सभी लोग सिर्फ यह कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं कि यह दुखद है, ऐसा नहीं होना चाहिए. यह स्थिति सवालों से भागने जैसा है, जब हमारा बहुजन समाज आगे बढ़ रहा है और महिलाएं उस अनुपात में आगे नहीं बढ़ रही है तो यह सवाल कौन पूछेगा? क्यों सोशल मीडिया पर भी बहुजन महिलाओं के मुद्दे पुरुष तय कर रहे हैं, क्यों हर जगह महिलाओं का प्रतिनिधित्व गायब है? क्या हम यह अपेक्षा करते हैं कि ब्राह्मवादी-पितृसत्ता को मानने वाले महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर सवाल करेंगे? क्या बगैर महिलाओं की भागीदारी के हम बाबा साहेब के सपनों को पूरा करेंगे? यह सवाल हम सब सभी संविधानप्रेमियों को खुद से पूछना होगा? सिर्फ सवाल पूछने भर से ही नहीं, या संवेदना जाहिर कर देने भर से ही नहीं मिलेगा प्रतिनिधित्व के सवाल का जवाब!