BBC डॉक्यूमेंट्री को लेकर DU के 8 छात्रों को सजा, छात्रों ने कहा 'संघर्ष रहेगा जारी'

29 मार्च को एकजुट होंगे छात्र, करेंगे प्रदर्शन
BBC डॉक्यूमेंट्री को लेकर DU के 8 छात्रों को सजा, छात्रों ने कहा 'संघर्ष रहेगा जारी'
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दिल्ली यूनिवर्सिटी कैंपस में विवादित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ की स्क्रीनिंग पर मैनेजमेंट ने कड़ा फैसला लिया है. गुजरात दंगों पर बनी प्रतिबंधित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री दिखाने के प्रयास के लिए 2 छात्रों को साल भर के लिए कॉलेज कैंपस में एंट्री पर बैन लगा दिया गया है.

यूनिवर्सिटी में बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग करने के लिए 8 छात्रों के खिलाफ सजा की सिफारिश की गई है. 28 जनवरी को दिल्ली यूनिवर्सिटी ने इस मामले में एक कमेटी गठित की थी, जिसने 8 छात्रों के खिलाफ सजा की सिफारिश की है. इस डॉक्यूमेंट्री में गोधरा कांड में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका को कथित रूप से दर्शाया गया है. कमेटी ने 2 छात्रों के लिए बड़ी सजा और बाकी के लिए छोटी सजा की सिफारिश की है.

छह अन्य छात्रों पर भी की गई कार्रवाई

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एक न्यूज एजेंसी ने डीयू मैनेंजमेंट के हवाले से बताया कि छह और छात्रों पर भी कार्रवाई की गई है, लेकिन उन्हें क्या सजा दी गई है, ये उन्होंने नहीं बताया. अधिकारी ने बताया कि हमने कई छात्रों के माता-पिता को भी बुलाया है. उन्होंने ये भी कहा कि आने वाले दिनों में और छात्रों पर कार्रवाई की उम्मीद है.

बता दें कि दिल्ली यूनिवर्सिटी कैंपस में 27 जनवरी को प्रतिबंधित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की गई थी. मैनेजमेंट की ओर से छात्रों को दी गई सजा के संबंध में कहा गया है कि प्रतिबंधित बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग में शामिल होने पर ये कार्रवाई की गई है.

मीडिया रिपोर्ट में रविंदर और लोकेश चुघ को बैन किए जाने के संबंध में कहा गया कि समिति की सिफारिशों के आधार पर अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने अनुशासनहीनता का संज्ञान लिया और दोनों छात्रों को एक वर्ष के लिए किसी भी विश्वविद्यालय या कॉलेज या विभागीय परीक्षा या परीक्षाओं से वंचित करने का फैसला किया.

प्राथमिकी में नामजद किए गए थे 8 छात्र

27 जनवरी को दिल्ली यूनिवर्सिटी में कांग्रेस के स्टूडेंट विंग, नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया और भीम आर्मी स्टूडेंट फेडरेशन जैसे छात्र संगठनों ने डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग आयोजित की थी. दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रॉक्टर रजनी एब्बी कमेटी की प्रमुख हैं. उन्होंने कहा कि, "एक समिति के रूप में हमने 8 छात्रों के लिए सजा की अनुशंसा की थी. 2 के लिए बड़ी सजा और 6 के लिए छोटी सजा. किन्तु अंतिम फैसला यूनिवर्सिटी द्वारा लिया गया है।" बता दें कि, इन सभी छात्रों को FIR में नामित किया गया था और स्क्रीनिंग के दौरान उन्हें हिरासत में भी लिया गया था. सभी को प्रॉक्टर ऑफिस द्वारा भी बुलाया गया.

लेकिन अंतिम निर्णय विश्वविद्यालय द्वारा लिया गया है। इन सभी छात्रों को प्राथमिकी में नामित किया गया था, और स्क्रीनिंग के दौरान उन्हें हिरासत में भी लिया गया था.

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डॉक्यूमेंट्री मामले पर द मूकनायक ने आशुतोष सिंह बोध से बात की। आशुतोष बीएएसएफ डीयू भीम आर्मी स्टूडेंट फेडरेशन के अध्यक्ष हैं, और वह बीकॉम तृतीय वर्ष सत्यवती कॉलेज के छात्र हैं. उन्होंने 27 जनवरी से लेकर अबतक की घटना को बताया. वह बताते हैं कि, 27 जनवरी को जैसे ही हमने डॉक्यूमेंट्री देखने के लिए अपने गैजेट्स निकाले, तो पहले कॉलेज वालों ने लाइट काट दी. उसके बाद गार्ड ने आकर हमारे पोस्टर बैनर सब फाड़ दिए. ऐसे में अफरा-तफरी मच गई. इतने में बहुत सारी पुलिस आ गई. इसके बाद पुलिस हमें खींचते हुए कैंपस के बाहर ले गई. हमारे साथ लड़कियां और लड़के सभी थे. सभी को पुलिस खींचते हुए बाहर ले गई. फिर उन्होंने हमें रोक कर अलग-अलग जगह पर ले गए.

वह कहते हैं कि मुझे अकेले को अलग लेकर गए. फिर रात को 10:00 बजे मुझे छोड़ा गया. 10 दिनों के बाद ही एक कमेटी का गठन किया गया, जिसमें 8 लोग थे. उसमें सभी बीजेपी के लोग थे. प्रोफेसर रंजिश भी थी. जो पहले दिल्ली की मेयर रह चुकी हैं, और अब वह इस कमेटी की अध्यक्ष भी थी, और उन्होंने हमारे खिलाफ लेटर निकाला और हमारे घर पर भी भेजा. उस लेटर में लिखा था कि हमें माफी मांगनी पड़ेगी और उसमें यह भी था कि हमने कैंपस में गलत या अवैध गतिविधियां करी है.

आगे आशुतोष बताते हैं कि अब 10 मार्च को हम लोगों के खिलाफ फिर से प्रशासन ने नोटिस भेजा है. इसमें 2 विद्यार्थीयों को प्रतिबंध कर दिया है, और ऐसा नोटिस हमारे घर पर भी भेजा गया है. उस नोटिस में हम 6 लोगों को माफी मांगनी होगी या माफीनामा लिखना होगा. आगे आशुतोष यह भी बताते हैं कि, "हम अपने 2 विद्यार्थियों जो कैंपस से निकाल दिए गए हैं, उनके लिए तीन-चार दिन पहले धरने पर बैठने वाले थे. वहां हमें सिर्फ 5 मिनट हुए थे तभी 300-400 पुलिस फोर्स आई जिन्होंने नीले रंग की ड्रेस पहन रखी थी, और उन्होंने हमें खींचकर बाहर निकालना शुरू कर दिया. हम 30 विद्यार्थी थे और वह 300, 400 पुलिस थी. उन्होंने हम लोगों को बहुत बुरी तरीके से खींचा और कैंपस के बाहर निकाल दिया. इस तरह से हमारा प्रदर्शन पूरी तरह से खराब हो गया. बाद हमें धमकी दी जा रही है कि जैसे उनको निकाल दिया गया है आपको भी निकाल दिया जाएगा।"

आगे वह कहते हैं कि बुधवार यानी 29 मार्च को हम एक बड़ा प्रोग्राम रख रहे हैं उसमें इस पर फिर से बात होगी.

प्रतिबंध छात्रों को वापस लिया जाए - प्रोफेसर जितेंद्र मीणा

प्रोफेसर जितेंद्र मीणा, जो श्याम लाल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं, बीबीसी डॉक्युमेंट्री के बारे में द मूकनायक को बताते हैं, "यह दिल्ली विश्वविद्यालय कहीं और तो नहीं है. यह दिल्ली विश्वविद्यालय भारत में है. भारत एक लोकतांत्रिक देश है. इसमें हम देखते हैं कि जिस संस्थाओं को लोकतंत्र को संभालने की जिम्मेदारी है वही संस्थाएं अपने लोकतंत्र मूल्यों की हत्याएं कर रही हैं. चाहे राहुल गांधी को संसद से निष्कासित करने का मामला हो या दिल्ली यूनिवर्सिटी से उन 2 छात्रों को प्रतिबंध करने का मसला हो. यह दोनों ही बातें इस चीज को दिखाता है कि यह जो भारत का संविधान है उसका दुरुपयोग हो रहा है. अगर उसको लागू करने वाले लोग सही नहीं होंगे. फिर उस सविधान के कोई मान्य नहीं होंगे."

प्रोफेसर कहते हैं कि, दिल्ली विश्वविद्यालय ही नहीं सभी विश्वविद्यालय के लिए है। इस शब्द के साथ ही विश्व जुड़ा हुआ है. विश्व, जिसमें हर तरह के धर्म के लोग हर तरह के प्रांत के लोग अपने अपने विचारों को व्यक्त करते हैं. जहां लोग अपनी दिक्कतों को एक दूसरे के साथ बांटते हैं. ऐसी जगह को हम विश्वविद्यालय कहते हैं. अगर यहां पर कोई किसी तरह की फिल्म देखने चाहते हैं, जिनसे उन्हें जानकारी या पढ़ाई करने में सहायता मिलती है. तो इसमें क्या गलत है! ऐसा नहीं है कि छात्र लोकतंत्र से बाहर जाकर या संस्था को तोड़ने का काम कर रहे हैं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है.

"विद्यार्थी कुछ गलत नहीं कर रहे थे. हो सकता है कि किसी को उस फिल्म से सहमति ना हो. अगर राजनीतिक लोग ऐसा कर रहे होते तो समझ में आता है. परंतु यह तो छात्र हैं, और अभी तो फिल्म देखी भी नहीं है. फिल्म देखना संवैधानिक दायरे के अंदर है. उन्होंने ऐसा कोई गैरकानूनी काम नहीं किया है. प्रशासन ने एक राजनीतिक पार्टी जैसा व्यवहार किया है छात्रों के साथ. हो सकता है कल किसी शिक्षक को अंबेडकर को पढ़ाने पर बाहर कर दिया जाए या किसी आदिवासी छात्र को आदिवासी इतिहास पढ़ने से बाहर कर दिया जाए.

आगे वह कहते हैं कि "प्रशासन को तुरंत प्रतिबंधित छात्रों को वापस ले लेना चाहिए. अगर उन छात्रों को वापस नहीं लेंगे तो आगे प्रदर्शन जारी रहेगा".

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