नई दिल्ली। समाज के सबसे कमजोर वर्गों की आवाज को प्लेटफार्म देने के लिए द मूकनायक के प्रयासों को एक और बढ़ावा मिला जब न्यूज एशिया चैनल ने डॉक्यूमेंट्री जिसका शीर्षक इनसाइट 2023/2024 द कास्ट क्राइम एण्ड कांशसनेस में इसके संस्थापक और प्रधान संपादक मीना कोटवाल को भी शामिल किया। कोटवाल इस बात पर चर्चा करती नजर आ रही हैं कि डॉ बीआर अम्बेडकर के नाम पर बनी दलित-मुस्लिम बहुल कॉलोनी में उनका पालन-पोषण कैसे हुआ। वहीं एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मीडिया में नौकरी के दौरान उनको किस तरह जाति आधारित भेदभाव को झेलना पड़ा।
द मूकनायक की 34 वर्षीय संस्थापक ने खुलासा किया कि वह भर्ती होने वाली एकमात्र दलित थीं। वह भी अनुबंध पर। 46 मिनट की डॉक्यूमेंट्री में कोटवाल कहती है कि केवल मैं ही अनुबंध पर थी। कोई और नहीं। उन्होंने आगे खुलासा किया कि लंदन स्थित उनके समाचार संगठन के मुख्यालय में उनसे जाति आधारित पूछताछ की गई थी और मायावती और डॉ बी आर अम्बेडकर पर कई बार अभद्र टिप्पणी की गई थीं। मुख्यधारा मीडिया में अपने अनुभव को बताते हुए वह कहती हैं यदि कोई दलित अपने अधिकारों और अपने आस-पास के माहौल के बारे में मुखर है तो उसे बिल्कुल भी काम पर नहीं रखा जाएगा।
द मूकनायक की स्थापना के बारे में बात करते हुए वह कहती हैं कि मैं केवल जाति और लिंग के मुद्दों पर काम करना चाहती थी। फिलहाल द मूकनायक बहुत अच्छा काम कर रहा है।
गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है कि द मूकनायक को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में जगह मिली है। न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, डॉयचे वेले व वॉयस ऑफ अमेरिका कुछ ऐसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया घराने हैं, जिन्होंने द मूकनायक के काम और इसके संस्थापक मीना कोटवाल के संघर्षों को शोकेस किया है।
डाक्यूमेंट्री में दलित समुदाय के अन्य बुद्धिजीवियों और राजनेताओं को भी शामिल किया गया है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के प्रमुख प्रोफेसर विवेक कुमार यह कहकर जाति व्यवस्था को चित्रित करते हैं कि प्रमुख वर्ग - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और यहां तक कि अन्य पिछड़े वर्ग जिनके पास जमीनें हैं, वे चाहते हैं कि दलित उनकी सेवा करते रहें।
भीम आर्मी के सह-संस्थापक और अध्यक्ष चन्द्रशेखर आजाद फिल्म और नोट्स में दिखाई देते हैं वे कहत है कि अत्याचार के मामले में मध्य प्रदेश शीर्ष पर है, इसके बाद राजस्थान है। मध्य प्रदेश में भाजपा का शासन है, जबकि राजस्थान में कांग्रेस का शासन है। इसका मतलब है कि सरकारें बदल रही हैं, लेकिन प्रशासन में बैठे लोगों और सत्ता में बैठे लोगों की मानसिकता नहीं बदल रही है।
फिल्म में दिखाई देने वाले एक अन्य पत्रकार संजीव चंदन हैं, स्त्रीकाल के संपादक, जो जातिगत भेदभाव की बारीकियों को बताते हैं और कहते हैं कि भेदभाव अक्सर बहुत सूक्ष्म और कभी-कभी अदृश्य होता है, और आप इसे उच्च जाति के चश्मे से नहीं समझ सकते हैं।
दलित अधिकार केंद्र के सतीश कुमार जयपुर में जातिगत भेदभाव की भयावहता को याद करते हुए कहते हैं कि जब मकान मालिक को मेरी जाति के बारे में पता चला तो मुझे किराए पर कमरा देने से इनकार कर दिया गया। सतीश आगे कहते हैं कि राजस्थान एक सामंती राज्य है , और यहां तक कि जब हम बस में यात्रा कर रहे होते हैं, तो कोई भी यात्री हमारी जाति के बारे में जानना चाहता है।
46 मिनट और 17 सेकेंड की डॉक्यूमेंट्री राजस्थान में विधानसभा चुनावों और 2024 के आम चुनावों से पहले दलित समुदाय की स्थिति पर प्रकाश डालती है, जिसमें दलितों पर जातिगत अत्याचार और हर स्तर पर उनके साथ होने वाले भेदभाव पर प्रकाश डाला गया है। इंदर मेघवाल और जीतेंद्र मेघवाल, चुनावी राज्य राजस्थान में जाति आधारित हिंसा के शिकार - जालोर जिले के इंदर मेघवाल की कथित तौर पर तब हत्या कर दी गई जब उन्होंने ऊंची जातियों के लिए बने घड़े से पानी पी लिया, जबकि जीतेंद्र मेघवाल की हत्या अच्छे कपड़े पहनने के लिए कर दी गई। डॉक्यूमेंट्री दर्शकों को उन मामलों की पृष्ठभूमि से परिचित कराने के लिए घटनाओं के पुनर्मूल्यांकन का उपयोग करती है, जिन मामलों का वह दस्तावेजीकरण कर रही है। डॉक्यूमेंट्री को उत्तर प्रदेश के बरेली में भी शूट किया गया है, जहां सचिन नाम के एक दलित युवक को बच्चे के जन्म के बाद मिठाई नहीं देने पर कथित तौर पर ऊंची जाति के लोगों द्वारा मार दिया गया था।
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