कोर्ट ने विधायकी शून्य करने का फैसला सुनाया, दर्ज होगा धोखाधड़ी का मुकदमा
भोपाल। मध्यप्रदेश के एक बीजेपी विधायक ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाकर पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लिया। जब इस मामले में न्यायालय में याचिका लगाई गई, तब फैसले में फर्जी जाति प्रमाण पत्र को कोर्ट ने निरस्त कर दिया। इसके बाद कोर्ट ने विधायक पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज कराने के साथ विधानसभा अध्यक्ष को सदस्यता समाप्त करने के निर्देश दे दिए। विधायक कभी ओबीसी सीट पर न. पा. अध्यक्ष रहे तो कभी अनुसूचित जाति की आरक्षित सीट पर विधायक!
मध्यप्रदेश के अशोकनगर के बीजेपी विधायक जजपाल सिंह जज्जी ने फर्जी जाति प्रमाणपत्र बनाया था, जिसके याचिका पर फैसला सुनाते हुए ग्वालियर हाईकोर्ट ने उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने और धोखाधड़ी की एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट में पेश किए गए तथ्यों और जांच में पाया कि विधायक जजपाल सिंह जज्जी ने लगातार सामाजिक पहचान बदली है। कभी खुद को अनुसूचित जाति का तो कभी पिछड़ा वर्ग का बताया।
क्या है पूरा मामला?
इस मामले में 9 दिसंबर को ग्वालियर हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। कोर्ट में ट्रायल के दौरान जज्जी ने स्वीकार किया कि उनका पिछड़ा वर्ग का सर्टिफिकेट गलती से बन गया था। हालांकि उन्होंने फिर भी इस प्रमाण पत्र के आधार पर चुनाव लड़ा। 5 साल तक नगरपालिका अध्यक्ष भी बने रहे।
दरअसल वर्ष 2018 में जजपाल सिंह जज्जी ने कांग्रेस के टिकट पर अशोकनगर विधानसभा से चुनाव लड़ा था। यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। भाजपा की ओर से लड्डूराम कोरी प्रत्याशी थे। लड्डूराम कोरी यह चुनाव हार गए थे। इसके बाद उन्होंने जज्जी के जाति प्रमाण पत्र के खिलाफ याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने बताया था कि जज्जी जिस जाति के हैं, वह पंजाब में तो अनुसूचित जाति में आती है, लेकिन मध्यप्रदेश में वह सामान्य में आती है। इसी आधार पर उन्होंने जाति प्रमाण पत्र निरस्त करने की मांग की थी। हालांकि 2020 में जज्जी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे। 2020 में हुए उपचुनाव में जज्जी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते थे। जज्जी ने कांग्रेस प्रत्याशी आशा दोहरे को हराया था।
ग्वालियर हाईकोर्ट की एकलपीठ ने विधायक जजपाल सिंह जज्जी का जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया है। साथ ही कोर्ट ने पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिए हैं कि उन पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज करें। इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष को भी उनकी विधायकी समाप्त करने के लिए पत्र लिखा है। कोर्ट में सुनवाई के दौरान कई बातें सामने आईं है। जजपाल सिंह ने विधायक के पहले भी कई और भी चुनाव लड़े है। विधायक जज्जी ने हर बार चुनाव नामांकन में अलग-अलग जाति प्रमाण पत्र लगाए। इस मामले में कोर्ट ने स्पष्ट करते हुए कहा कि यह साफ है कि रेस्पोंडेंट जजपाल सिंह जज्जी ने बार-बार सामाजिक स्टेटस बदला ताकि वह चुनाव लड़ सके।
वहीं कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट को जज्जी ने बताया कि उन्हें लगा था शायद 'कीर' जाति भी मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति में ही आती है। उन्होंने एससी प्रमाण पत्र के लिए ही आवेदन दिया था। लेकिन गलती से पिछड़ा वर्ग का प्रमाण पत्र जारी हो गया।
हाईकोर्ट ने उनकी इस दलील को अस्वीकार करते हुए कहा कि "अगर उन्हें लगता है कि पिछड़ा वर्ग का प्रमाण पत्र गलती से बना है। तो फिर उन्होंने इस जाति प्रमाण पत्र को आधार बनाकर नगरपालिका अध्यक्ष का चुनाव क्यों लड़ा। अगर गलत जाति प्रमाण पत्र जारी हुआ था तब भी इसका लाभ नहीं लेना था। इससे स्पष्ट होता है कि उन्होंने जानबूझकर पिछड़ा वर्ग जाति का फर्जी प्रमाण पत्र बनवाया।"
द मूकनायक ने इस मामले में ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय सदस्य महेंद्र लोधी से बातचीत की। महेंद्र ने कहा कि, "अपनी राजनीतिक पकड़ रखने वाले ऐसे सामान्य वर्ग के लोग अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग को मिलने बाले आरक्षण को हथिया रहे हैं।" महेंद्र लोधी ने कहा विधानसभा अध्यक्ष को इनकी सदस्यता तुरंत शून्य कर देनी चाहिए।
वहीं इस मामले में मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने द मूकनायक से कहा कि "यदि कोर्ट ने विधायकी शून्य करने का फैसला दिया है, तो सदस्यता फैसले के बाद से ही शून्य मानी जाती है," अध्यक्ष ने कहा कि "अभी विधायक जजपाल सिंह जज्जी के मामले में कोर्ट के द्वारा दिए निर्देश की कॉपी हमें नहीं मिली है। हम फैसले को स्टडी करने के बाद ही कुछ कह पाएंगे।"
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