लक्ष्मणपुर बाथे हत्याकांड बिहार के अरवल जिले के लक्ष्मणपुर बाथे गांव में रणवीर सेना (उच्च जाति के लोगों का समूह) द्वारा दलितों पर किए गए सबसे क्रूरतम नरसंहारों में से एक भयावह घटना थी। जहां 58 अनुसूचित जाति (एससी) के लोगों को रणवीर सेना के सदस्यों द्वारा बारा नरसंहार — जिसमें 37 सवर्ण जाति के लोग मारे गए थे — के प्रतिशोध में मार डाला गया था। हालाँकि, बारा नरसंहार में मारे गए लोगों के पीछे लक्मणपुर बाथे गांव के दलितों से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं था, और न ही किसी दलित ने सवर्णों की हत्या की थी।
लक्ष्मणपुर बाथे बिहार में अरवल जिले का एक गाँव है, जो पटना मुख्यालय से लगभग 90 किमी दूर सोन नदी पर स्थित है। बिहार के भोजपुर, पटना, गया, जहानाबाद और अरवल वह इलाके थे जहां एक समय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टियों का बोलबाला हुआ करता था। बताया जाता है कि यहां पर उन लोगों ने नाकेबंदियां कर दी थी कि जमीदार अपनी ही जमीन पर न जा पाएं। इस सख्ती को लेकर स्थानीय लोगों में गुस्सा बढ़ा तो 1996 के आसपास एक मिलिटेन्ट संगठन [ऐसा संगठन जो संख्याबल और हथियारों के बल पर अपने उद्देश्यों की पूर्ति करे] बनाने की बात हुई। राजपूतों ने सोचा कि एक मिलिटेन्ट संगठन बनाया जाए, और अपनी जमीन पर अपना हक मिलिटेन्ट तरीके से क्लेम किया जाए। इस मिलिटेन्ट संगठन को ‘रणवीर सेना’ नाम दिया गया। सीधे अर्थों में कह सकते हैं कि रणवीर सेना नक्सलियों से मुकाबला करने के लिए बनाया गया था.
1 दिसंबर 1997 की रात सोन नदी के रास्ते से होकर आए रणवीर सेना के लोगों ने लक्ष्मणपुर बाथे गांव के 58 दलितों की हत्या कर दी। गर्भवती महिलाओं, दुधमुहा बच्चों और बुजुर्गों का क़त्ल करने के बाद सोन नदी से वापस भोजपुर लौटते समय रणवीर सेना के लोगों ने सबूत मिटाने के लिए उन दो मल्लाहों का भी गला काट दिया जिन्होंने उनको वह नदी पार कराया था।
रात करीब 11 बजे लक्ष्मणपुर बाथे गांव में पहुंचे रणवीर सेना के लोग दरवाजे तोड़कर झोपड़ियों में घुस गए और सो रहे दलितों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी। लगभग तीन घंटे से अधिक समय तक चले हमले में सोन नदी के तट पर स्थित लक्ष्मणपुर बाथे की पूरी बस्ती लगभग तबाह हो गई थी। इस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था।
लक्ष्मणपुर बाथे गांव के निवासी लक्ष्मण (61) उस दिन की घटना के चश्मदीद थे। वह बताते हैं कि उस दिन रात में 20-25 लोग गांव में आए थे। पास के एक घर की ओर इशारा करते हुए वह बताते हैं कि “सबसे पहले वे लोग इस घर पर आए। इस घर के पांच लोगों को मार दिए। उसके बाद मेरे घर आए, और मेरे घर के 3 लोगों — जम्हुरा देवी, मालती देवी, प्रभा देवी — पत्नी, बहु, बेटी — की हत्या कर दिए।”
लक्ष्मण आगे बताते हैं कि, “गांव में पहले से किसी भी तरह का तनाव नहीं था। अगर किसी को इस बात की तनिक भी जानकारी होती कि इतनी बड़ी घटना होने वाली है तो लोग भाग गए होते।” वह बताते हैं कि “जिन लोगों ने गांव में आकर हत्याएं की थी वह लोग उन्हें मामले में गवाही न करने के लिए 70-75 लाख रुपए का ऑफर दे रहे थे। ज्यादातर लोग इसी गांव के थे जो उस दिन हत्या करने आए रणवीर सेना के लोगों का साथ दे रहे थे, जिनमें भूमिहार व राजपूत शामिल थे। गांव में आने से पहले उन लोगों ने गांव के बाहर एक बैठक की थी। उनके पास हथियार के रूप में सिक्सर, राइफल और काटने के लिए कांता था,” लक्ष्मण ने बताया।
“उन लोगों का सिविल कोर्ट से सजा हो गया था। फिर ये लोग (आरोपी) खेत बेच-बेचकर जज, वकील और कुछ लोगों को 1 करोड़ रुपए दिए। उसके बाद उन लोगों को हाईकोर्ट से बरी कर दिया गया। तब हम सुप्रीम कोर्ट में अपील किए,” लक्ष्मण ने आरोप लगाते हुए कहा।
मारे गए लोगों में 27 महिलाएं और 16 बच्चे शामिल थे। लक्ष्मणपुर बाथे गांव में एक शहीदस्मारक भी बनाया गया है, जिसपर गांव के उन 58 दलितों के नाम लिखे गए हैं जिनकी निर्मम हत्या कर दी गई थी। इनमें कई ऐसे थे जिनकी उम्र बहुत कम थी। मारे गए लोगों में जिनकी उम्र कम थी — रीता देवी (15), कबूतरी कुमारी (12), अमर पासवान (8), कुँवर पासवान (6), अनुज कुमार (4), उमानाथ चौधरी (8), अनीता कुमारी (3), सविता कुमारी (5), चांदी कुमारी (10), रोहन पासवान (10), अरविन्द चौधरी (5), सुमित्रा कुमारी (½), सरोज (11), विश्वनाथ राजवंशी (10), छोटेलाल (1) शामिल हैं। इसके अलावा कई ऐसी भी महिलाओं की हत्या की गई थी जो गर्भवती भी थीं। कई बहुओं को भी मौत के घाट उतार दिया गया जो शादी करके नई-नई आईं थीं।
पीड़ित, भूमिहीन कृषि श्रमिक और उनके परिवार, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पार्टी एकता के समर्थक थे। लक्ष्मणपुर-बाथे गांव को इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि रणवीर सेना के सदस्यों का मानना था कि गांव के दलित, ज्यादातर गरीब और भूमिहीन, 1992 में गया जिले के बारा में 37 उच्च जाति के लोगों की हत्या के पीछे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के पक्षधर थे। हालांकि, उन 37 उच्च जाति के लोगों की हत्या दलितों ने नहीं की थी. दलित मात्र उनकी पार्टी के समर्थक थे.
इस नरसंहार के पीछे की एक और वजह बताई जाती है कि हत्यारों का मुख्य उद्देश्य मध्य बिहार में शक्तिशाली जमींदारों की पकड़ मजबूत करने के लिए CPI(ML) पार्टी एकता के हमदर्दों को आतंकित करना था।
घटना पर तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन ने मध्य बिहार में 58 दलितों की सामूहिक हत्या पर दुख और निराशा व्यक्त की थी। अपनी कड़ी प्रतिक्रिया में उन्होंने इस नरसंहार को "राष्ट्रीय शर्म" करार दिया था.
उस समय बिहार में लालू प्रसाद के नेतृत्व वाली राजद पार्टी से रावड़ी देवी शासन में थी। घटना की सूचना पर अटल बिहारी बाजपेयी और तत्कालीन सीएम गांव में आए। मामले में सीबीआई जांच का आदेश हुआ, लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि सभी आरोपियों को पटना हाईकोर्ट द्वारा बरी कर दिया गया।
इस घटना पर बिहार की एक अदालत ने 16 आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी और अतिरिक्त जिला न्यायाधीश विजय प्रकाश मिश्रा ने दस अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और प्रत्येक पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था। फैसला सुनाते हुए, सत्र न्यायाधीश मिश्रा ने हत्याओं को "सभ्य समाज पर कलंक और क्रूरता के दुर्लभतम मामलों" के रूप में वर्णित किया था।
मौत की सजा पाने वालों में गिरिजा सिंह, सुरेंद्र सिंह, अशोक सिंह, गोपाल शरण सिंह, बालेश्वर सिंह, द्वारका सिंह, विजेंद्र सिंह, नवल सिंह, बलिराम सिंह, नंदू सिंह, शिवमोहन शर्मा, प्रमोद सिंह, शत्रुघ्न सिंह, रामकेवल शर्मा, धर्म सिंह और नंद सिंह, शामिल थे. सभी उच्च जाति समुदाय से संबंधित थे। जबकि आजीवन कारावास की सजा पाने वालों में बबलू शर्मा, अशोक सिंह, मिथिलेश शर्मा, धारिकशन चौधरी, नवीन कुमार, रवींद्र सिंह, सुरेंद्र सिंह, सुनील कुमार, प्रमोद कुमार और चंद्रेश्वर सिंह शामिल थे। दो अन्य आरोपी भूखल सिंह और सुदर्शन सिंह की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी.
9 अक्टूबर 2013 को, पटना उच्च न्यायालय ने "सबूतों की कमी" के कारण सभी 26 अभियुक्तों को बरी कर दिया। कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ CPI(ML) ने पूरे मध्य बिहार में बंद का आवाहन भी किया था।
सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा था कि, "क्या यह महज संयोग है कि ऐसे अन्य मामलों में भी जहां दलितों को उच्च जाति की निजी सेनाओं द्वारा मार डाला गया था, अभियुक्तों को बरी कर दिया गया है?" पार्टी ने पूछा था और मांग की थी कि बिहार सरकार को "इस त्रुटिपूर्ण फैसले के खिलाफ अविलंब अपील करनी चाहिए।"
एक बयान में, CPI-ML (लिबरेशन) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा था कि बाथे नरसंहार को तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने घटना को 'राष्ट्रीय शर्म' करार दिया था। उन्होंने कहा था कि, "हत्यारों को बरी किए जाने से पता चलता है कि दलितों के लिए न्यायिक पक्षपात और न्याय से इनकार करना एक और भी बदतर राष्ट्रीय शर्म है।"
घटना पर आये पटना हाईकोर्ट के आदेश पर लोगों की प्रतिक्रियाएं थी की कि उच्च न्यायालय के फैसले को मीडिया में वह तवज्जो नहीं मिली जिसका वह हकदार था। नरसंहार के अभियुक्तों के बरी होने के तत्कालीन मामले के समय भारतीय मेनस्ट्रीम मीडिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट से संन्यास की खबर परोस रही थी.
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