नोटबंदी के छह साल बाद केन्द्र सरकार और आरबीआई को फैसले पर सुप्रीम कोर्ट को देना होगा जवाब

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देश में नोटबंदी हुए लगभग छह साल हो गए हैं। भाजपा के पहले कार्यकाल के दौरान साल 2016 में आठ नवंबर के दिन पांच सौ और एक हजार के नोट को बंद कर दिया गया था। अब इस घटना के बाद आम जनता के जीवन पर क्या प्रभाव है। इसकी जानकारी कई खबरों में मिली है।

इतने सालों बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक से इस फैसले के लिए जवाब मांगा है। गत बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और आरबीआई को नोटबंदी के लिए गए फैसले से संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड पेश करने के निर्देश दिए हैं। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली है और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इस मामले में दोनों पक्षों से लिखित जवाब मांगते हुए शनिवार को केंद्र सरकार और आरबीआई से नोटबंदी के फैसले पर जुड़े सभी रिकॉर्ड जमा कराने को कहा है।

आपको बता दें कि, सात नवंबर 2016 को पीएम मोदी ने देश की जनता को संबोधित करते हुए पांच सौ और एक हजार के नोट को बंद करने का निर्देश दे दिया था। जिसके बाद अगली सुबह से पूरे देश में इसे लेकर हड़कंप मंच गया। नोटबंदी को लेकर सरकार का तर्क था कि इससे आतंकवाद और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण किया जाएगा। लेकिन मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान ही साल 2019 में पुलवामा आतंकवादी हमला यह दर्शाता है कि आतंकवाद को खत्म करने में सरकार नाकामयाब रही। इस आतंकी हमले में लगभग 40 जवानों के चीथडे उड़ गए थे।

जनता को जान से हाथ धोना पड़ा

सरकार के नोटबंदी के फैसले के बाद ठंड के मौसम में कई लोगों ने लाइन लगाई। शादियों के सीजन के कारण नोट बदली करवाने की ज्यादा होड़ लगी थी। लोग सुबह चार बजे से ही एटीएम के बाहर लाइन लगाते थे, जिससे की उन्हें खर्चे के लिए पैसे मिल जाएं। कई लोगों को इन्हीं लाइनों में लगने के कारण ठंड लग गई और जान से हाथ धोना पड़ा। इंडिइन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, पीएम मोदी की इस घोषणा के बाद से ही लगभग 33 लोगों को जान चली गई। जिसमें कुछ लोग ऐसे थे, जिनकी मौत सदमे के कारण हो गई। इसके लिए कुछ लोगों ने सुसाइड भी कर लिया। नोट बदली करने के लिए बैंकों के बाहर लगती लाइन और पैसे निकालने के लिए एटीएम के बाहर खड़े लोगों की बेकाबू भीड़ ने भी लोगों की जान ले ली। इन मौंतों में भी सबसे ज्यादा आंकड़ा उत्तर प्रदेश का था। सरकार के फैसले का असर कई दिनों तक भीड़ के रूप में एटीएम और बैंकों के बाहर देखने को मिला। वहीं बीबीसी की खबर के अनुसार 100 से ज्यादा लोगों की जान गई थी।

नौकरियां गईं

नोटबंदी के बाद कई नौकरियों में बदलाव हुए। नोटबंदी के फैसले के बाद अगले चार महीने में लाखों लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की रिपोर्ट के अनुसार चार महीने में 15 लाख लोगों की नौकरी चली गई। इतना ही नहीं चार व्यक्तियों वाले परिवार में एक इंसान के कमाई करने वाले 60 लाख से अधिक लोगों के लिए रोटी खा पाना भी मुश्किल हो गया था।

दिहाड़ी मजदूरों की बात करें तो लगभग 15 करोड़ दिहाड़ी मजदूरों के काम धंधे बंद हो गए। यहां तक की नोटबंदी के बाद सरकार द्वारा छोटे उद्योगों के लिए जीएसटी अनिवार्य किया जाना भी कहीं न कहीं छोटे उद्योगों को खत्म करने की ओर ढकेल दिया।

बैंकों को नुकसान

नोटबंदी का असर हर सेक्टर पर पड़ा। बैंक भी इससे अछूते नहीं रहे। एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार के इस फैसले के बाद भारतीय बैंकों को लगभग 35 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। वहीं अर्थव्यवस्था को 1.28 करोड़ के नुकसान का जिक्र किया गया। नोट बदलने के लिए नई करेंसी छापने के लिए 17 हजार करोड़ रुपया बताया गया था, जिसे रीकवर करने में कई साल लग गए हैं।

जीडीपी पर असर

सरकार ने अपने नोटबंदी के फैसले पर एक तर्क यह भी दिया था कि इससे देश के अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस फैसले का असर सीधे तौर देश की जीडीपी पर पड़ा साल 2015-2016 में जीडीपी का ग्रोथ रेट 8.01 थी। वहीं नोटबंदी के फैसले के बाद 2015-2017 के दौरान 7.11 फीसदी तक रह गई। इसके बाद आई कोरोना महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर और असर डाला।

नकली नोट में बढ़ोतरी

मोदी सरकार ने नोटबंदी के दौरान यह दावा किया था कि इस फैसले के बाद भ्रष्टाचार कम होगा। लेकिन नए नोटों की आड़ में कई लोगों को ठगा जा रहा। नकली नोटों पर लगाम लगाम लगाने में सरकार नाकाम रही। साल 2016 के अंतिम महीनों में हुई नोटबंदी के बाद साल 2017-2018 में रिजर्व बैंक के अनुसार जाली नोटों को पकड़े जाने का सिलसिला जारी रहा। सिर्फ एक साल में ही 500 के 9,892 और 2000 के 17, 929 नकली नोट पकड़े गए।

हाल की खबरों में नकली नोट या जाली नोटों को पकड़ने का सिलसिला जारी है। हाल ही में गुजरात विधानसभा चुनाव के ठीक पहले सूरत पुलिस ने 25 करोड़ के नकली नोट पकड़े। वहीं कुछ महीनों पहले कानपुर के इंजीनियरिंग के छात्र गेम में छह लाख हराने के बाद नकली नोट छापने लगे। इनका एक गैंग था। जो हर महीने 25 से 30 हजार नोट छापता था।

नक्सलवाद और आतंकवाद पर काबू करने के दावे

मोदी सकार का नोटबंदी करने के पीछे एक बड़ा तर्क यह भी था कि वह इस तरह से आतंकवादी शक्तियों से सख्ती के साथ लड़ पाएंगी। इससे उन्हें फंडिंग नहीं मिल पाएगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

बीबीसी की खबर के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल द्वारा पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने सदन में बताया था कि साल 2017 में जनवरी से जुलाई के महीने में 184 हमले हुए, वहीं साल 2016 में 155 आतंकवादी हमले हुए। वहीं गृह मंत्रालय की साल 2017 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार जम्मू-कश्मीर में 342 चरमपंथी हमले हुए, जबकि 2016 में 322 हमले हुए थे।

यह सिलसिला अभी भी नहीं थमा है हाल ही में ऐसी कई खबरें आई हैं, जिसमें कश्मीरियों पर हमले हुए हैं। पुलिस वालों से लेकर बैंक मैनेजर तक को आतंकवादियों ने निशाना बनाया।

नोटबंदी के लगभग छह साल बाद सुप्रीम कोर्ट सरकार और आरबीआई के फैसले पर उनसे जवाब मांग रही हैं, जबकि इतने सालों ने एक फैसले के कारण जनता को कई तरह का नुकसान झेलना पड़ा।

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