नई दिल्ली। सरकार केन्द्रीय बजट में हर साल हजारों करोड़ रुपए दलित और आदिवासियों के विकास के लिए आवंटित करती है, लेकिन बजट के आंकड़े और जमीनी हकीकत में बहुत अंतर नजर आता है। इस बजटीय आंकड़ों के खेल को लेकर हर साल फरवरी में दलित मानवाधिकार पर राष्ट्रीय अभियान नामक संगठन (एनसीडीएचआर) दलित-आदिवासी बजट विश्लेषण करता है।
इस बार भी (एनसीडीएचआर) ने अपना बजट विश्लेषण किया। इस विश्लेषण में बताया गया है कि पिछले बजट में दलित (अनुसूचित जाति) के लिए 142342.36 करोड़ और आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) के लिए 89265.12 करोड़ रुपए आवंटित किया गया था। बजट में दलितों की 329 और आदिवासियों के फायदे के लिए 336 योजनाओं को शामिल किया गया था।
बजट दिखने में बड़ा लगा, लेकिन दलितों के लिए बजट के तहत लक्षित योजनाओं का अनुपात सिर्फ 37.79 प्रतिशत है। जिसके लिए 53794.9 करोड़ रुपए आवंटित हुए। ऐसे ही आदिवासियों के लिए लक्षित योजनाओं का अनुपात केवल 43.8 प्रतिशत है। जबकि राशि कुल 39113 करोड़ रुपए आवंटित की गयी। दलित और आदिवासी बजट से कुल 3751.06 करोड़ रुपए को 'सामान्य योजनाओं" के लिए इस्तेमाल किया गया है।
संगठन का विश्लेषण यह भी बताता है कि, दलित-आदिवासी के विकास के संबंध में सरकार की बातों में जो उत्सुकता दिखाई देती है, वह साल 2022-23 के दलित और आदिवासी संबंधी बजट से नदारद है।
एनसीडीएचआर ने अपने दलित-आदिवासी बजट विश्लेषण 2022-23 में शिक्षा, जेंडर, स्वास्थ्य जैसे विभिन्न विषयों पर अपना डेटा और विचार रखा। जब द मूकनायक ने एनसीडीएचआर की टीम से बजट विश्लेषण पर बातचीत की। जिसमें बजट की विभिन्न झलकियां सामने आई। विश्लेषण के अनुसार दलित और आदिवासी के बजट मेें साल 2022-23 में क्रमशः 40634 करोड़ और 9399 करोड़ रुपयों की कमीं है।
शिक्षा और स्वास्थ्य बजट पर बात करते हुए एनसीडीएचआर की कर्मचारी कल्पना कहती है कि, कोरोना काल में आदिवासी और दलित स्वास्थ्य वर्कर ने बिना स्वास्थ्य सुरक्षा के लाशें उठायी हैं। लेकिन बजट में उन्हें नजरअंदाज किया जाता है। आगे वे कहतीं हैं, "आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का कई आदिवासी और दलितों को लाभ नहीं मिलता। जिसका एक प्रमुख कारण होता है कि इन लोगों का स्वयं का दस्तावेजिक प्रमाण कई बार जागरूकता की कमीं से उपलब्ध नहीं होता।"
वहीं, जब हम शिक्षा बजट की ओर रुख करते हैं, तब एनसीडीएचआर का डेटा कहता है कि पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति के लिए 7000 करोड़ रुपए उपलब्ध कराने का वायदा इस साल भी पूरा नहीं किया गया।
जेेंडर बजट के मामले में एनसीडीएचआर के संस्थापक पाल दिवाकर द मूकनायक को बताते हैं कि "सोसाइटी में कास्ट और जेंडर आधारित जो भेदभाव नजर आता है, उसके लिए दलित और आदिवासी महिलाओं के लिए बजट में 0.5 प्रतिशत बजट होता है।"
जेंडर पर इनका डेटा कहता है कि, दलित महिलाओं पर रोजाना 7000 मामले दर्ज होते हैं। ऐसे में पीओए कानून कार्यान्वयन के लिए 600 करोड़ रुपए आवंटित किए गए। जिसमें महिला अपराध रोकथाम के लिए केवल 180 करोड़ रुपए आवंटित किए गए। वहीं, ट्रांस-दलित समुदाय का पूरे बजट में कोई उल्लेख नहीं किया गया है, उनके लिए बजट निराशा भरा रहता है।
आगे दलित मानवाधिकार पर राष्ट्रीय अभियान के रोजगार संबंधी बजटीय आंकड़ों पर नजर डालने पर ज्ञात होता है कि, दलित समुदाय के लिए रोजगार पैदा करने के लिए साल 2021-22 में 170.96 करोड़ रुपए से घटाकर 2022-23 में 22.97 करोड़ कर दिया। वहीं आदिवासी समुदाय के लिए साल 2021-22 के 89.50 करोड़ रुपए को घटाकर 2022-23 में 11.30 करोड़ कर दिया गया।
श्रम कल्याण बजट एससी का 24.90 करोड़ घटा कर 19.88 करोड़ और एसटी का 12.90 करोड़ से घटाकर 10.66 करोड़ कर दिया।
एनसीडीएचआर का विश्लेषण इस यह भी बताता है कि, एसटी और एससी के बजट की राशि बहुत सामान्य योजनाओं में लगा दी जाती है। जिससे दलित-आदिवासियों का हक मारा जाता है।
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