जातीय भेदभाव: मणिपुर यूनिवर्सिटी की परीक्षाओं में आदिवासी स्टूडेंट्स फेल, कई विषयों में 'शून्य'

आधुनिक भारतीय भाषा (एमआईएल) विषय में भी आदिवासी छात्रों को शून्य अंक दिए गये हैं जबकि यह सबसे आसान पाठ्यक्रम है। छात्र इस पाठ्यक्रम में अपनी मातृभाषा का अध्ययन करते हैं। आईटीएलएफ का आरोप है कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि मणिपुर विश्वविद्यालय के कर्मचारी मैतई है।
मणिपुर विश्वविद्यालय
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इम्फाल। मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच पिछले चार माह से चल रहे जातीय संघर्ष के बीच अब विश्वविद्यालय में भेदभाव होकर आदिवासी छात्रों को जानबूझकर फेल करने के आरोप लग रहे हैं। बताया जाता है कि कई छात्रों को मार्कशीट में शून्य अंक तक दिए गए हैं। दो समुदायों के बीच हो रही हिंसा के बीच शिक्षा में भी भेदभाव करने के आरोप लग रहे हैं। इसका मुख्य कारण विश्विद्यालय में एक ही समुदाय के शिक्षक और कर्मचारी होना कहा जा रहा है। हाल ही में जारी हुए परीक्षा परिणामो में इसकी बानगी देखने को मिली। आईटीएलएफ द्वारा एक सामूहिक प्रेस वार्ता में इसका खुलासा हुआ है। आरोप है कि परीक्षा में 76 छात्र शामिल हुए थे। जबकि इनमें से केवल 10 छात्रों को ही उत्तीर्ण दिखाया गया। जब इसका विरोध हुआ तो तो यह संख्या बढ़कर 10 से 41 कर दी गई है। छात्रों का आरोप है कि उनकी मार्कशीट ब्लैंक अपलोड कर दी गई जबकि परीक्षा में उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया।

जनिये क्या है पूरा मामला ?

मणिपुर राज्य के विभिन्न जिलों में साम्प्रदायिक हिंसा हुई। आईटीएलएफ के मुताबिक 3 मई 2023 को इम्फाल घाटी के विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले कुकी-ज़ो छात्रों का बेरहमी से शिकार, छेड़छाड़, अत्याचार और यहां तक ​​कि हत्या भी कर दी गई है। आईटीएलएफ का आरोप है कि आदिवासी छात्रों को जानबूझकर फेल किया जा रहा है। उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। उनके साथ जातीय भेदभाव किया जा रहा है। जब इसका विरोध किया गया तो परीक्षा परिणामों को जल्दबाजी में संशोधित करके दोबारा घोषित किया गया। आईटीएलएफ का आरोप है कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि मणिपुर विश्वविद्यालय के कर्मचारी मैतई है।

76 छात्रों में केवल 10 ही हुए पास,मार्कशीट में छात्रों को दिए गए शून्य अंक

आईटीएलएफ के मुताबिक मनोविज्ञान में बीए की डिग्री, जो संभवतः राज्य में अपनी तरह की पहली डिग्री है। यह विशेष रूप से लम्का के रेबर्न कॉलेज में प्रदान की जाती है। पांचवे सेमेस्टर में 76 छात्र शामिल हुए थे। सभी वर्तमान में अपने छठे सेमेस्टर में हैं। 22 अगस्त को परीक्षा के परिणाम घोषित हुए थे। इन परिणामो में केवल 10 छात्र ही पास हुए थे। कई छात्रों को कुछ पेपरों में 0 (शून्य) अंक दिए गए। इस परीक्षा में लिखित और प्रैक्टिकल दोनों के नम्बर शामिल हैं।

आईटीएलएफ ने बताया आदिवासी संगठनों के साथ ही छात्रों ने इस संदर्भ में मणिपुर विश्वविद्यालय में परीक्षा नियंत्रक को मौखिक शिकायत कर आपत्ति दाखिल की गई। इस सम्बंध में घण्टो प्रेसवार्ता हुई। 2-3 घंटे के भीतर एक नया परिणाम घोषित किया गया। इसमें आश्चर्यजनक तरीके से परिणाम को संशोधित कर छात्रों की संख्या 41 कर दी गई।

सबसे आसान पाठ्यक्रम में भी मिला शून्य

आईटीएलएफ के मुताबिक आधुनिक भारतीय भाषा (एमआईएल) विषय में भी आदिवासी छात्रों को 0 (शून्य) दिया गया जबकि यह सबसे आसान पाठ्यक्रम है। छात्र इस पाठ्यक्रम में अपनी मातृभाषा का अध्ययन करते हैं।

एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर द मूकनायक प्रतिनिधि को बताया-'पिछले महीने 22 अगस्त को 5वें सेमेस्टर का परिणाम आया था। 72 में से 10 छात्र ही पास हुए थे।मेरे साथी छात्रो की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद हम में से 31 और छात्रों को पास कर दिया गया। यह लगभग 3 घंटे की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद हुआ। अब कोई भी यह पूछने के लिए मजबूर हो जाता है कि क्या उन्होंने यूं ही कोई रोल नंबर चुना है। इसलिए मैं अपना परिणाम देखने गया और वहां कुछ भी नहीं था, मेरा रिपोर्ट कार्ड केवल मेरा नाम, रोल नंबर था बाकी पूरा रिजल्ट खाली था।

आईटीएलएफ ने मामले में यूजीसी द्वारा एक कमेटी गठित कर उचित कार्रवाई की मांग की है.
आईटीएलएफ ने मामले में यूजीसी द्वारा एक कमेटी गठित कर उचित कार्रवाई की मांग की है.

आईटीएलएफ ने रखी कई मांगें

इस मामले में आईटीएलएफ ने कई मांगे की हैं। कुकी-ज़ो छात्रों के साथ भेदभाव, उत्पीड़न और दमन के इस मामले में यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) द्वारा एक कमेटी गठित कर जांच कर उचित कार्रवाई की जाए और आदिवासी छात्रों को शिक्षा का मौलिक अधिकार दिया जाए।

यूजीसी और शिक्षा मंत्रालय के संबंधित प्राधिकारी को मणिपुर विश्वविद्यालय (एमयू) से सभी कुकी-ज़ो छात्रों को अन्य प्रतिष्ठित राज्य विश्वविद्यालयों में स्थानांतरित करने के लिए मंजूरी जल्दी दी जाए। इससे विभिन्न पाठ्यक्रमों, धाराओं और विभागों के वर्तमान छात्र किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना या शून्य से शुरू करने के अनावश्यक बोझ का सामना किए बिना अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर सकते हैं।

मणिपुर विश्वविद्यालय के कामकाज और प्रक्रियाओं के व्यापक ऑडिट होनी चाहिए। यह ऑडिट भविष्य में इस तरह के घोर भेदभाव की किसी भी घटना को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है। प्रत्येक छात्र के साथ, उनकी पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, उचित व्यवहार किया और उन्हें सफलता के समान अवसर प्रदान किये जायें।

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