“नेताजी को गोली लग गई। नेताजी नहीं रहे।” — जब मुलायम सिंह ने जानलेवा हमले में मौत को भी दे दी थी मात

मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav)
मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav)
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लखनऊ। यूपी की राजनीति में मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने 55 साल तक विरोधी पार्टियों को जमकर धूल चटाई। सोमवार सुबह गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में उनका देहान्त हो गया। मुलायम सिंह यादव यूपी की राजनीति में 'नेता जी' के नाम से मशहूर थे। उनके जीवन से जुड़े अनेकों किस्से हैं। बुद्धि और विवेक के बल पर वह लगातार राजनीति में पैर जमाए रहे। नेता जी की राजनीति को खत्म करने के लिए उन पर जानलेवा हमला भी किया गया। नेता जी अपने काफिले में जा रहे थे और अचानक चारों तरफ से अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गई। नेता जी की कार पलटकर सूखे नाले में जा गिरी। इस दौरान उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि वह शोर करें कि 'नेताजी मर गए। उन्हें गोली लग गई। नेताजी नहीं रहे।' जब हमलावरों ने यह सुना तो वह मौके से फरार हो गए। इस तरह नेता जी ने अपनी और समर्थकों की जान बचा ली। मुलायम सिंह की मौत पर देश के प्रधानमंत्री, यूपी के सीएम सहित अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री और पार्टी के नेताओं ने शोक व्यक्त किया है। सीएम योगी ने मुलायम सिंह के देहांत पर यूपी में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है। इस दौरान सभी सरकारी कार्यालयों पर तिरंगा आधा झुका रहेगा।

सीएम योगी ने मुलायम सिंह यादव का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ कराने का आदेश जारी किया है।

आइये जानते हैं कौन और कैसे थे मुलायम सिंह यादव

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी सोच की अलख जगाने वाले मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर 1939 को इटावा जिले के सैफई में हुआ था। मुलायम सिंह करीब 6 दशक तक सक्रिय राजनीति में हिस्सा लिया। वो कई बार यूपी विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य रहे। इसके अलावा उन्होंने संसद के सदस्य के रूप में ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं, और पंद्रहवीं लोकसभा में हिस्सा भी लिया। मुलायम सिंह यादव 1967, 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 में कुल 8 बार विधानसभा के सदस्य बने।

यूपी के सीएम और रक्षामंत्री भी रहे

मुलायम सिंह यादव ने तीन बार यूपी के सीएम के रूप में काम किया। वो पहली बार 5 दिसम्बर 1989 से 24 जनवरी 1991, दूसरी बार 5 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1996 तक और तीसरी बार 29 अगस्त 2003 से 11 मई 2007 तक उत्तर प्रदेश के सीएम रहे। इन कार्यकालों के अलावा उन्होंने 1996 में एचडी देवगौड़ा की संयुक्त गठबंधन वाली सरकार में रक्षामंत्री के रूप में भी काम किया। अपने सर्वस्पर्शी रिश्तों के कारण मुलायम सिंह को नेताजी की उपाधि भी दी जाती थी। मुलायम को उन नेताओं में जाना जाता था जो यूपी और देश की राजनीति की नब्ज समझते थे और सभी दलों के लिए सम्मानित भी थे।

मुलायम 1967 में पहली बार विधायक बने थे। वह आठ बार विधायक और 7 बार सांसद रहे। तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री और दो बार केंद्र में मंत्री रहे। देश के रक्षा मंत्री रहते मुलायम सिंह यादव ने सीमा पर जाकर सेना का दिल जीत लिया था। मुलायम सिंह सैफई से सत्ता के शिखर तक का सफर बड़े ही संघर्षों के साथ तय किया था।

मुलायम सिंह यादव के जीवन से जुड़े कुछ किस्से

पहला किस्सा-

बात 26 जून 1960 मैनपुरी के करहल के जैन इंटर कॉलेज की ही। कालेज के कैंपस में कवि सम्मेलन चल रहा था। यहां उस वक्त के मशहूर कवि दामोदर स्वरूप विद्रोही भी मौजूद थे। वो मंच पर पहुंचे और अपनी लिखी कविता 'दिल्ली की गद्दी सावधान' पढ़ना शुरू की। कविता सरकार के खिलाफ थी। इसलिए वहां तैनात उत्तर प्रदेश पुलिस का इंस्पेक्टर मंच पर गया और उन्हें कविता पढ़ने से रोकने लगा। वो नहीं माने तो उनका माइक छीन लिया। इंस्पेक्टर ने कवि पर दबाव बनाने की कोशिश की। उन्होंने कवि से कहा- 'तुम सरकार के खिलाफ कविता नहीं पढ़ सकते।' भरे मंच पर यह सब चल रहा था। इस बीच दर्शकों के बीच बैठा 21 साल का पहलवान दौड़ते हुए मंच पर पहुंचा। 10 सेकेंड में उस नौजवान ने इंस्पेक्टर को उठाकर मंच पर पटक दिया। ये नौजवान कोई और नहीं बल्कि मुलायम सिंह यादव थे।

दूसरा किस्सा

बात 4 मार्च 1984 की है। उस दिन छुट्टी का दिन यानी रविवार था। नेताजी की इटावा और मैनपुरी में रैली थी। रैली के बाद वो मैनपुरी में अपने एक दोस्त से मिलने गए। दोस्त से मुलाकात के बाद वो 1 किलोमीटर ही चले थे कि उनकी गाड़ी पर फायरिंग शुरू हो गई। गोली मारने वाले छोटेलाल और नेत्रपाल नेताजी की गाड़ी के सामने कूद गए। करीब आधे घंटे तक छोटेलाल, नेत्रपाल और पुलिसवालों के बीच फायरिंग चलती रही। छोटेलाल नेताजी के ही साथ चलता था। इसलिए उसे पता था कि वह गाड़ी में किधर बैठे हैं। यही वजह है कि उन दोनों ने 9 गोलियां गाड़ी के उस हिस्से पर चलाईं, जहां नेताजी बैठा करते थे। लेकिन लगातार फायरिंग से ड्राइवर का ध्यान हटा और उनकी गाड़ी अनियंत्रित होकर सूखे नाले में गिर गई। नेताजी तुरंत समझ गए कि उनकी हत्या की साजिश की गई है। उन्होंने तुरंत सबकी जान बचाने के लिए एक योजना बनाई।

उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि वो जोर-जोर से चिल्लाएं 'नेताजी मर गए। उन्हें गोली लग गई। नेताजी नहीं रहे।' जब नेताजी के सभी समर्थकों ने ये चिल्लाना शुरू किया तो हमलावरों को लगा कि नेताजी सच में मर गए। उन्हें मरा हुआ समझकर हमलावरों ने गोलियां चलाना बंद कर दीं और वहां से भागने लगे, लेकिन पुलिस की गोली लगने से छोटेलाल की उसी जगह मौत हो गई और नेत्रपाल बुरी तरह घायल हो गया। इसके बाद सुरक्षाकर्मी नेताजी को एक जीप में 5 किलोमीटर दूर कुर्रा पुलिस स्टेशन तक ले गए।

तीसरा किस्सा

इस किस्से से मुलायम सिंह यादव काफी विवाद में आ गए थे। उस समय मुलायम सिंह यादव 1989 में लोकदल से यूपी के मुख्यमंत्री बने। 1990 में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए कारसेवा की। 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई। कारसेवक पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ मस्जिद की ओर बढ़ रहे थे। मुलायम सिंह यादव ने सख्त फैसला लेते हुए प्रशासन को गोली चलाने का आदेश दिया। पुलिस की गोलियों से 6 कारसेवकों की मौत हो गई। इसके दो दिन बाद फिर 2 नवंबर 1990 को हजारों कारसेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए। मुलायम के आदेश पर पुलिस को एक बार फिर गोली चलानी पड़ी, जिसमें करीब एक दर्जन कारसेवकों की मौत हो गई थी।

चौथा किस्सा

बात 1956 की है। राम मनोहर लोहिया और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर समझौते के तहत एक साथ आने की प्लानिंग कर रहे थे। इस दौरान अंबेडकर का निधन हो गया और लोहिया की दलित-पिछड़ा जोड़ की प्लानिंग सफल नहीं हो सका। 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद मुलायम ने लोहिया के इस प्लान को अमल में लाने की दिशा में काम शुरू कर दिया। मुलायम ने तब के बड़े दलित नेता कांशीराम के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया। मुलायम के इस मास्टर स्ट्रोक का असर चुनावी रिजल्ट पर भी दिखा। 422 सीटों वाली विधानसभा में सपा-बसपा गठबंधन को 176 सीटें मिली, जबकि भाजपा बहुमत से दूर हो गई। मुलायम ने अन्य छोटे दलों को साथ मिलाकर सत्ता में वापसी कर ली।

11 अक्टूबर को राजकीय सम्मान के साथ होगा अंतिम संस्कार

मुलायम सिंह यादव ने 82 साल की उम्र में गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में सुबह 8 बजकर 16 मिनट पर अंतिम सांस ली। वे यूरिन इन्फेक्शन के चलते 26 सितंबर से अस्पताल में भर्ती थे। सैफई में मंगलवार को मुलायम का अंतिम संस्कार किया जाएगा। उनका अंतिम संस्कार 11 अक्टूबर को पूरे शासकीय सम्मान के साथ होगा।

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