नई दिल्ली। सद्गुरु जग्गी वासुदेव द्वारा संचालित ईशा फाउंडेशन के खिलाफ विवाद और भी गहराता जा रहा है। इस मामले में अब ओबीसी महासभा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। ओबीसी महासभा के कोर कमेटी सदस्य धर्मेंद्र कुशवाह ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ रिट पिटीशन दायर की है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि ईशा फाउंडेशन सहित अन्य धार्मिक संस्थान 2013 में बनाए गए "कार्यस्थल पर महिलाओं के लैंगिक उत्पीड़न से सुरक्षा" संबंधी कानून का पालन नहीं कर रहे हैं।
ओबीसी महासभा का आरोप है कि धार्मिक संस्थानों में 2013 के लैंगिक उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम का ठीक से पालन नहीं हो रहा है। अधिवक्ता वरुण ठाकुर द्वारा दायर याचिका में यह भी कहा गया है कि ईशा फाउंडेशन ने इस कानून की अनदेखी की है, जो कार्यस्थलों पर महिलाओं के शोषण से बचाव के लिए बनाया गया था। इस याचिका में विशेष रूप से ईशा फाउंडेशन के एक डॉक्टर पर 12 लड़कियों के साथ छेड़छाड़ के आरोप का उल्लेख किया गया है, जो इस मामले को और भी गंभीर बनाता है।
इस विवाद का एक प्रमुख मुद्दा मद्रास हाईकोर्ट में उठाया गया था, जब एक रिटायर्ड प्रोफेसर एस. कामराज ने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियों, लता और गीता, को ईशा फाउंडेशन में बंधक बनाकर रखा गया है और उनका ब्रेनवॉश किया जा रहा है। इस याचिका के चलते मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस को ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी क्रिमिनल मामलों की जानकारी प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। पुलिस ने आश्रम की जांच के लिए कार्रवाई की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस मामले में किसी भी आगे की कार्रवाई पर रोक लगा दी है।
ओबीसी महासभा ने धार्मिक संस्थानों में कानून के क्रियान्वयन की सख्त जरूरत पर जोर दिया है। महासभा का कहना है कि धार्मिक संस्थानों में महिलाओं के कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों की संख्या बढ़ रही है और इन मामलों को रोकने के लिए 2013 के अधिनियम का सख्त पालन सुनिश्चित करना आवश्यक है। धर्मेंद्र कुशवाह का कहना है कि "जहां भी 10 से अधिक लोग कार्य करते हैं, वहां जेंडर कमेटी का गठन अनिवार्य है। ईशा फाउंडेशन ने इस कानून का उल्लंघन किया है, इसलिए उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।"
इस मामले में ओबीसी महासभा ने अन्य धार्मिक संस्थानों पर भी सवाल उठाए हैं। धर्मेंद्र कुशवाह ने द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए कहा, "धीरेंद्र शास्त्री, प्रदीप मिश्रा, अनिरुद्ध आचार्य, देवकीनंदन ठाकुर जैसे बड़े धार्मिक नेता भी इस कानून का उल्लंघन कर रहे हैं। यह सिर्फ ईशा फाउंडेशन तक सीमित मामला नहीं है, बल्कि अन्य धर्मों के संस्थान भी इसमें लिप्त हैं। न्यायालय को सभी धर्मों के धार्मिक संस्थानों में जेंडर कमेटी की समीक्षा करनी चाहिए।"
धर्मेंद्र कुशवाहा ने ईशा फाउंडेशन और अन्य धार्मिक संस्थानों पर 2013 के लैंगिक उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम के उल्लंघन का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि ऐसे संस्थानों में महिलाओं के साथ हो रहे शोषण को रोकने के लिए जेंडर कमेटी का गठन अनिवार्य है, परंतु ईशा फाउंडेशन जैसे संस्थान इस कानून का पालन नहीं कर रहे हैं। कुशवाहा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सख्त कार्रवाई की मांग की है, ताकि धार्मिक संस्थानों में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
उन्होंने यह भी कहा कि यह समस्या केवल ईशा फाउंडेशन तक सीमित नहीं है। धीरेंद्र शास्त्री, प्रदीप मिश्रा, अनिरुद्ध आचार्य और देवकीनंदन ठाकुर जैसे अन्य बड़े धार्मिक नेताओं के संस्थान भी इस कानून का उल्लंघन कर रहे हैं। कुशवाहा ने न्यायालय से अपील की कि सभी धार्मिक संस्थानों में जेंडर कमेटी की समीक्षा की जाए, ताकि महिलाओं के साथ होने वाले शोषण को रोका जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अब तक चार महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं:
1. मामले को मद्रास हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किया जाए।
2. याचिकाकर्ता या उनके वकील वर्चुअल रूप से पेश हो सकते हैं।
3. पुलिस जांच की स्टेटस रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की जाए।
4. पुलिस हाईकोर्ट के निर्देशों के आधार पर किसी प्रकार की आगे की कार्रवाई नहीं करेगी।
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