आखिर क्यों ओडिशा में 100 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर ग्रामीण जिला कलेक्टर की दफ्तर के बाहर धरना प्रदर्शन करने पहुंचे

अपनी जमीन को बचाने के लिए पैदल पदयात्रा करती महिलाएं [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]
अपनी जमीन को बचाने के लिए पैदल पदयात्रा करती महिलाएं [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]
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जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ने वाले आदिवासियों व मूलनिवासियों का जमीन एक बार फिर कॉरपोरेट के निशाने पर है। हसदेव अराण्य में लगातार कोयला खदान के लिए हो रही जंगल की कटाई और जंगली जानवारों से घरों को उजाड़ने के बाद ताजा खबर ओडिशा से आई है।

सुंदरगढ़ में 100 किलोमीटर की पदयात्रा

ओडिशा के सुंदरगढ़ के आदिवासियों ने अपनी जमीन को बचाने के लिए 100 किलोमीटर की पदयात्रा की है। 18 अक्टूबर से लगभग चार दिनों तक लंबी यात्रा करने के बाद सुदंरगढ़ जिले के ग्रामीण इलाके से पांच हजार निवासी अपनी जमीन को बचाने के लिए जिला कलेक्टर की ऑफिस पहुंचे और वहां धरना प्रदर्शन किया। इस दौरान बारिश भी हुई लेकिन वह डटे रहे। आखिरकार जिला कलेक्टर को आदिवासियों की बात माननी पड़ी।

पदयात्रा करते ग्रामीण [पूनम मसीह, द मूकनायक]
पदयात्रा करते ग्रामीण [पूनम मसीह, द मूकनायक]

क्या है पूरा मामला?

ओडिशा एक खनिज संपदा वाला राज्य है। जहां बड़ी मात्रा में चूना पत्थर पाया जाता है। जिसका वर्षों से खनन हो रहा है। ओसीएल यानि ओडिशा सीमेंट लिमिटेड सरकारी कंपनी ने खनन के काम को और आगे बढाने के लिए 2150 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर प्राइवेट कंपनी डालमिया सीमेंट भारत लिमिटेड को देना चाहता है। जिसके लिए कई गांवों को चिन्हित किया गया है।

इस अधिग्रहण के विरोध में ग्रामीण सड़कों पर आएं हैं। ओडिशा के सुदंरगढ़ जिले से आई वायरल विडियो में देखा जा सकता है। पुरुष महिला दोनों कंधे से कंधे मिलाकर कड़ी धूप में अपनी जमीन को बचाने के लिए 100 किलोमीटर की पैदल यात्रा की है।

कितने गांव होंगे प्रभावित!

ओडिशा राज्य के सुदंरगढ़ जिले के राजगंगापुर ब्लॉक के कुकुड़ाए अलंदा, केसरमल, झगरपुर पंचायत और कुटरा ब्लॉक के केटांग इस अधिग्रहण के निशाने पर हैं। पहले प्रस्ताव में इन्हीं ब्लॉक के पांच पंचायतों के 57 गांव से 750 एकड़ जमीन डालमिया कंपनी को दिए जाने का जिक्र किया गया है। जिसे न देने के लिए आदिवासी अड़े हुए हैं। अगर जमीन अधिग्रहित हो जाती है तो लगभग 60,000 आदिवासी परिवार बेघर हो जाएंगे।

जिला कलेक्टर ऑफिस के बाहर धरने पर बैठे लोग [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]
जिला कलेक्टर ऑफिस के बाहर धरने पर बैठे लोग [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]

जिला कलेक्टर से मिलकर दिया ज्ञापन

जमीन बचाने के लिए चार दिनों तक पैदल चलने के बाद धरने प्रदर्शन पर बैठने वाले ग्रामीण लोगों को आखिरकार कलेक्टर डॉ. गावली पराग हर्षद से मिलने का मौका मिला। फोरम फॉर ग्रामसभा के बैनर तले हुए इस विरोध प्रदर्शन के 25 सदस्यों ने जिला कलेक्टर से मुलाकात कर जमीन अधिग्रहण को रोकने को लेकर ज्ञापन दिया। जिसके बाद विरोध कर रहे लोगों को प्रशासन द्वारा लिखित में आश्वासन दिया गया कि उनकी जमीन के अवैध अधिग्रहण को रोकने के लिए मुख्यमंत्री, राज्यपाल, राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया जाएगा, और जब तक इसका कोई जवाब नहीं आ जाता तब तक आगे की प्रक्रिया को रोक रखा जाएगा। वहीं दूसरी ओर अपनी जमीन को बचाने के लिए विरोध प्रदर्शन करने आए ग्रामीणों का कहना है कि अगर सरकार इस पर नहीं मानी तो दोबारा से विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।

धरना प्रदर्शन में महिलाएं अपने साथ बच्चे भी लाई [पूनम मसीह, द मूकनायक]
धरना प्रदर्शन में महिलाएं अपने साथ बच्चे भी लाई [पूनम मसीह, द मूकनायक]

'यह जमीन नहीं, हमारे शरीर का हिस्सा है'

पदयात्रा की अगुवाई कर रहे फोरम फॉर ग्राम सभा के अध्यक्ष बीबोल टोप्पो का जमीन अधिग्रहण के बारे में कहना है कि आदिवासियों का यह जमीन सिर्फ आजीविका का श्रोत नहीं हैए ब्लकि हमारे शरीर का अंग है। यह अंग हमारे जीवन की पहचानए संस्कृति और भाषा से जुड़ी हुई है। इसलिए इस जमीन को बचाने के लिए हम लोग साल 2017 से आंदोलन कर रहे हैं और आगे भी करेंगे लेकिन जमीन नहीं देगें।

वहीं जन जागरण अभियान के अध्यक्ष और समाजसेवी मधुसूदन सेठी ने बताया कि, डालमिया भारत ग्रुप कंपनी साल 1980 से चूना पत्थर का खनन कर रही है। अब यह अपनी खनन की जमीन को और आगे बढ़ाना चाहते हैं। जिसके लिए 57 गांवों को चिन्हित किया गया है। वह बताते हैं कि, "यह जमीन सरकारी कंपनी द्वारा खरीदकर एक प्राइवेट कंपनी को बेची जाएगी। सरकार से सिर्फ अपना मुनाफा देख रही है। इसके लिए ग्रामीणों के जमीन अधिग्रहण के लिए मना करने के बाद भी उन्हें पैसों का लालच दिया जा रहा है। ताकि लोग मान जाएं और जमीन कंपनी को दे दें।"

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