फूलन देवी, जिन्हें 'बैंडिट क्वीन' के नाम से भी जाना जाता है, इस देश की एक ऐसी महिला थीं, जिनका जीवन ब्राह्मणवादी व्यवस्था की गुलामी से मुक्ति चाहने वाली हर महिला के लिए प्रेरणा का काम करता है। 1963 से 2001 तक का उनका जीवन पितृसत्ता और जातिव्यवस्था के उत्पीड़न के प्रभुत्व वाले समाज में महिलाओं के उत्थान और संघर्ष को दिखाता है। इतिहास में हाशिए पर रहने वाली महिलाओं द्वारा सामना किए गए संघर्षों को उजागर करने के लिए उनकी कहानी निस्संदेह साझा करना चाहिए।
फूलन का सफर दुखद रूप से 11 साल की उम्र में शुरू हुई जब शादी के नाम पर उन्हें अपने से दोगुनी से ज्यादा उम्र के व्यक्ति से शादी करवा दी गई। असीम साहस दिखाते हुए उन्होंने शादी तोड़ दी और घर लौट आईं, लेकिन परिवार से उन्हें कोई समर्थन नहीं मिला। फूलन देवी को पुलिस द्वारा सामूहिक बलात्कार और वेश्या होने तक के झूठे आरोपों का भी सामना करना पड़ा, जिससे उनके बारे में लगातार अफवाहें फैलती रही। जिस पर फूलन देवी ने चुप रहने से इनकार कर दिया।
उन्होंने भयानक दमनकारी परिस्थितियों का सामना किया, प्रणालीगत संरचनात्मक अन्याय का शिकार बनीं। पर फूलन न केवल अपनी कहानी बताने के लिए जीवित रहीं बल्कि अपनी चुनौतियों से ऊपर भी उठीं। फूलन देवी का उदाहरण आज के दौर में हर उस महिला को बताना चाहिए जो पुरुष प्रधान देश में बलात्कार और हिंसा की शिकार होती हैं। क्योंकि उनकी कहानी हमारे समाज में जाति और पितृसत्ता द्वारा थोपी गई प्रचलित प्रथा को चुनौती देती है।
उनकी लड़ाई एक व्यक्ति और एक समुदाय से नहीं था बल्कि ब्राह्मणवादी व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था द्वारा थोपी गई उस हर एक प्रथा से था जो महिलाओं और निचली जातियों का शोषण करता था। एक साक्षात्कार में, फूलन देवी ने उल्लेख किया कि वह अपने कार्यों को विद्रोह के रूप में नहीं देखती थीं, बल्कि न्याय पाने का उनके पास यही एकमात्र तरीका था। एक निचली जाति की महिला होकर जीवित रहने के लिए फूलन देवी को जो संघर्ष करना पड़ा वो आज के समय में हर उस महिला के लिए पेरणा है जो ब्राह्मणवादी व्यवस्था द्वारा बने सामाजिक सिस्टम में हर रोज संघर्ष करती है।
फूलन देवी ने हर तरह के शोषण का विरोध किया। जब बचपन में उन्हें सिखाया गया कि गरीबों को अमीरों, विशेषकर ऊंची जाति के लोगों के सामने झुक कर रहना चाहिए और समर्पण करना चाहिए, तो उन्होंने अपने पिता के आदेश पर भी ऊँची जाति के लोगों के सामने समर्पण करने के लिए मना कर दिया।
एक बार, जब एक जमींदार ने श्रम के लिए भुगतान करने से इनकार कर दिया, तो फूलन देवी उत्पीड़ित श्रमिकों के अधिकारों के लिए खड़ी हो गईं। उन्होंने जमींदार को फटकारा और कहा कि वे ही लोग हैं जो उसके खेतों की जुताई करते हैं, खाद डालते हैं, बीज बोते हैं और फसल काटते हैं। और वे अपनी कड़ी मेहनत और के लिए उचित भुगतान के हकदार हैं। फूलन देवी ने कहा कि अगर जमींदार माँगी रकम नहीं देते हैं तो अगले सीजन में उनकी जमीन पर कोई फसल नहीं उगेगी।
जंगलों में भटकते हुए फूलन देवी की कहानी आसान नहीं है। वह एक ऐसा परिवर्तन था जो उन्हें बाहरी और आंतरिक रूप से बदल दिया। फूलन देवी ने अपने इंटरव्यू में बताया कि “कभी-कभी हमें कई दिनों और रातों तक नींद नहीं आती थी। मैं अकेली महिला थी और ऐसा कोई नहीं था जिससे मैं अपनी समस्याओं के बारे में बात कर सकूं। अक्सर हम बिना नहाए, पानी की एक बूंद के बिना नदी से बहुत दूर डेरा डालते थे। मैं कई दिनों तक उस भगवान को कोसती रहती जिसने मुझे औरत बनाया “
फूलन देवी की बहादुरी की भारी कीमत चुकानी पड़ी, उन्होंने ग्यारह साल जेल में बिताए जब तक कि अंततः उन्हें माफ़ नहीं कर दिया गया। अपनी रिहाई के बाद, उन्होंने राजनीति में प्रवेश करने का साहसिक निर्णय लिया, जहाँ उन्हें सफलता मिली। अपने जीवन में दुख और त्रासदियों के बावजूद, फूलन देवी की कहानी भारत की पिछड़ी और दलित जाति की महिलाओं की एक वास्तविकता को दिखाती है। इस देश में हर रोज महिलाएं बलात्कार और हिंसा की शिकार होती हैं, कुछ केस पुलिस थाने तक पहुँचते तो हैं पर उनकी फाइलों में ही दफन हो जाते हैं। पर फूलन देवी प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में सामने आईं। बैंडिट क्वीन के रूप में उनकी किंवदंती हमेशा जीवित रहेगी, जो महिलाओं द्वारा सामना किए जा रहे संघर्षों, सशक्तिकरण और समानता की खोज में सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने के लिए व्यक्तियों के दृढ़ संकल्प का प्रतिनिधित्व करती है।
फूलन देवी के जीवन को साझा करते हुए, हमें इतिहास की जटिलताओं को स्वीकार करना चाहिए और उन लोगों को याद करना चाहिए जिन्होंने समाज पर स्थायी प्रभाव छोड़ते हुए अपनी परिस्थितियों से ऊपर उठने का साहस किया। उनकी कहानी उन चुनौतियों की याद दिलाती है जिनका महिलाओं ने सामना किया है और करना जारी रखा है, जो हम सभी के लिए अधिक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण दुनिया के लिए प्रयास करने का आग्रह करती है।
21 फरवरी 1994 को नई दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल के दरवाजे फूलन देवी के सामने खुले। ग्यारह साल की हिरासत के बाद आखिरकार वह आज़ाद हो गईं, लेकिन उनकी आज़ादी अभी भी अस्थायी थी, क्योंकि आरोप अभी तक हटाए नहीं गए थे, और उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार था। जेल से निकलने के बाद फूलन देवी ने एक नई जिंदगी की शुरुआत की। वह गांव के उत्पीड़न, गरीबी, जाति और लिंग से दूर, अपने जीवन को फिर से बनाने की कोशिश करने लगीं। अब उनकी लड़ाई बंदूकों के बजाय न्यायपालिका के कानूनी प्रवचन के भीतर लड़ी जाने लगी। एक सांसद के रूप में, फूलन देवी ने महिलाओं के अधिकारों, बाल विवाह के उन्मूलन और भारत के गरीबों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।
पर फूलन एक सम्मान भरी ज़िन्दगी जीयें और संसद में बैठें यह उन उन जातिवादी मर्दों को कैसे पसंद आती जो फूलन की विरोध की तेज आवाज को भी बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। आज ही के दिन उनके आवास के बाहर गोली मारकर फूलन की हत्या कर दी गई. पर “फूलन ज़िंदा- जिन्दा हैं”
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