क्या आप जानते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) डॉ. अम्बेडकर द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार अस्तित्व में आया था ? हिल्टन यंग कमीशन, जिसे रॉयल कमीशन ऑन इण्डियन करेंसी एण्ड फाइनेंस के तौर पर भी जाना जाता है। डॉ अम्बेडकर द्वारा कमीशन के सामने प्रस्तुत दिशा-निर्देशों या निर्देशक सिद्धान्त के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक की संकल्पना व स्थापना की गई।
आजादी से पहले 1926 में बाबासाहब ने हिल्टन यंग कमीशन के सामने बैंक स्थापना का मसौदा रखा था। तब इसके सभी सदस्यों ने उनके लिखे ग्रन्थ दी प्राब्लम ऑफ दी रुपी - इट्स ओरीजन एण्ड इट्स सोल्यूशन (रुपया की समस्या - इसके मूल और इसके समाधान) की जोरदार वकालत की थी और इसे संदर्भ ग्रंथ की तरह प्रयोग में लिया था। ब्रिटिशों की वैधानिक सभा (लेसिजलेटिव असेम्बली) ने इसे कानून का स्वरूप देते हुए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 का नाम दिया। इसके बाद भारतीय रिजर्व बैंक 1 अप्रैल 1935 से अस्तित्व में आया।
प्रारम्भ में भारतीय रिजर्व बैंक का केन्द्रीय कार्यालय कोलकाता में था जो सन् 1937 में मुम्बई आ गया। पहले यह एक निजी बैंक था किन्तु सन 1949 से यह भारत सरकार का उपक्रम बन गया है।
आप को जानकार हैरानी होगी की जब हिल्टन आयोग भारत आया, तो इस आयोग के प्रत्येक सदस्य के पास डॉ अम्बेडकर की पुस्तक द प्रॉब्लम ऑफ द रुपी - इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन की कॉपी थी।
खेद का विषय है कि बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के अर्थशास्त्रीय पक्ष को कभी उभारने का प्रयास नहीं किया गया, जबकि नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने उन्हें- ’फादर ऑफ माय इकॉनमिक्स’ कहकर सम्मान दिया था। दलित हिस्ट्री मंथ की विशेष लेख श्रंखला में बाबासाहब की राष्ट्रनिर्माण में भूमिका के तहत उनके आर्थिक पक्षों की विशेष रूप से चर्चा करते है।
बाबा साहब का अर्थशास्त्र पसंदीदा विषय था. वे विधार्थी जीवन से ही अर्थशास्त्र विषय से प्रभावित थे. उन्होंने अपनी स्नातक से लेकर पीएचडी तक की पढाई अर्थशास्त्र विषय में ही की है और वह भी दुनिया के श्रेष्ठतम विश्वविद्यालयों से हुई. अर्थशास्त्र के विभिन्न पहलुओ पर उनके शोध उल्लेखनीय है, लेकिन डॉ. अंबेडकर को केवल दलितों एवं पिछडों के मसीहा तथा भारतीय संविधान निर्माता के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जबकि उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में भी महती भूमिका निभाई थी।
डॉ. अंबेडकर की पहचान यदि एक अर्थशास्त्री के रूप में नही बन पाई तो इसका कारण यह है कि 1923 में भारत लौटने के बाद वे देश की सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था को बदलने के लिए समर्पित हो गए और अर्थशास्त्र विषय तथा आर्थिक मुद्दों पर अपना शोध जारी नहीं रख पाए वे भारत आने के बाद भारत में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों की समाप्ति के कार्य में लग गए। सामाजिक मुद्दों पर काम करते हुए भी उनके कार्य को देखा जाए तो ये कहीं ना कहीं आर्थिक पक्ष के साथ भी जुड़े हैं, जब वो महिलाओं को उद्यमी बनाने की बात करते या दलितों को भी उद्यमी बनाने में सरकार की सहायता की बात करते हैं। उनका मानना था कि “आर्थिक उत्थान के बिना कोई भी सामाजिक एवं राजनीतिक भागीदारी संभव नही होगी। डॉ. अंबेडकर ने भारतीय मुद्रा (रुपए) की समस्या, महंगाई तथा विनिमय दर, भारत का राष्ट्रीय लाभांश, ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास, प्राचीन भारतीय वाणिज्य, ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रशासन एवं वित्त, भूमिहीन मजदूरों की समस्या तथा भारतीय कृषि की समस्या जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर शोध ही नहीं किया बल्कि इन मुद्दों से सम्बंधित समस्याओं के तर्किक एवं व्यावहारिक समाधान भी दिए।
20वीं सदी के शुरुआत में विश्व के लगभग सभी प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने डॉ अंबेडकर के अर्थशास्त्र विषय की समझ तथा उनके योगदान को सराहा और उनके शोध पर महत्वपूर्ण टिप्पणी भी की। डॉ अम्बेडकर 1917 में पीएचडी कर पाए, उनकी एमए. की थीसिस का विषय ‘प्राचीन भारतीय वाणिज्य’ था, जो कि प्राचीन भारतीय वाणिज्य के प्रति उनकी समझ को दर्शाता है, इस थीसिस में उन्होंने प्राचीन भारतीय वाणिज्य की समस्याओं को रखा तथा उनके संभावित कारगर समाधान भी बताए।
बाबा साहब अंबेडकर की आर्थिक समस्याओं के प्रति व्यवहारिक सोच थी। वे मानते थे कि भारत के पिछड़ेपन का मुख्य कारण भूमि-व्यवस्था के बदलाव में देरी है, इसका समाधान लोकतांत्रिक समाजवाद है जिससे आर्थिक कार्यक्षमता एवं उत्पादकता में वृद्धि होगी तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था का कायापलट संभव होगा, आर्थिक समस्याओं के प्रति उनके दृष्टिकोण की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि वे अहस्तक्षेप तथा वैज्ञानिक समाजवाद की निंदा करते थे।
डॉ. अंबेडकर ने आर्थिक एवं सामाजिक असमानता पैदा करने वाले पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म करने की पुरजोर वकालत की, सन 1923 में वे लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डीएससी. (अर्थशास्त्र) की डिग्री प्राप्त की, अपने डीएससी. की थीसिस में उन्होंने रुपए के अवमूल्यन की समस्या पर शोध किया, जोकि उस समय के शोधों में सबसे व्यवहारिक तथा महत्वपूर्ण शोध था। बाबा साहब ने 1923 में वित्त आयोग की बात करते हुए कहा कि 5 वर्षों के अंतर पर वित आयोग की रिपोर्ट आनी चाहिए। भारत में रिजर्व बैंक की स्थापना का खाका तैयार करने और प्रस्तुत करने का काम बाबा साहब अंबेडकर ने किया। इसे रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने माना और अपनी स्थापना के 81 साल होने पर बाबा साहब के नाम पर कुछ सिक्के भी जारी किए।
डॉ. अंबेडकर ने बड़े उद्योग लगाने की वकालत की, परंतु कृषि को समाज की रीढ़ की हड्डी भी माना। औद्योगिक क्रांति पर जोर देने के साथ-साथ उनका यह भी कहना था की कृषि को नजर अंदाज नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि कृषि से ही देश की बढ़ती आबादी को भोजन और उद्योगों को कच्चा माल मिलता हैं।
जब देश का तेजी से विकास होगा तब कृषि वह नींव होगी, जिस पर आधुनिक भारत की इमारत खड़ी की जाएगी, इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अंबेडकर ने कृषि क्षेत्र के पुनर्गठन के लिए क्रांतिकारी कदम उठाने की वकालत की। वे कृषि योग्य भूमि के राष्ट्रीयकरण के प्रमुख पैरोकर थे। डॉ. अंबेडकर राज्य को ये दायित्व सौंपते है कि वह लोगों के आर्थिक जीवन को इस प्रकार योजनाबद्ध करे कि उससे उत्पादकता का सर्वोच्च बिंदु हासिल हो जाए और निजी उद्योग के लिए एक भी मांग बंद न हो और संपदा के समान वितरण के लिए भी उपबंध किए जाएं। नियोजित ढंग से कृषि के क्षेत्र में राजकीय स्वामित्व प्रस्तावित है जहां सामूहिक तरीके से खेती-बाड़ी की जाए तथा उद्योगों के क्षेत्र में राजकीय समाजवाद रूपांतरित रूप भी प्रस्तावित है। इसमें कृषि एवं उद्योग के लिए आवश्यक पूंजी सुलभ कराने की व्यवस्था राज्य के कंधों पर स्पष्ट डाली गई है।
डॉ. अंबेडकर द्वारा किए गए शोध आज के समय के लिए भी उपयुक्त हैं, वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था की सभी सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, पिछड़ापन, असमानता (व्यक्तिगत एवं क्षेत्रीय), विदेशी मुद्राओं के मुकावले भारतीय मुद्रा (रुपए) का अवमूल्यन आदि-आदि से सम्बंधित गंभीर विमर्श डॉ. अंबेडकर के आर्थिक शोधों में देखा जा सकता है।
अब रिजर्व बैंक की ओर लौटते है और समझते है कि वह किस तरीके से काम करता है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 20 की शर्तों में रिजर्व बैंक को केन्द्रीय सरकार की प्राप्तियां और भुगतानों और विनिमय, प्रेषण (रेमिटन्स) और अन्य बैंकिंग गतिविधियां (आपरेशन), जिसमें संघ के लोक ऋण का प्रबंध शामिल है, का उत्तरदायित्व संभालना है। आगे, भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 21 के अनुसार रिजर्व बैंक को भारत में सरकारी कारोबार करने का अधिकार है।
अधिनियम की धारा 21 ए के अनुसार राज्य सरकारों के साथ करार कर भारतीय रिजर्व बैंक राज्य सरकार के लेन देन कर सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अब तक यह करार सिक्किम सरकार को छोड़कर सभी राज्य सरकारों के साथ किया है।
भारतीय रिजर्व बैंक, उसके केन्द्रीय लेखा अनुभाग, नागपुर में केन्द्र और राज्य सरकारों के प्रमुख खातें रखता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने पूरे भारत में सरकार की ओर से राजस्व संग्रह करने के साथ साथ भुगतान करने के लिए सुसंचालित व्यवस्था की है। भारतीय रिजर्व बैंक के लोक लेखा विभागों और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 45 के अंतर्गत नियुक्त एजेंसी बैंकों की शाखाओं का संजाल सरकारी लेनदेन करता है। वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र की सभी बैंक और निजी क्षेत्र की तीन बैंक अर्थात आईसीआईसीआई बैंक लि., एचडीएफसी बैंक लि. और एक्सिस बैंक लि., भारतीय रिजर्व बैंक के एजेंट के रूप में कार्य करते हैं। केवल एजेंसी बैंकों की प्राधिकृत शाखाएं सरकारी लेनदेन कर सकती हैं।
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