बिहार में पिछली सदी के 80-90 दशक में हथपकड़ा या पकड़ौआ शादी (Pakadua Vivah) बहुत आम थी। लेकिन कई मामलों में वर पक्ष में कोर्ट की शरण में जाने से शादी खुशी की जगह गले की फांस बनती हुई दिखने लगी। भारत में युवक-युवती के बीच होने वाली शादी के बंधन को आज भी सबसे पवित्र रिश्ता बताया जाता है। लेकिन अगर शादी के रिश्ते में भी किसी को जोर-जबरदस्ती करके इसमें बांध दिया जाए तो इसे किस मायने में सही ठहराया जा सकता है। शादियों के इस सीजन के बीच पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है, जिसमें पटना हाईकोर्ट ने एक मामले में बिहार के प्रसिद्ध पकड़ौआ विवाह (Pakadua Vivah)को पूरी तरह से अवैध बताया है।
दरअसल,पटना हाईकोर्ट ने पकड़ौआ विवाह (Pakadua Vivah) के एक मामले में अहम फैसला सुनाया है, जिसमें कोर्ट ने जबरन कराई जाने वाली शादी पर रोक लगा दी है। कोर्ट का कहना है कि जबरदस्ती की गई शादी मान्य नहीं होगी बंदूक की नोंक पर किसी युवती की मांग भरना शादी नहीं कहलाई जा सकती। यानी किसी भी महिला की मांग में जबरन सिंदूर भरना हिन्दू धर्म के कानून के मुताबिक शादी नहीं है। दोनों के बीच आपसी सहमति नहीं हो तब तक शादी मान्य नहीं मानी जाएगी।
दरअसल ये मामला 30 जून 2013 का है, जब अपीलकर्ता रविकांत सेना में एक सिग्नलमैन थे। वे लखीसराय के अशोक धाम मंदिर में प्रार्थना करने गए थे। उसी दिन रविकांत का अपहरण कर लिया गया और बंदूक की नोक पर प्रतिवादी लड़की को सिन्दूर लगाने के लिए मजबूर किया गया। तब डर के मारे कुछ नहीं कर सके। वहीं से किसी तरह बचकर भाग निकले और ड्यूटी जॉइन की। फिर छुट्टी में घर आने के बाद लखीसराय के फैमली कोर्ट में याचिका दायर की थी। जहां से 27 जनवरी, 2020 को उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी। लेकिन जबरन शादी के केस में सुनवाई की मांग कर रहे रविकांत ने हार नहीं मानी और पटना हाईकोर्ट में न्याय की गुहार लगाई। जिसके बाद पटना हाईकोर्ट ने हाल में अहम फैसला सुनाते हुए पकड़ौआ विवाह(Pakadua Vivah) को पूरी तरह से अवैध करार दिया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पटना हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई कर रहे दो जजों की खंडपीड में शामिल पी. बी. बजंथरी और अरुण कुमार झा ने निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया। पटना हाईकोर्ट ने यह माना कि फैमिली कोर्ट ने ‘त्रुटिपूर्ण’ दृष्टिकोण अपनाया कि याचिकाकर्ता का मामला ‘अविश्वसनीय’ हो गया क्योंकि उसने विवाह को रद्द करने के लिए ‘तुरंत’ मुकदमा दायर नहीं किया था। खंडपीठ ने कहा, ‘याचिकाकर्ता ने स्थिति स्पष्ट कर दी है और कोई अनुचित देरी नहीं हुई है।’ खंडपीठ ने कहा कि हिंदू परंपराओं के अनुसार कोई भी शादी तब तक वैध नहीं हो सकती जब तक की सप्तपदी की रस्म पूरी नहीं होती।
कहते हैं कि पकड़वा विवाह (Pakadua Vivah) की शुरुआत बिहार में 70-80 के दशक में हुई थी, शिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण बिहार में उस समय जन्म दर काफी ज्यादा थी। उन परिवारों में भी बच्चे अधिक होते थे, जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। ऐसे में किसी परिवार में चार-पांच बेटियां भी हों जाती थीं, लेकिन उनके पिता के पास इतना रुपया पैसा नहीं होता था कि वह सभी की शादी भारी भरकम दहेज देकर अच्छे परिवार में कर सकें, उस दौरान दहेज लेने का रिवाज भी काफी ज्यादा था। हालांकि वो आज भी है। ऐसे में कई गांव के लोग अपनी बेटी की शादी किसी पढ़े-लिखे और अच्छे लड़के से कराने के लिए, उसे जबरन उठा लेते थे। फिर उसकी जबरदस्ती शादी करा दी जाती थी।
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