासत मिलेगी।
समान नागरिक संहिता पर अपनी 2018 की रिपोर्ट में विधि आयोग ने वास्तव में सिफारिश की थी कि, हिंदुओं के लिए भी, इस तरह के उत्तराधिकार से बचाने के लिए विधवा, अविवाहित बेटियों और अन्य आश्रितों के लिए कुछ हिस्सा आरक्षित किया जाना चाहिए।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.