5जी नेटवर्क: रेडिएशन से प्रभावित होंगे पक्षी, ब्रेन पर पड़ेगा असर, जेनेटिक मैप में गड़बड़ी की आशंका

5जी रेडिएशन से प्रभावित होंगे पक्षी
5जी रेडिएशन से प्रभावित होंगे पक्षी
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भोपाल। देश में 5जी सेवाओं की शुरुआत हो गई है। जल्द मोबाइल इंटरनेट यूजरों को 5जी नेटवर्क का सपोर्ट मिल जाएगा, लेकिन सवाल यह कि मोबाइल नेटवर्कों के बढ़ते रेडिएशन से पक्षियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? विशेषज्ञों के मुताबिक नए हाई स्पीड नेटवर्क की सूक्ष्म तरंगे पक्षियों के लिए घातक हो सकती हैं। हालांकि, इस संबंध में कोई पुख्ता स्टडी अभी तक नहीं हुई है। पर एक्सपर्ट मानते हैं कि पक्षियों को मोबाइल के रेडिएशन से खतरा है। द मूकनायक ने इस विषय पर पड़ताल की। पेश है रिपोर्ट –

पीएम मोदी ने की शुरुआत

1 अक्टूबर 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में एक कार्यक्रम में देश में 5जी हाई स्पीड इंटरनेट सेवा की शुरुआत की थी। इस दौरान प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत सरकार का मकसद सभी भारतीयों को इंटरनेट सेवा मुहैया कराना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मानव जाति के लिए जरूरी इस सुविधा को बेहद महत्वपूर्ण मान रहे हैं। परंतु पक्षियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। द मूकनायक से बातचीत करते हुए बरकतउल्ला विश्वविद्यालय पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर विपिन व्यास ने कहा कि मोबाइल नेटवर्क की सूक्ष्म तरंगों से पक्षियों के ब्रेन पर गहरा असर पड़ता है। उन्होंने बताया कि अभी तक कोई सटीक स्टडी नहीं है, लेकिन इस मामले को गंभीरता से लेकर समझने की आवश्यकता है।

प्रवासी पक्षियों के आने में भी हो सकती है कमी

द मूकनायक ने इस पूरे मामले में लास्ट वाईल्डरनेस फाउंडेशन के पन्ना फील्ड कॉर्डिनेटर एवं पर्यावरणविद इंद्रभान सिंह बुंदेला से बातचीत की है। उन्होंने बताया कि, "4जी नेटवर्क के बाद से ही इसके रेडिएशन के कारण पक्षियों पर प्रभाव पड़ा है। पिछले वर्षों को यदि देखा जाए तो प्रवासी पक्षियों के भारत आने में कमी हुई है। अब 5जी भी जल्दी ही शुरू हो रहा है।" पर्यावरणविद ने बताया, "फिलहाल इसके रेडिएशन से पक्षियों को कितना नुकसान हुआ इसकी स्टडी नहीं हुई है, लेकिन यह शोध का विषय है। मोबाइल नेटवर्क के रेडिएशन से पक्षियों पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ रहा है। इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।"

चमगादड़ के सोनार पर भी पड़ रहा असर

बढ़ते मोबाइल नेटवर्क फ्रीक्वेंसी के कारण चमगादड़ के सोनार पर प्रभाव पड़ा है। अक्सर रात में निकलने वाला ये पक्षी अपने सोनार तरंगों से रास्ता तय करता है। इन्हीं तरंगों से यह पता लगाता है कि इसके रास्ते में कोई ठोस चीज तो नहीं आ रही है। पर्यावरणविद बताते हैं कि, मोबाइल रेडिएशन के घनत्वों के कारण इस पक्षी के सोनार तरंग ठीक से काम नहीं करते और कई बार ये दीवार, पेड़ या खम्बे और गाड़ियों से टकरा जाते हैं और इनकी मौत हो जाती है।

पक्षियों की कमी से बढ़ सकती है परेशानी

पक्षी पर्यावरण को संतुलित बनाएं रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। इनके जन्म से लेकर मृत्यु तक इनका योगदान सिर्फ पर्यावरण को संतुलन में रखना होता है। उदारहण के तौर पर कुछ पक्षियों की प्रजातियां पेड़ पौधौं और फसलों, को नुकसान पहुंचाने वाले कीट-पतंगों को खाते हैं, और इन्हीं की बीट्स से एक अच्छी गुणवत्ता के खाद का निर्माण होता है। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार, कुछ विशेष पक्षियों के बीट्स से कुछ विशेष तरह के पौधे उगते हैं, जिन्हें हम नहीं उगा सकते। पक्षी जन्म से लेकर मृत्यु तक अपने जीवन को पर्यावरण को समर्पित करता है।

पक्षियों के पास जेनेटिक्स मैप, यह कभी भूलते नहीं!

हजारों वर्षों से पक्षी एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी तय करते हैं। कुछ पक्षियों की प्रजातियां तो सालभर में तीन बार पूरी दुनिया का चक्कर लगा लेते हैं। पर्यावरणविद इंद्रभान सिंह बुंदेला ने बताया कि, "पक्षियों को उनके पूर्वजों से जेनेटिक्स मैप मिलता है। इसी कारण से यह इतनी दूरी निश्चित समय पर तय कर लेते हैं। पक्षी तारे और मौसम की समझ रखते हैं। ये तारे देख कर आगे बढ़ते हैं। हजारों वर्षों से इनके पूर्वज जिस नदी, तालाब पहाड़ आदि से गुजरे या फिर पानी पीने के लिए रुके यह भी उसी स्थान पर रुकते हैं। इन्हें अनुवांशिक नक्शा पीढ़ी दर पीढ़ी मिलता है। उसी से यह प्रवास करते हैं। लेकिन मोबाइल नेटवर्क रेडिएशन से कई बार इनके भटकने की खबरें मिली हैं। समूह से अलग होने के बाद इनकी मौत भी हो जाती है।"

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