मुंबई: समुद्र के किनारे इस भूमि को नमन करने आते हैं देश के कोने-कोने से हजारों लोग, जानिए क्यों?

मुंबई: समुद्र के किनारे इस भूमि को नमन करने आते हैं देश के कोने-कोने से हजारों लोग, जानिए क्यों?
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"देश के अलग-अलग राज्यों में मैंने सफर किया। कई शहरो – कस्बों से होता हुआ अब मुंबई आ पहुंचा। एक अलग ही अहसास देता है मुम्बई शहर। बहुत सारे लोगों का सपना होता है मुम्बई आने का, इस बीच हम भी यहां आ चुके हैं।"

अब मुम्बई सेन्ट्रल स्टेशन उतर चुके हैं। पता नहीं क्यों यहां आने का हमेशा से मन रहा। स्टेशन से हम आटो रिक्शा किए हैं, आटो चल चुका है, जहां हमें रुकना है वहां का पता ऑटो वाले भाई को बता दिया है। सड़कों पर बड़े-बड़े बैनर लगे हैं, ये देखते ही दिली खुशी मिली, क्योंकि गांव देहात में यह सब कम ही देखने को मिलता है।

आटो ड्राइवर से हम नाम पूछने वाले ही थे उससे पहले ही उसने कहा, 'भैयाजी जय भीम'। उनकी उम्र तकरीबन 45 वर्ष के आसपास रही होगी, हम होटल पहुंच चुके हैं, हमे चैत्य भूमि जाना था जहां बाबासाहेब का अंतिम संस्कार हुआ। हमें समुद्र का किनारा देखने का शौक शुरुआत से था, हम यहां पहुंच चुके हैं। चैत्य भूमि (दादर) एक विशाल द्वार जो निर्माण कार्य के रुप में चल रहा है, वहां लोगों की भीड़ दिखाई देती है, जो धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। सब अपने फोटो ले रहे हैं। एक बड़ा अशोक स्तंभ भी दिखा जो बेहद आकर्षक और मनोरम दिखाई पड़ता है। और इस स्तंभ पर एक ज्योति निरंतर जल रही है।

यह जगह समुद्र के किनारे पर स्थित है जहां एक तरफ कुछ दुकानें सजी हैं। जहां बाबासाहेब का साहित्य, मूर्तियां, नीले ध्वज और बहुजन महापुरुषों के साहित्य की किताबो के स्टाल लगे हैं। वहां भी काफी भीड़ जमा है, यहां लोग तस्वीरों पर ध्यान ना देकर ज्यादातर लोग साहित्य को खरीद रहे हैं। कुछ लोग एक तरफ बैठकर उन किताबों को भी पढ़ रहे हैं।

यह मेरे लिए अब तक का सबसे खुशी का दिन है। मुम्बई में ‌यह कोई खास दिन नहीं है जो यहां इतना भीड़ जमा है, यह भीड़ सैकड़ों में थी और कुछ ही पल बाद यह भीड़ हजारों की तादाद में बढ़ गई।

यह आम दिनों की तरह है। वहां स्थति उस भूमि को नमन किया जहां बाबासाहेब को अंतिम शैय्या पर सुलाया गया है। अंदर कुछ दर्द सा था, जो पल-पल मेरे अंदर बढ़ रहा था, "अगर बाबासाहेब न होते तो देश के उन लाखों-करोड़ों लोगों का क्या होता जो आज भी हाशिए पर खड़े हैं"।

बहुत सारे लोगों से बातचीत भी हुई, जो बिल्कुल ही अंजान थे। मेरे लिए आज तक ये शहर अंजान था मगर अब कहीं न कहीं यहां हर तरफ एक अपनापन है जो मुम्बई के कोने-कोने में दिखता है। यह एक नयी उर्जा देता है। यहां से बहुत सारी यादों को लेकर जा रहा हूं। यहां फिर वापस आने दिल करेगा।

[यह लेख एक यात्रा वृतांत है।]

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