प्रयागराज। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक सहायक प्रोफेसर डॉक्टर विक्रम हरिजन पर भगवान राम और कृष्ण पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने का मामला दर्ज किया गया है। विश्व हिन्दू परिषद, हिंदू जागरण मंच और बजरंग दल ने मिलकर उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। पुलिस ने बताया कि वीएचपी के जिला संयोजक शुभम की शिकायत पर प्रयागराज के कर्नलगंज पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज की गई है। उल्लेखनीय है सहायक प्रोफेसर दलित समाज से आते है और बचपन से ही जातीय व्यवस्था का दंश झेला है। वे समय समय पर अपने लेखों के माध्यम से जातीय भेदभाव और छुआछूत की आलोचना करते रहते है।
विक्रम हरिजन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास विभाग में प्रोफेसर हैं. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर किए अपने पोस्ट में भगवान राम और कृष्ण को जेल में डालने की बात कही थी. उन्होंने इसमें लिखा था।
"हरिजन" शब्द काफी अपमानजनक है, और इसके उपयोग पर भारत सरकार द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया है, उन्हें अपना उपनाम अपने पिता, रघुनाथ हरिजन से मिला, जो शुरू में पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में एक बंधुआ मजदूर थे। वह याद करते हैं, ''उस समय जीवन काफी दयनीय था,वह 'गोबरहा ' रोटी (गाय के गोबर से गेहूं निकालकर बनाई गई रोटियां) और मरे हुए जानवर का मांस खाकर जीते थे। बाद में, उनके पिता बंगाल चले गए, जहां उन्होंने एक कोयला खदान में काम किया। पश्चिम बंगाल जैसे 'जातिविहीन' कम्युनिस्ट राज्य में भी वे जातिवाद से नहीं बच पाए। वहां उत्तर भारतीय निवासियों ने उन्हें जातिवादी गालियों का शिकार बनाया।
विक्रम याद करते हैं कि वह अपने स्कूल के दिनों से ही विद्रोही थे। आठवीं कक्षा में उन्होंने अपने शिक्षक द्वारा अपने सहपाठी रवीन्द्र दुषाध पर की गयी जातिगत टिप्पणी के खिलाफ विद्रोह कर दिया। शिक्षक ने कहा, "हम (उच्च जाति के) लोग आयकर देते हैं, तब तुम लोगों को आरक्षण मिलता है," और कहा कि वह 'गंदी नाली का कीड़ा' है । इस घटना से विक्रम काफी गुस्सा गए । वह बताते हैं अगले दिन मैंने शिक्षक से उनके पिछले दिन के व्यवहार के बारे में कड़े शब्दों में पूछा । इससे वह क्रोधित हो गए और उन्होंने मुझे कक्षा से बाहर भेज दिया और दरवाज़ा बंद कर दिया । लेकिन मैंने लात मारकर दरवाज़ा खोला और कक्षा में घुस गया . विक्रम आगे बताते हैं की उन्होंने कबीर की पंक्तियों का जिक्र करते हुए कहा कि आप इन दोहों के माध्यम से जातिगत समानता की शिक्षा देते हैं लेकिन जातिवाद करते हैं और हमारे साथ भेदभाव करते हैं। उन्होंने शिक्षक को 'गंदी नाली का कीड़ा' कहकर अपने दोस्त के अपमान का बदला चुकाया। बाद में रवीन्द्र और विक्रम दोनों को निलंबित कर दिया गया। वहीं, इस दौरान स्कूल की गतिविधियां बंद रहीं.
बाद में अपने दोस्त दिवाकर की मदद से वह मामले में एसएफआई (स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया) का हस्तक्षेप करवाने में कामयाब रहे। एसएफआई कार्यकर्ताओं ने हेमेंद्र कुमार गांगुली नाम के प्रिंसिपल का घेराव किया और ब्राह्मण शिक्षक पर कार्रवाई और माफी की मांग की. शिक्षक ने माफी मांगी लेकिन अगले 2 वर्षों तक विक्रम को नहीं पढ़ाया।
दसवीं कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते यह विद्रोही एक मूर्तिभंजक में तब्दील हो चुका थ। राम मोहन रॉय से प्रेरित होकर वह केवल निराकार ब्रह्मा को मानते थे । पर अभी भी वह अम्बेडकर से अनजान थे। उनकी दृढ़ता को उनके दोस्तों ने चुनौती दी और उन्हें शिवलिंग पर पेशाब करने की चुनौती दी। विक्रम का कहना है कि उन्होंने चुनौती स्वीकार की और पश्चिम बंगाल के गोसाईं धाम में एक मंदिर के अंदर स्थित एक शिवलिंग पर पेशाब कर दिया। हालांकि इस दुस्साहसिक कृत्य का तब कोई विशेष विरोध नहीं हुआ , लेकिन अम्बेडकर जयंती समारोह में इस घटना का जिक्र करने पर सोशल मीडिया पर जान से मारने की धमकियां मिलीं, इस हद तक कि उन्हें पुलिस सुरक्षा की मांग करनी पड़ी।
जब उन्होंने हाई स्कूल पास किया तो वे वापस गोरखपुर अपने गांव चले आये। जब वह यहाँ आये तो वह हाई स्कूल पास थे यह उपलब्धि हासिल करने वाले वह अपने गांव में चमार समुदाय से एकमात्र व्यक्ति थे। पर फिर भी उन्होंने जातिवाद का नंगा नाच देखा । एक विवाद में यादव समाज के लोगों ने इनकी झोपडी में आग लगा दी । गोरखपुर विश्वविद्यालय के इस स्नातक के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जाना एक अलग अनुभव था। अत्यंत गरीबी के कारण जीवन बहुत कठिन था। इसके अलावा, अंग्रेजी बोलने वाले लोगों की दुनिया के संपर्क में आने के कारण उनमें हीन भावना घर कर गई थी। गोरखपुर से मिले कुछ दान, छात्रवृत्ति और दोस्तों और सहकर्मियों की वित्तीय मदद से उन्हें जेएनयू के कठिन जीवन से बाहर निकलने और एमए पूरा करने में मदद मिली।
जे.एन.यू. में, वह अम्बेडकर जैसे बहुजन विचारकों से परिचित हुए, जिसने जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ने के उनके संकल्प को मजबूत किया। हिंदू जाति व्यवस्था के खिलाफ उनकी कविताएं, जैसे "हिंदू नहीं कहलाऊंगा " और "चमार चमार मैं हूं चमार" "हम दलित" नमक पत्रिका में प्रकाशित हुईं। कविताओं को व्यापक रूप से सराहा गया और जेएनयू में एक दोस्त, आदित्य पंत की मदद से, वह सहारा के हस्तक्षेप अनुभाग में नौकरी पाने में कामयाब रहे। पत्रकारिता में उनके कार्यकाल ने उन्हें वित्तीय संकट से निपटने में भी मदद की। लेकिन उनके नाम के साथ जुड़े "हरिजन" शब्द की वजह से जाति की छाया हर जगह उनके साथ रही , जिससे उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा।
विक्रम असम सेंट्रल यूनिवर्सिटी में नौकरी पाने में कामयाब रहे, लेकिन व्यक्तिगत समस्याओं ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया। इसके बाद, उन्हें शिमला स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज में नौकरी मिल गई, जहाँ वे बाबासाहेब अम्बेडकर की पुण्य तिथि मनाने वाले पहले व्यक्ति थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उनकी अगली नौकरी ने उन्हें जाति व्यवस्था की कठोरता के करीब ला दिया। विक्रम कहते हैं, ''जाति यहां के लोगों की मानसिकता में रची-बसी है। वह बताते हैं की एक बार प्रयागराज में कमरा ढूंढ रहे थे। मकान मालिक एक ब्राह्मण था वह प्रोफेसर जानने के बाद तुरंत कमरा देने को राजी हो गए परंतु चमार जाति जानने के बाद मना कर दिया।
कक्षाओं में छात्रों को जाति व्यवस्था के प्रति जागरूक करना बीजेपी के लोगों को नागवार गुजरा और इस मुद्दे पर कई बार उनको घेर लिया और उनसे नोकझोंक भी हुई.
जाति के खिलाफ मुखर रुख ने उन्हें अलग-थलग कर दिया. वह याद करते हैं, "मैंने लेदर वर्किंग क्लासेस के इतिहास पर एक सेमिनार आयोजित किया था, लेकिन लोगों ने यह कहकर इसका मजाक उड़ाया, 'चमड़े पर किस तरह का सेमिनार है? यह चमारों का सेमिनार है।" बाद में, सामाजिक न्याय लड़ रहे इस सहायक प्रोफेसर ने ज्योतिबा फुले की पुण्य तिथि के अवसर पर "भारत में जाति की समस्या: इतिहास और इतिहासलेखन की जांच" शीर्षक से एक सेमिनार भी आयोजित किया। वह उस समय विवादों में घिर गए जब उन्होंने कहा कि "इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रों को उनकी जाति के आधार पर अंक दिए जाते हैं।"
इस बयान पर काफी बहस हुई और एससी/एसटी आयोग ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से जवाब मांगा. इसके बाद विश्वविद्यालय ने विक्रम से जवाब मांगा। वह इस विवाद में अकेले पड़ गए क्योंकि कोई भी छात्र उनके बचाव में नहीं आया। वे कहते हैं, "शायद उन्हें पता था कि आगे आने से उनका करियर ख़तरे में पड़ सकता है और मुझे भी लगा कि उनको विवादों में घसीटना सही नहीं है.
जब शिवलिंग पर पेशाब करने के उनके संदर्भ का एक वीडियो वायरल हुआ, तो उन्हें मौत की धमकियों का सामना करना पड़ा और 52 दिनों के लिए विश्वविद्यालय से फरार हो गए। शहर के तत्कालीन एसएसपी सिद्धार्थ अनिरुद्ध पंकज, जो कि जेएनयू के पूर्व छात्र भी थे, की पहल पर उन्हें पुलिस सुरक्षा मिली। बाद में एसएसपी का तबादला होने के बाद सुरक्षा हटा ली गई।
एक छात्र के रूप में, विक्रम पर जीवन के अभावों का बोझ था और इसलिए वह गरीब छात्रों के दर्द को समझते थे। 2022 में जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने छात्रों के फीस 400 % बढ़ा दी तो वह छात्रों के समर्थन में खुलकर सामने आने वाले एकमात्र शिक्षक थे, जिस कारण उनको विभागीय कारवाही भी झेलनी पड़ी.
जब उनसे पूछा गया कि वह चुनिंदा तौर पर हिंदू धर्म के खिलाफ क्यों हैं, जबकि भारत में हर धर्म, जाति भेदभाव करता है, तो वह पूछते हैं, "किस धर्म ने मुझे चमार बनाया, किस धर्म ने मुझे गोबरहा रोटी खाने के लिए मजबूर किया, किस धर्म ने मुझे उससे नीच का स्थान दिया? किस धर्म ने मुझे जानवर से भी नीच माना ? यह इस्लाम, सिख धर्म, ईसाई धर्म आदि धर्म ने तो नहीं किया ।" वह अंबेडकर का हवाला देते हुए सनातन पर स्टालिन के बयान का समर्थन करते हैं, वह कहते हैं की आंबेडकर ने "जाति का विनाश" में कहा था कि "हिंदू धर्म एक बीमारी है और जाति की उत्पत्ति वेद, रामायण आदि हिंदू धर्मग्रंथों में है।" उनका कहना है कि जाति व्यवस्था , "हिंदू धर्मग्रंथों द्वारा स्वीकृत हैं, और यह धर्म जाति का समर्थन करने में बिल्कुल स्पष्ट है।
वह कहते हैं, "मेरा जीवन जाति की कहानी है और कुछ नहीं । अब समय आ गया है कि आप अपना पक्ष स्पष्ट रखें और अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज मुखर रूप से उठाएं।" विक्रम पदोन्नति, और सरकारी प्रलोभन की लालच में समझौता करने की नीति को स्वीकार नहीं करते हैं। "यदि आरएसएस और भाजपा स्पष्ट रूप से ब्राह्मणवाद का प्रचार कर सकते हैं, तो हम क्यों भयभीत हों ? मुझे पता है कि मेरे रुख के कारण मुझे मार दिया जा सकता है, लेकिन मैं ब्राह्मणवाद और हिंदुत्व के विरोध में दृढ़ हूं।" वह कहते हैं, "जाति पर मेरे विचारों के कारण मुझे बहुत शत्रुता का सामना करना पड़ा है, और मैंने अक्सर छात्रों को मेरे कक्ष में लगे अंबेडकर के चित्र के कारण मुझे गद्दार कहते सुना है। अंबेडकर की छवि और विचारधारा उन्हें अंदर से कचोटती है.
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