महाराष्ट्र। वर्धा जिले के सेवाग्राम गांधी आश्रम में संविधान विकास संवाद की ओर से संविधान पर चर्चा आयोजित की गई। इस दौरान मध्यप्रदेश के वकीलों और पत्रकारों को विकास संवाद परिषद (सामाजिक नागरिक संस्था) भोपाल द्वारा फ़ेलोशिप प्रदान की गई। फैलोशिप का लक्ष्य संविधान में वर्णित स्वतंत्रता, समानता, न्याय, बंधुता जैसे संवैधानिक मूल्यों को समझना, महसूस करना और जमीन पर उतारना है। फेलोशिप के इस दूसरे चरण में संविधान विशेषज्ञ और लेखकर आरएन स्याग, गौतम भाटिया बिपिन कुमार, अंबर फातमी, आशाताई शरीक हुईं।
कार्यक्रम में बताया गया कि भारत में जाति, धर्म, जेंडर, भाषा, क्षेत्रीयता, संस्कृति आदि को समेटना भारतीय संविधान की खूबी रही है जो कि संवैधानिक मूल्यों की वजह से संभव हो पाया है। संवैधानिक मूल्य नागरिकों को गरिमापूर्ण जीवन जीने का आधार देते है, लेकिन आजादी के सात दशक बाद भी सामाजिक कुप्रथाओं और संवैधानिक मूल्यों की तकरार बरकरार है।
आगे के संवाद में इस बात को रखा गया कि, संविधान एक किताब नहीं भारतीय इतिहास की सबसे व्यापक उपलब्धि है। संविधान से ही वास्तविक व्यवस्था का आना संभव हो पाया हैै।
संवैधानिक मूल्य दुनिया के सबसे असाधारण मूल्य है। हमारा संविधान इसलिए अनूठा है, क्योंकि संविधान में अहिंसात्मक धारा का जरा सा भी जर्रा नहीं आता है।
दूसरे सत्र में बताया कि हमारे बोलने, कार्य और व्यवहार में कैसे संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन होता है। जैसे उदाहरण के तौर पर यदि सरकारी राशन की दुकान पर आपके साथ बदसलूकी की जाती है, तब यह संविधान की प्रस्तावना में वर्णित बंधुता जैसे संवैधानिक मूल्य का उल्लंघन होगा। ऐसे ढेरों उदाहरण आये दिन हमें अपनी दिनचर्या में नजर आते हैं, जिसमें हमारे संवैधानिक मूल्य प्रभावित होते हैं।
आयोजन में आगे बताया गया कि संविधान लोकतंत्र को चलाने वाली गीता है, लेकिन संविधान की दीवार को आज लगातार चटकाने की कोशिश की जा रही है।
आयोजन के अगले दिन फैलो वकीलों और पत्रकारों ने संवैधानिक मूल्यों पर आधारित अपनी रिपोर्ट भी प्रदर्शित की। इन रिपोर्ट में यह बताया गया कि कैसे संवैधानिक मूल्यों की अनदेखी की जाती हैै।
जैसे जब फैलो वकील अमीन खान की रिपोर्ट को देखते हैं, तब हमें रिपोर्ट बताती है कि, "आदिवासी जैसे अन्य समूह के लोगों को आज भी बंधुआ मजदूर बना कर रखा जाता है। ऐसे बंधुआ बन चुके मजदूरों पर अत्याचार भी किया जाता है, जिससे मजदूरों के जीवन जीने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21) बाधित होती हैै।"
ऐसे ही विभिन्न विषयों पर संवैधानिक मूल्यों पर आधारित अन्य रिपोर्ट भी पेश की गयी।
इस समारोह में आये जाने-माने संविधान विशेषज्ञ गौतम भाटिया का व्याख्यान विशेष रहा। गौतम भाटिया अपने वक्तव्य में कहते हैं कि, "संवैधानिक मूल्यों की वजह से संविधान राजनैतिक और सामाजिक परिवर्तनकारी हो गया। राजनैतिक लोकतंत्र हमने ले लिया, लेकिन हम सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र कब ले पाएंगे? बाबा साहब की सोच थी कि आर्थिक न्याय अधिकारों के रूप में आये, मगर नहीं आ पाया।"
भाटिया आगे बताते हैं कि, "अनुच्छेद 15, 17 और 23 में आंबेडकर और भी बिंदू जोड़ना चाहते थे, लेकिन वह बिंदू जोड़े नहीं जा सके।"
इस तीन दिवसीय समारोह के अंतिम दिन संवैधानिक मूल्यों पर आधारित "वार्षिक कैलेण्डर" का विमोचन किया गया। इस कैलेण्डर को विमोचित करने के पीछे का लक्ष्य संवैधानिक मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाना है। वहीं समारोह में विकास संवाद परिषद के संस्थापक सचिन जैन कि किताब, "भारत का संविधान: महत्वपूर्ण तथ्य और तर्क" का भी विमोचन किया गया। इस आयोजन में मूल रूप से संवैधानिक मूल्यों को जीने, पहल करने और व्यापक दायरे तक पहुंचाने का संदेश दिया गया।
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