हिमांशु कुमार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लोकतांत्रिक व संवैधानिक प्रक्रिया कमजोर होगी: रिहाई मंच

सुप्रीम कोर्ट [साभार फोटो स्रोत- इंटरनेट]
सुप्रीम कोर्ट [साभार फोटो स्रोत- इंटरनेट]
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सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर व अन्य 11 लोगों पर दर्ज एफआईआर रद्द करने की भी मांग।

लखनऊ। रिहाई मंच ने वरिष्ठ गांधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले पर बयान जारी किया है। रिहाई मंच के अनुसार फैसले से लोकतांत्रिक व संवैधानिक प्रक्रिया कमजोर होगी। मंच ने गांधी जी के रास्ते पर चलते हुए हिमांशु कुमार द्वारा जुर्माना नहीं देने के फैसले का स्वागत किया है।

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि, एक तरफ भाजपा द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति उम्मीदवार बना रही है, वहीं दूसरी तरफ आदिवासी हित-अधिकारों की आवाज उठा रहे हिमांशु कुमार को जेल भेजने का षडयंत्र किया जा रहा है। गांधी के देश में सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ मांगने पर जुर्माना व एफआईआर सबूत हैं — इंसाफ की आवाज उठाने वालों को खामोश किया जा रहा है। ठीक इसी तरह तीस्ता सीतलवाड़, आरबी श्रीकुमार व संजीव भट्ट के साथ किया गया। "इंसाफ से आम अवाम को दूर कर उन्हें गुलाम बनाया जा रहा है। ऐसे दौर में सच और न्याय के लिए हम लड़ते रहेंगे।"

रिहाई मंच के अनुसार इस फैसले से लोकतांत्रिक व संवैधानिक प्रक्रिया कमजोर होगी
रिहाई मंच के अनुसार इस फैसले से लोकतांत्रिक व संवैधानिक प्रक्रिया कमजोर होगी

मुहम्मद शुऐब ने कहा कि, हिमांशु कुमार ने आरोप लगाया कि सुरक्षा बलों ने तलवारों से छत्तीसगढ़ में 16 आदिवासियों को मार डाला। दरिंदगी की हद पार करते हुए डेढ़ साल के एक बच्चे के हाथ की उंगलियां बेरहमी से कतर दी गईं। इस जघन्य कांड में इंसाफ की गुहार लेकर हिमांशु सालों पहले सुप्रीम कोर्ट गए थे। होना तो यह चाहिए था कि इस मामले की जांच करवाई जाती, लेकिन उलटे याचिकाकर्ता के ऊपर 5 लाख रुपए का जुर्माना ठोंक दिया गया।

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि, नक्सल विरोधी अभियानों के नाम पर देश में बड़े पैमाने पर आदिवासियों का दमन किया गया है। 13 साल पुरानी याचिका को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 5 लाख का जुर्माना लगाते हुए इस बात की जांच की अनुमति दी गई कि कुछ लोग और संगठन कोर्ट का इस्तेमाल कथित तौर पर वामपंथी चरमपंथियों के बचाने के लिए तो नहीं कर रहे हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण फैसला केवल और केवल राजनीति से प्रेरित है। "जहां जांच होनी चाहिए थी कि आदिवासियों का कत्ल किसने किया, वहां जांच याचिकाकर्ता की हो रही है। शासन, प्रशासन, न्यायपालिका क्या आदिवासियों से सहानुभूति रखती हैं? देश के सभी आदिवासी व इंसाफ पसंद सांसदों को इस पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए," उन्होंने कहा।

यह फैसला जन आंदोलनों की आवाजों को सरकार द्वारा कुचलने की कोशिश हैै- रिहाई मंच
यह फैसला जन आंदोलनों की आवाजों को सरकार द्वारा कुचलने की कोशिश हैै- रिहाई मंच

मेधा पाटकर व अन्य 11 पर दायर एफआईआर रद्द करे सरकार

रिहाई मंच ने वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और अन्य 11 लोगों पर दर्ज एफआईआर को साजिश करार देते हुए तत्काल उसे रद्द करने की मांग की है।

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि, संविधान व लोकतंत्र को मजबूत करने वालों के खिलाफ लगातार हमला बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, "वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने न सिर्फ नर्मदा बल्कि उसके किनारे बसने वाली पूरी सभ्यता को बचाने के लिए पूरी जिंदगी लगा दी। यह जन आंदोलनों की आवाजों को सरकार द्वारा कुचलने की कोशिश हैै। सरकार का उद्देश्य जन संगठनों को भयभीत कर चुप कराना है, जो कभी पूरा नहीं होगा।"

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