भारतीय संविधान के शिल्पकार डॉ. भीमराव अंबेडकर की योग्यता और उनकी शिक्षा की मिशाल दी जाती है. उन्होंने अपने साथ हो रहे जाति-पात भेदभाव के चलते बचपन से ही बहुत कुछ झेला। लेकिन अपनी शिक्षा प्राप्ति के जूनून को कभी कम नहीं होने दिया. आज हम उनकी शिक्षा के बारे में जानेंगे।
भीमराव अंबेडकर के लिए शुरुआत की पढ़ाई आसान नहीं थी। दलित समाज से आने के कारण उनके साथ भेदभाव स्कूल में पढ़ने तक ही सीमित नहीं था। उन्हें हर जगह यह भेदभाव सहना पड़ा। सार्वजनिक मटके से उन्हें पानी तक पीने नहीं दिया गया था। भेदभाव के कारण उनको हर एक चीज करने से रोका गया, जो बाबा साहब को पसंद थी। जैसे किताबें पढ़ना, खेलना आदि। लेकिन इस भेदभाव के चलते ही उन्होंने दृढ़ निश्चय किया कि वह इस समाज से यह भेदभाव हमेशा के लिए खत्म कर देंगे।
लगभग 1894 में, उनके पिता सेवानिवृत्त हो गए और दो साल बाद परिवार सतारा चला गया। थोड़े समय के बाद उनकी माँ की मृत्यु हो गई। उनका परिवार 1897 में मुंबई चला गया, जहां उनका दाखिला एलफिंस्टन हाई स्कूल में हुआ और वह वहां प्रवेश लेने वाले अपने समाज से एकमात्र अकेले थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, लगभग 15 साल की उम्र में उन्होंने नौ साल की लड़की रमाबाई से शादी की। उन्होंने लगभग 1907 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष, उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया। यह बंबई विश्वविद्यालय से संबद्ध था। उनके अनुसार वह महार जाति से ऐसा करने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने 1912 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में डिग्री हासिल की।
अंबेडकर ने बी.ए. के बाद एम. ए. के अध्ययन हेतु बड़ौदा नरेश सयाजी गायक वार्ड की पुनः फेलोंशिप पाकर वह अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिल हुए। 1915 में उन्होंने स्नातक उपाधि की परीक्षा पास की उन्होंने अपना शोध "प्राचीन भारत का वाणिज्य" लिखा था। 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय अमेरिका से ही उन्होंने एचडी की उपाधि प्राप्त की उनकी पीएचडी शोध का विषय था 'ब्रिटिश भारत की में प्रांतीय भारत का विकेंद्रीकरण'।
फेलोशिप खत्म होने के बाद अंबेडकर ब्रिटेन होते हुए भारत लौट रहे थे। वहां पर उन्होंने लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलीटिकल साइंस में एम. सी. और विधि संस्थान में बैरिस्टर ला उपाधि हेतु स्वयं को पंजीकृत किया, और भारत लौटे।
बाबा साहब ने अशिक्षित और गरीब लोगों को जागरूकता लाने के लिए मूकनायक और बहिष्कृत भारत साप्ताहिक पत्रिकाएं संपादित की। अधूरी पढ़ाई पूरी करने के लिए वह लंदन और जर्मनी जाकर वहां से एम.एस.सी., डी.एस.सी और बैरिस्टर की डिग्रियां प्राप्त की।
बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर को कोलंबिया विश्वविद्यालय ने एलडी और उसे उस्मानिया विश्वविद्यालय ने डी लीट् की मानद उपाधियों से सम्मानित किया था। अंबेडकर वैश्विक युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए। क्योंकि उनके नाम के साथ बीए, एमए, एमएससी, पीएचडी, बैरिस्टर, डीएससी, डी लीट् आदि कुल 26 उपाधियां जुड़ी हैं।
उन्होंने, सामाजिक एवं धार्मिक योगदान मानवअधिकारों, जैसे दलित एवं दलित आदिवासियों के मंदिर प्रवेश, पानी पीने, छुआछूत, जाति पाति, उच्च-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए मनुस्मृति का दहन (1927), महार सत्याग्रह (1928), नाशिक सत्याग्रह (1930), चवेला की गर्जना जैसे आंदोलन चलाये। 1927 से 1956 के दौरान मूकनायक, बहिष्कृत भारत, समता, जनता और प्रबुद्ध भारत नामक पांच साप्ताहिक एवं बातचीत पत्र पत्रिकाओं का संपादन किया।
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