सीवर सफाई के दौरान मौत पर 30 लाख रुपए का मुआवजा, जानिए सुप्रीम कोर्ट और क्या-क्या दिए निर्देश?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाथ से मैला धोने की प्रथा पूरी तरह से खत्म हो।
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट फोटो साभार- इंटरनेट
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी अथॉरिटी को सीवर सफाई (sewer cleaning) के दौरान कर्मी की मौत होने पर उनके परिजनों को 30 लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश जारी किया है। अगर कोई मजदूर हमेशा के लिए दिव्यांग का शिकार हो जाता है, तो 20 लाख मुआवजा देना होगा। कोर्ट ने सरकारों से कहा कि उन्हें तय करना होगा कि हाथ से मैला सफाई रुके।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा, कि हाथ से मैले की सफाई को पूरी तरह से रोका जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई है, कि अभी तक यह पुरानी रीति चली आ रही है। कोर्ट ने कहा है कि यह पैसे की लड़ाई नहीं है, बल्कि मानवीय व्यक्तित्व के स्वतंत्रता को बहाल करने की लड़ाई है।

न्यायमूर्ति भट ने कहा, ‘‘यदि आपको वास्तव में सभी मामलों में समान होना है, तो संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 15(2) जैसे मुक्तिदायक प्रावधानों को लागू करके समाज के सभी वर्गों की जो प्रतिबद्धता दी है, उस पर हममें से प्रत्येक को अपने वादे पर खरा उतरना होगा। केंद्र और राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हैं कि हाथ से मैला साफ करने (manual scavenging) की प्रथा पूरी तरह खत्म हो। संविधान के अनुच्छेद 15(2) में कहा गया है कि सरकार किसी भी नागरिक के खिलाफ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी।’’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार सख्त और कारगर कदम उठाए। यह विक्टिम के लिए मुआवजा के साथ-साथ परिजनों के लिए स्कॉलरशिप और कौशल वाले प्रोग्राम चलाएं। हम सभी को अपनी ड्यूटी पर खरा उतरना होगा। राज्य और केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा, कि वह पूरी तरह से इसे लागू करें। अदालत ने कहा कि हाथों से मैला सफाई और सीवर सफाई करने वाले लोग एक अमानवीय परिस्थितियों में फंसे हुए हैं। यह वैसे लोग हैं, जो अनसुने हैं, और मौन है। हम सभी पर सच्चे भाईचारे को साकार करने की ड्यूटी है। कोर्ट ने कहा कि यह पैसे की लड़ाई नहीं बल्कि मानवीय व्यक्ति बाहर करने की लड़ाई है।

पूरी तरह से विकलांगता पर मिले मुआवजा

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, अगर कोई पूरी तरह दिव्यांगता का शिकार हो जाता है तो उसे मुआवजे के तौर पर 20 लाख रुपए का भुगतान किया जाए। अगर कोई मजदूर सफाई काम के कारण दिव्यांग हो जाता है। तो उसे मुआवजे के तौर पर 10 लख रुपए का भुगतान किया जाए।

सरकारी अथॉरिटी तय करें ऐसी घटना ना हो

अदालत ने कहा है कि सरकार के अथॉरिटी को यह तय करना होगा इस तरह की घटना ना हो। 13 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र से कहा था कि वह राज्यों के सेक्रेटरी के साथ मीटिंग करें और हाथों से मैले की सफाई रोकने को लेकर तमाम पहलुओं पर बातचीत करें।

सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर हाथ से मैले की सफाई रोकने के लिए अर्जी दाखिल की गई थी। कोर्ट ने फरवरी में केंद्र से कहा था कि वह बताएं कि इस मामले में बने 2013 के कानून को लागू करने के लिए क्या-क्या कदम उठाए हैं। केंद्र सरकार बताए कि 2014 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के तहत जारी गाइडलाइन को लागू करने के लिए क्या कदम उठाए हैं।

2014 में भी दिए गए थे कई निर्देश

  • सीवर की खतरनाक सफाई के लिए किसी मजदूर को ना लगाया जाए।

  • बिना सेफ्टी के सीवर लाइन में मजदूर को न उतारा जाए।

  • कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान हो।

पिछले पांच सालों में कितने लोगों की जान गई?

जुलाई 2022 में लोकसभा में उद्धृत सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कम से कम 347 लोगों की मौत हुई, जिनमें से 40 प्रतिशत मौतें उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और दिल्ली में हुईं।

सफाई के दौरान कर्मियों की मौत को लेकर पिछले कुछ सालों से लगातार सवाल उठ रहे हैं। पिछले साल ही संसद के एक स्टैंडिंग कमेटी ने भी सफाई के दौरान मारे गए 104 लोगों के परिवारों को मुआवजा जारी करने में देरी पर निराशा व्यक्त की थी। इससे पहले 2014 में सुप्रीम कोर्ट आदेश दिया था कि सफाई के दौरान करने वाले लोगों के परिवारों को 10 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए। संसद की एक कमेटी ने इस बात का पता लगाने के लिए कहा था कि सुरक्षा के मानक के बावजूद सीवर और सेप्टिक टैंक साफ करते समय कर्मचारियों की मौत क्यों हो रही है। इसके बाद इसी साल बजट में ऐलान किया गया था कि सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई अब पूरी तरह से मशीनों के माध्यम से होगी। इसके लिए 100 करोड़ की 'नमस्ते' योजना शुरू की गई थी। वहीं यह बात भी चिंता की सामने आई थी कि इन कर्मियों में अधिकतर दलित हैं।

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