नई दिल्ली। दिल्ली में पुलिस उच्च अधिकारियों के सम्मेलन में रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर चर्चा की गई। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार मेघालय में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी द्वारा पिछले सप्ताह के वार्षिक अखिल भारतीय सम्मेलन में प्रस्तुत एक पेपर में कहा गया है कि बांग्लादेश और म्यांमार अपनी सीमाओं के माध्यम से भारत में प्रवेश करने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों को कभी वापस स्वीकार नहीं करते हैं और केंद्र सरकार को विदेशियों के लिए विशेष रूप से रोहिंग्या के लिए एक नीति तैयार करनी चाहिए।
मेघालय में डीआईजीपी (पूर्वी रेंज) के रूप में तैनात वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी, डेविड एनआर मारक द्वारा पेश किए दस्तावेज, जिसका शीर्षक "भारत में लंबे समय तक रहने वाले विदेशियों की पहचान और उनके निर्वासन की ठोस रणनीति”, में यह बताया गया है कि "मेघालय बांग्लादेश के साथ एक लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है और इसलिए विशेष रूप से विदेशियों, बांग्लादेशी नागरिकों और रोहिंग्या शरणार्थियों के अवैध अप्रवासन की समस्या का भी सामना इस राज्य को करना पड़ता है। यहां तक की इस क्षेत्र में कुछ मामलों में, अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी रैकेट का भंडाफोड़ किया गया है।
अधिकारी ने यह भी बताया कि “मेघालय पुलिस का यह भी अनुभव है कि पूर्वोत्तर राज्यों का उपयोग न केवल बांग्लादेशी या म्यांमार के नागरिकों द्वारा भारत में अवैध प्रवेश के लिए किया जा रहा है, बल्कि पूर्वोत्तर राज्यों का उपयोग मानव तस्करी के गलियारे के रूप में भी किया जाता है।”
“रोहिंग्या मुद्दा और भी जटिल है क्योंकि वे म्यांमार के शरणार्थी हैं जो अब बांग्लादेश से भारत में घुसपैठ कर रहे हैं। जब भी अवैध रोहिंग्या शरणार्थियों को पकड़ा जाता है और बांग्लादेश या म्यांमार में निर्वासन (देश निकाला) के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू की जाती है तो दोनों देश उन्हें वापस स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं। इसलिए अब सरकार द्वारा भारत में फंसे रोहिंग्या के लिए नीतियां बनाने की तत्काल आवश्यकता है। साथ ही सभी कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करना चाहिए।
पेश किए गए दस्तावेज के अनुसार, मारक ने सीमा सुरक्षा बल की नीति पर भी सवाल उठाए। अपनी बात में उन्होंने कहा है कि बीएसएफ भारत-बांग्लादेश सीमा की निगरानी करता है और जब उन्हें बांग्लादेशी नागरिकों द्वारा भारत में घुसपैठ करने के किसी भी प्रयास का पता चलता है तो वे या तो पंजीकरण कराते हैं या बांग्लादेशी नागरिकों को वापस भेज देते हैं।
बीएसएफ घुसपैठियों को अंतरराष्ट्रीय सीमा से बांग्लादेश वापस करने के लिए एक शब्द के रूप में ‘पुश-बैक’ का उपयोग करता है। ऐसे परिदृश्य में, गृह मंत्रालय या विदेश मंत्रालय द्वारा कोई विशेष दिशा-निर्देश जारी नहीं किए गए हैं। इस तरह की प्रथाओं को विनियमित करने के लिए केंद्र सरकार को दिशानिर्देश जारी करने की सख्त आवश्यकता है।
मारक ने सिफारिश करते हुए मांग की है कि विदेशियों के ठहरने, निर्वासन, शिविरों के लिए केंद्र सरकार को नीतियां बनाने की तत्काल आवश्यकता है। विशेष रूप से रोहिंग्या के लिए जिन्हें म्यांमार या बांग्लादेश द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है।
देश में लगातार बढ़ती गैरकानूनी प्रवासन को लेकर एक अन्य आईपीएस अधिकारी, एम हर्षवर्धन जोकि दिल्ली के द्वारका जिले में डीसीपी हैं। उन्होंने इस मामले में सुझाव दिया है कि, विदेशी नागरिकों की कुछ श्रेणियों को ट्रैक करने और निर्वासित करने के लिए संसाधनों को तैनात करने के लिए प्रवर्तन प्रक्रिया को प्राथमिकता देने की तत्काल आवश्यकता है। इस संबंध में एक अच्छा ढांचा 'यूएस मॉडल' को लागू किया जा सकता है। जिससे ऐसे प्रवासन को रोका जा सके।
एक अन्य अधिकारी, जेसीपी (दक्षिणी रेंज), दिल्ली पुलिस, मीनू चौधरी ने कहा, ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन द्वारा साझा की गई सूची के अनुसार, 5,537 विदेशी दिल्ली में निर्धारित अवधि से अधिक रह रहे हैं, हालांकि, यह आंकड़ा अधिक हो सकता है। इसमें से 2,571 विदेशियों का पता नहीं चल पाया है। यह एक गंभीर समस्या है।
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