OPINION: डॉ. अंबेडकर को मानने वाले पहले किताब उठाएंगे न कि फूल और माला

Dr. BR. Ambedkar
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ऑपिनियन लेख: Rishabh Pratipaksh

डॉ. भीमराव अंबेडकर से मुझे क्या चिढ़ है? उनकी वजह से मैं देश के टॉप संस्थानों में नहीं पढ़ पाया. सरकारी नौकरियां नहीं कर पाया. उन्होंने सब कुछ दलितों के लिए आरक्षित कर दिया. पढ़ाई और नौकरी भी. उन्होंने दलितों का मन बढ़ा दिया और अब वो पहले की तरह नहीं रहे, हमें तंग करते हैं. उनको प्रमोशन में आरक्षण मिलने लगा. देश का माहौल खराब हो गया. फिर, अब जब बराबरी आ गई है तो फिर उनको आरक्षण क्यों?

इस तरह के प्रश्नों का आधार कहां से आता है? क्या अगर देश में पर्याप्त नौकरियां हों और पढ़ने के लिए काफी यूनिवर्सिटीज हों तो क्या फिर यह प्रश्न सामने आएंगे? क्या डॉ. अंबेडकर ने सिर्फ रिजर्वेशन के लिए काम किया? यह सारे प्रश्न दिखाते हैं कि नैरेटिव में कहीं लोचा है जो कि सही बात को समझने नहीं दे रहा.

सबसे बड़ा लोचा यह है कि सवर्ण समाज यह नहीं समझ पा रहा कि डॉक्टर अंबेडकर ने सवर्णों के लिए क्या किया. उन्होंने इस समाज को जहालत से निकलने का एक रास्ता दिखाया.

देश का दलित समाज, चाहे वो पढ़ा लिखा हो या अनपढ़ हो, उनको डॉक्टर अंबेडकर के महत्व के बारे में पता है. लेकिन देश के सवर्ण समाज में यह जागृति आनी बाकी है कि डॉक्टर अंबेडकर का देश के लिए क्या महत्व है.

यह बहुत ही हास्यास्पद लगता है जब सवर्ण समाज का एक तबका अंबेडकर को सिर्फ रिजर्वेशन से जोड़कर देखता है. तब समझ आता है कि इस तबके में शिक्षा और समझ की कितनी कमी है. यह चिंता का विषय है जब एक समाज में रीजनिंग और कॉम्प्रीहेन्शन ही खत्म हो जाए. ध्यान रहे कि सरकारी नौकरियों के लिए यह बेसिक योग्यता है.

धनंजय कीर द्वारा लिखी डॉक्टर अंबेडकर की जीवनी में लिखा है कि, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू अपने विदेशी मित्रों के सामने अंबेडकर का नाम गर्व से लेते थे. उन्हें भारत की अचीवमेंट के तौर पर दिखाया जाता था. क्योंकि अंबेडकर ने आजाद भारत की नींव रखी थी. एक आधुनिक देश को रिप्रजेंट किया था अपने जीवन में.

जिस प्रकार गांधी ने देश में आंदोलन करने से पहले देश का दौरा किया और अपने आप को एवं अपने समर्थकों को लंबी लड़ाई के लिए तैयार किया, उसी प्रकार अंबेडकर ने देश में आंदोलन करने से पहले खुद को शिक्षित किया और अपने समर्थकों को भी शिक्षित किया. अगर आप आज भी डॉक्टर अंबेडकर को फॉलो करना चाहें तो आप सबसे पहले किताबें उठाएंगे. ना कि फूल और माला.

डॉक्टर अंबेडकर के बारे में पढ़ते हुए मेरी लगातार यही समझ बनती गई कि खुद को लगातार एजुकेट करना है. हर विषय को पढ़ना है और समझना है. अपने तात्कालिक फायदे के लिए नहीं सोचना है, बल्कि एक लंबा विजन विकसित करना है. अगर सवर्ण समाज डॉक्टर अंबेडकर को लेकर अपनी सही समझ नहीं बनाता है तो उनके लिए यह एक दुविधा की स्थिति होगी कि वो आधुनिक बनना चाहते हैं या पुराने पाखंड में फंसे रहना चाहते हैं क्योंकि, दुनिया आधुनिकता की तरफ ही जा रही है. और अंबेडकर एक आधुनिक तार्किक मनुष्य को रिप्रजेन्ट करते हैं.

हमें भारत के हर तबके, हर समुदाय से ऐसा व्यक्ति चाहिए जो डॉक्टर अंबेडकर की तरह सेल्फलेस हो और अपने मिशन के लिए समर्पित हो. जिसकी समझ हो, जिसके पास विजन हो और जिसके हृदय में लोगों के लिए असीम प्यार हो. हमें ढेर सारे अंबेडकर चाहिए.

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