भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में राज्य सरकार द्वारा डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी नगर मार्ग (कोलार सिक्सलेन मार्ग) 15.10 किमी प्रस्तावित हुआ था। प्रस्तावित मार्ग कार्य अक्टूबर 2022 से प्रारंभ हो चुका है। मार्ग की लागत 222 करोड़ रुपए बताई जा रही है, जिसे 11 महीने में तैयार किया जाना है।
यह सिक्सलेन (छः लेन) मार्ग का निर्माण वहां तक तो ठीक नज़र आ रहा है जहां लोगों के घर मार्ग निर्माण में नहीं जा रहे। लेकिन जहाँ लोगों के घर और झुग्गियाँ मार्ग निर्माण में अडंगा बन रहे हैं, वहां उनको तोड़ा जा रहा है। शहर में बसे दलित, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और पिछड़ा वर्ग के संसाधन हीन लोगों की करीब 60 झुग्गियाँ और घरों को तोड़ा जा चुका है। इस कार्यवाही में हजार के करीब लोगों के प्रभावित होने की आशंका है।
घर तोड़े जाने के बाद लोगों के हालात बद से बदतर हो गए हैं। एक ओर भीषण ठंड में खुले आसमान में सोने से बच्चे और लोग बीमार हो रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर लोगों के काम, धंधे चौपट हो गए हैं। घर तोड़े जाने के बहुत दिन बाद भी लोगों की बसाहट के लिए प्रशासन द्वारा कोई व्यवस्था नहीं की गई।
ऐसे में भोपाल के एक एडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता मोहन दीक्षित ने लोगों और उनकी धराशायी की गई झुग्गियों की बदहाल दशा देखकर हाई कोर्ट में अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर की है। इस याचिका में लिखा गया कि, उचित पुनर्वास की अपील करने का कोई नोटिस, समय और अवसर दिये बिना ही 25 सालों से निवासरत 60 लोगों की झुग्गियाँ तोड़ी गईं।
उच्च न्यायालय में प्रस्तुत जनहित याचिका पर दिनांक 31 जनवरी को माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर की युगल पीठ के समक्ष सरकार के अधिवक्ता की ओर से दलील दी गई कि सरकार उपरोक्त झुग्गी बस्ती के निवासियों को ईडब्ल्यूएस फ्लैट या 170000 रुपए की राशि मुहैया कराने पर विचार कर रही है, जिस पर माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में प्रतिवादी पक्षकारों को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब मांगा है।
सिक्सलेन निमार्ण में जिन लोगों की झुग्गियाँ तोड़ी गयी है, उनका जीवन किस तरह प्रभावित हो रहा है? यह जानने के लिए द मूकनायक ने प्रभावितों से बातचीत की, "हम बहुत गरीब हैं। हमारा मकान बिना नोटिस दिए बिना तोड़ दिया है। हमको कुछ तो मिलना चाहिए, हम भी इंसान हैं। हमसे कहा गया था जगह देंगे, पर मिला कुछ भी नहीं," आदिवासी समाज के देवीराज भील ने कहा।
आदिवासी समाज की शकुंतला के शब्दों का दर्द कुछ यूं नजर आता है, "रोड में हमारा मकान सहित आंगन भी एक दम से तोड़ा गया। अब वहाँ गड्ढे किए गए हैं। जो पानी से भरे हैं। हमें यह डर लगता है कि छोटे-छोटे बच्चे गड्ढे में ना गिर जाएं।"
आगे अमन शेख अपनी बात रखते हुए कहते हैं कि "मेरी दुकान तोड़ दी गई। अब कहाँ जाएं। हम पर जीविका का संकट मंडरा रहा है।"
केवलती बताती हैं, "हमारा टायलेट और स्नानघर तक तोड़ दिया। ऐसे में कहां नहाये और कहां फ्रेश होने जायें? ये समझ नहीं आ रहा।"
स्थानीय निवासी कैलाश बताते हैं कि, "1984 में मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के समय हमको पट्टे दिये गये। पट्टा होने के बावजूद भी हमारे मकान तोड़े गये। पट्टे अब कागज बन कर रह गये हैं।"
सामाजिक कार्यकर्ता मोहने दीक्षित से द मूकनायक ने याचिका और इस मामले के संबंध में बात की। वह कहते हैं, "एक रात 11:30 बजे मैं कोलार मार्ग से गुजरा तब मैंने देखा जिन लोगों के मकान तोड़े गये। वे लोग, उम्रदराज बुजुर्ग, बच्चे, महिलाएं ऐसी ठंड में बाहर सो रहे हैं। यह मुझे बर्दाश्त ना हुआ और मैंने याचिका लगा दी।" जब द मूकनायक ने इस मामले का कानूनी पक्ष जानना चाहा? तब एडवोकेट मोहने दीक्षित बताते हैं कि, "लोगों के घर तोड़े जाने से पूर्व प्राथमिक नोटिस दिया जाना था, लेकिन नहीं दिया गया। अगर हम कानूनी पक्ष नजरंदाज भी कर दें, तब भी मानवीय पक्ष के लिहाज से लोगों के घरों को तोड़ना ठीक नहीं हैं।"
दीक्षित आगे यह भी बताते हैं कि, "आशंका है कि बाकी लोगों के भी घर तोड़े जा सकते हैं।"
सिक्सलेन रोड परियोजना में जिन लोगों के घर तोड़े गये हैं। यदि उनका पुनर्वास किया जाता है, तब पुनर्वास नीति 2013 के तहत लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जमीन पट्टा, सड़क, बिजली, पानी जैसी अन्य सुविधाएं देने का प्रावधान है। सरकार द्वारा विकास के लिए ऐसी परियोजनाएं लाने से लोगों को परेशानी नहीं होती, बशर्ते लोगों के आर्थिक, समाजिक, सांस्कृतिक व अन्य विकास का ध्यान रखा जाए, जिससे लोगों के गरिमामयी जीवन जीने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21) पर संकट ना हो।
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