नई दिल्ली। "बाबा साहब के संविधान के चलते ही आज मैं प्रधानमंत्री हूं." या फिर "बाबा साहब के बताए रास्ते पर ही चल रहा हूं।" प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयानों के जानकर लोग कई सियासी मायने खोज रहे है, लेकिन इस बात से यह साबित हो जाता है कि बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर आज भी राजनैतिक व सामाजिक रूप से उतने ही प्रासंगिक है, जितने वह अपने जीवनकाल में रहे थे। इन बयानों व उसके राजनैतिक व सामाजिक संदर्भों को लेकर पेश है द मूकनायक की यह खास रिपोर्ट।
ब्रैंडिस यूनिवर्सिटी, बोस्टन, संयुक्त राज्य अमेरिका में “कानून, जाति और न्याय की खोज“ विषय पर हाल में आयोजित सम्मेलन में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय वाई. चंद्रचूड़ का 'जय भीम' बोलकर स्वागत किया गया था। इस दौरान प्रोफेसर सुखदेव थोराट और बीएसजी के वरिष्ठ सदस्य संजय भगत के साथ बोस्टन स्टडी ग्रुप द्वारा डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा के साथ सीजेआई चंद्रचूड़ की तस्वीर भी ली गई थी। यहां चीफ जस्टिस ने कहा कि अंबेडकर कहते थे, संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर वे लोग खराब निकलें, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाएगा तो संविधान का खराब साबित होना तय है। वहीं, संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, अगर जिन लोगों को इसे अमल में लाने की जिम्मेदारी दी गई है, वे अच्छे हैं तो संविधान का अच्छा साबित होना तय है।
सीजेआई ने आगे कहा कि भारत में आजादी के बाद शोषण सहने वाले समुदायों के लिए कई नीतियां बनाई गईं। ऐसे शोषित पिछड़े समुदायों की तरक्की के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और रिप्रजेंटेशन के मौके दिए गए। हालांकि, संवैधानिक अधिकारों के बावजूद समाज में महिलाओं को भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव पर बैन लगने के बाद भी पिछड़े समुदायों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं सामने आती हैं।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने राजगीर जिला मुख्यालय स्थित इंटरनेशनल कंवेंशन सेंटर में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा- "बाबा साहब के रास्ते पर चलकर ही विकास संभव है। बाबा साहब ने कहा था कि अपने बच्चों को शिक्षित बनाएं। शिक्षा से ही विकास होगा। अपने बच्चों को राजनीति में आगे लाएं। "
मांझी ने आगे कहा-"बाबा साहब ने संविधान बनाया है। इसमें उन्होंने हर जाति, धर्म व पंथ को मनाने वाले लोगों को समान अधिकार दिए हैं। अपने अधिकारों के लिए सबको आवाज उठाने का हक है।"
मशहूर शिक्षाविद डॉ. विकास दिव्यकीर्ति ने हाल में एक कार्यक्रम में कहा कि भीमराम अम्बेडकर संविधान सभा के सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे व्यक्ति थे। बाबा साहब एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने तीन विषयों में पीएचडी कर रखी थी। चौथी पीएचडी उनको बाद में मिली।
दिव्यकीर्ति ने आगे कहा- "पूरी संविधान सभा में इतना पढ़ा-लिखा और वेल रेड व्यक्ति कोई और नहीं दिखता है। कुछ लोग कहते हैं कि बाबा साहब सिर्फ प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे, लेकिन संविधान सभा के एक सदस्य टीटी कृष्णमाचारी के हवाले से उन्होंने कहा कि कहने को तो प्रारूप समिति के सात सदस्य थे, लेकिन किन्हीं कारणों से छह सदस्य अनुपस्थित रहे। संविधान को प्रारूप देने की एकमेव जिम्मेदारी बाबा साहब अम्बेडकर की रही थी।" दिव्यकीर्ति ने वंचित समाज से आने वाले बच्चों को शिक्षित बनने, संगठित रहने व अधिकारों के लिए संघर्ष करने का संदेश दिया।
इन बयानों से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्तमान समय में अंबेडकर की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। उनके विचार और भी जरूरी हो गए हैं। दिल्ली में सफाई कर्मचारी संघर्ष समिति सदस्य राज वाल्मीकि लिखते है कि संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बाबा साहब ने सही अर्थों में लोकतान्त्रिक मूल्यों की स्थापना संविधान के माध्यम से की है। इसलिए हमारा संविधान हमारे लोकतंत्र का रक्षक है।
बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर भारतीय सामाजिक इतिहास में एक बड़े मानवतावादी चिंतक और आन्दोलनकर्मी के रूप में विख्यात हैं। देश भर में वह दलितों के मुक्तिदाता के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने दलित, वंचित एवं महिलाओं के मानवीय अधिकारों के साथ समतामूलक समाज की स्थापना के लिए संघर्ष किया। उनके व्यक्तित्व में एक अर्थशास्त्री, राजनेता, दार्शनिक, शिक्षाविद्, कानूनविद समाहित है। संविधान के द्वारा दलित-वंचित वर्गों के हितों के संरक्षण हेतु उन्होने ऐतिहासिक कार्य किया। उन्होंने भारतीय समाज में शोषण की आधार-भूमि वर्ण-जाति-व्यवस्था को समूल नष्ट करने के लिए कठोर श्रम और संघर्ष किया है।
आज चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल साम, दाम, दंड, भेद सब अपनाते हैं। और अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए साम्प्रदायिकता और जाति का कार्ड खेलते हैं। ऐसे में अंबेडकर के विचार नितांत आवश्यक हो जाते हैं, क्योंकि अंबेडकर समता, समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व को समाज में स्थापित करना चाहते हैं जो लोकतंत्र और मानवता के आधार स्तम्भ हैं। मानवीय मूल्यों की बुनियाद है। इसलिए अंबेडकर के विचार शाश्वत बने रहेंगे और उनकी प्रासंगिकता हमेशा बनी रहेगी।
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